जम्मू कश्मीर की एक अदालत ने शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नोलॉजी (एसकेयूएएसटी) के सात कश्मीरी छात्रों को अंतरिम ज़मानत दे दी है. इन पर विश्व कप क्रिकेट के फाइनल में भारत पर ऑस्ट्रेलिया की जीत का जश्न मनाने का भी आरोप लगा था. पुलिस ने छात्रों के ख़िलाफ़ आतंक के आरोप हटा दिए हैं.
नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर की एक अदालत ने उन सात छात्रों को जमानत दे दी है, जिन्हें पिछले महीने क्रिकेट विश्व कप फाइनल में भारत की हार के बाद कथित तौर पर पाकिस्तान समर्थित नारे लगाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने छात्रों के खिलाफ आतंक के आरोप भी हटा दिए हैं.
मध्य कश्मीर के गांदरबल जिले की अदालत ने शनिवार (2 दिसंबर) को शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नोलॉजी (एसकेयूएएसटी) के सात छात्रों को अंतरिम जमानत दे दी, जिन पर विश्वकप फाइनल में भारत पर ऑस्ट्रेलिया की जीत का जश्न मनाने का भी आरोप था.
यहां पढ़ने वाले पंजाब के एक छात्र द्वारा दायर की गई शिकायत में आरोप लगाया गया था कि विश्वविद्यालय के एक हॉस्टल ब्लॉक में रहने वाले कश्मीरी छात्रों द्वारा पाकिस्तान समर्थक नारे लगाए गए थे और गैर-स्थानीय छात्रों को भी भारत के पक्ष में न होने की चेतावनी दी गई थी.
एफआईआर, जिसकी एक प्रति द वायर के पास है, में कहा गया है कि शिकायतकर्ता छात्र सचिन बैंस के साथ कथित तौर पर कश्मीरी छात्रों द्वारा दुर्व्यवहार किया गया और धमकाया गया, जिन्होंने ‘जीवे जीवे पाकिस्तान’ जैसे पाक समर्थक नारे लगाए, जिससे विश्वविद्यालय में गैर-स्थानीय छात्रों के बीच भय का माहौल पैदा हो गया.
शिकायत मिलने के बाद पुलिस ने छात्रों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम, 1967 (यूएपीए) की धारा 13 (किसी भी गैरकानूनी गतिविधि की वकालत करना या उकसाना) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 505 (सांप्रदायिक हिंसा भड़काना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया था.
आतंक के आरोप लगाने वाली इस एफआईआर ने हंगामा खड़ा कर दिया था, कश्मीरी छात्रों के परिवारों के साथ-साथ राजनीतिक दलों और आम लोगों ने मांग की थी कि पुलिस को ये आरोप हटा देना चाहिए और छात्रों को अपनी पढ़ाई जारी रखने का दूसरा मौका देना चाहिए.
हालांकि, जम्मू कश्मीर पुलिस ने इस घटना को ‘आतंकवादी’ और ‘असामान्य’ करार देते हुए, आतंकवाद विरोधी एफआईआर का बचाव करते हुए कहा था कि ऐसी हरकतें अतीत में ‘ज्यादातर अलगाववादी और आतंकवादी नेटवर्क के समर्थन’ में यह दिखाने के लिए की गई हैं कि कश्मीर में ‘हर कोई भारत से नफरत करता है’.
बुधवार (28 नवंबर) को बयान में कहा गया था, ‘उद्देश्य किसी विशेष खेल टीम की व्यक्तिगत पसंद को प्रसारित करना नहीं है. यह असहमति या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में नहीं है. ये उन लोगों को आतंकित करने के बारे में है जो भारत समर्थक भावना रखते हैं या पाकिस्तान विरोधी भावना से सहमत हो सकते हैं.’
शनिवार को जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने कहा कि जांच के दौरान आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के तहत गवाहों के बयान दर्ज किए गए और एक मोबाइल फोन, जिसका इस्तेमाल घटना को फिल्माने के लिए किया गया था, को भी अपने कब्जे में ले लिया गया. बाद में जम्मू कश्मीर पुलिस द्वारा इन्हें विश्लेषण करने के लिए एफएसएल श्रीनगर भेज दिया गया.
हालांकि, अभियोजन पक्ष ने कहा कि प्रारंभिक जांच के बाद यह पाया गया कि आतंकवाद विरोधी कानून (यूएपीए) की धारा 13 मामले पर लागू नहीं होती है.
अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया, ‘वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी ने रिकॉर्ड पर मौजूद परिस्थितियों, सबूतों और बयानों का विश्लेषण किया और राय दी कि आरोपी व्यक्तियों को यूएपीए की धारा 13 के अपराध से नहीं जोड़ा गया है, लेकिन वर्तमान मामला आईपीसी धारा 153ए के तहत आता है, जबकि यूएपीए की धारा 13 को हटा दिया गया है.’
अभियोजन पक्ष ने कहा, ‘गवाहों के बयान, अन्य सबूतों और कानूनी राय के अनुसार वर्तमान मामले में आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए, 505, 506 लगाए गए है और मामले की जांच जारी है.’
इससे पहले, बचाव पक्ष ने अदालत को बताया था कि छात्र कानून का पालन करने वाले नागरिक हैं, जिनका समाज में सम्मान है और वे कभी किसी असामाजिक गतिविधियों में शामिल नहीं हुए. आरोप लगाया कि पुलिस द्वारा उन्हें झूठे और तुच्छ मामले में फंसाया जा रहा है.
दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने छात्रों को अन्य शर्तों के साथ 25,000 रुपये के व्यक्तिगत बॉन्ड और जमानत बॉन्ड पर 13 दिसंबर तक अंतरिम जमानत दे दी. अदालत ने छात्रों से मामले के गवाहों और किसी भी ‘राष्ट्र-विरोधी गतिविधि’ से दूर रहने को कहा.
अदालत ने छात्रों को मामले के संबंध में पूछताछ के लिए उपलब्ध रहने का भी आदेश दिया. अदालत ने कहा, ‘हालांकि, जांच अधिकारी आरोपी व्यक्तियों को सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से पहले नहीं बुलाएगा और अगर आवेदकों को किसी जांच उद्देश्य के लिए बुलाया जाता है तो सीडी में उचित रिकॉर्ड रखा जाएगा.’
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