सुप्रीम कोर्ट द्वारा डिजिटल उपकरणों की ज़ब्ती के नियम बनाने में देरी पर सवाल समेत अन्य ख़बरें

द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.

(फोटो: द वायर)

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सुप्रीम कोर्ट ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा जांच के दौरान मोबाइल फोन और लैपटॉप आदि उपकरणों को जब्त करने पर नए दिशानिर्देश तैयार करने में देरी पर केंद्र सरकार से सवाल किया. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, बुधवार की सुनवाई में केंद्र की तरफ से पेश होते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि समिति कुछ दिशानिर्देश प्रस्तावित करेगी जिसे वह सुनवाई की अगली तारीख पर पीठ के समक्ष रखेंगे. इस पर जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने जवाब दिया कि अदालत को नोटिस दिए दो साल बीत चुके हैं और किसी समयसीमा का पालन करना होगा. इस पर एएसजी ने कहा कि वे अगली सुनवाई में पीठ को दिशानिर्देशों की स्थिति के बारे में सूचित करेंगे और समिति की प्रक्रिया में तेजी लाने का प्रयास करेंगे. इसके बाद पीठ ने अगली सुनवाई 14 दिसंबर तय कर दी.

सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई में कहा कि बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों की ‘असीमित आमद’ न केवल जनसांख्यिकी को बदलती है, बल्कि भारतीय नागरिकों के लिए संसाधनों पर भी बोझ डालती है. द हिंदू के अनुसार, नागरिकता कानून की धारा 6ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुन रही पीठ की अगुवाई कर रहे सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि एक तरफ, हमारे पास कोई खुली सीमा नहीं है जिसके माध्यम से बांग्लादेश से कोई भी भारत में कहीं भी आकर बस सके. साथ ही, यदि हम अवैध प्रवासन को रोकने के लिए कार्रवाई नहीं करते हैं, तो यह भारत में इन सभी समस्याओं का कारण बनता है… कुछ असमिया समूहों की इस याचिका में कहा गया है कि नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए 1985 में असम समझौते के तुरंत बाद लाया गया विशेष प्रावधान भारत में प्रवेश करने वाले अवैध लोगों के लिए असम में बसने, भारतीय नागरिकता पाने, स्थानीय लोगों को उनके राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों से वंचित करने और असमिया सांस्कृतिक पहचान को नष्ट करने की वजह बन गया है. कोर्ट ने गृह सचिव को देशभर 25 मार्च, 1971 के बाद भारत में अवैध प्रवासियों की अनुमानित आमद (असम से परे भी) पर एक हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया, साथ ही अवैध आप्रवासन से निपटने के लिए केंद्र द्वारा उठाए गए कदम और सीमा पर फेंसिंग करने के साथ समयसीमा पर विवरण भी मांगा है.

विदेश मंत्रालय ने बताया है कि भारतीय राजदूत को कतर में मौत की सजा पाए 8 पूर्व नौसेना कर्मियों से मिलने की अनुमति दी गई है. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, बीते अक्टूबर में क़तर में एक साल से अधिक समय से हिरासत में रखे गए आठ पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारियों को मौत की सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद भारत ने अपील की थी. सज़ा सुनाए जाने के बाद भारतीय राजदूत 3 दिसंबर को दोहा की जेल में उनसे मिले. 7 नवंबर को भारत को बंदियों तक कांसुलर एक्सेस मिली थी, हालांकि यह पहली बार है कि भारतीय राजदूत विपुल उनसे मिल सके. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने गुरुवार को मीडिया को बताया कि सजा के खिलाफ भारत की अपील पर दो सुनवाई हो चुकी है और जल्द ही एक और सुनवाई होने की उम्मीद है. विदेश मंत्रालय के अनुसार, कतर अदालत का फैसला गोपनीय है और इसे कानूनी टीम के साथ साझा किया गया है. अगस्त 2022 में बिना किसी आरोप के हिरासत में लिए गए पूर्व नौसैनिक एक निजी फर्म के लिए काम कर रहे थे, जो कतर के सशस्त्र बलों को प्रशिक्षण और उससे संबंधित सर्विस दिया करती थी. ख़बरों के अनुसार, उन पर जासूसी का आरोप लगाया गया था.

बीते सात महीने से जातीय हिंसा से जूझ रहे मणिपुर में दो प्रमुख कुकी संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पैनल की रिपोर्ट का खंडन किया है. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) और जॉइंट फिलैंथ्रोपिक ऑर्गेनाइजेशन (जेपीओ) ने पैनल की रिपोर्ट में किए गए दावों कि पीड़ितों के परिवारों के शव या मुआवजा लेने से इनकार करने का दबाव होने से इनकार किया है. सुप्रीम कोर्ट ने हिंसा में मारे गए सभी लोगों को 11 दिसंबर तक दफनाने या दाह-संस्कार करने के निर्देश जारी किए थे, जिनमें वे 88 लोग भी शामिल हैं जिनकी पहचान हो चुकी है पर उनके परिजनों ने शव पर दावा नहीं किया है. अब पैनल को लिखे एक पत्र में आईटीएलएफ और जेपीओ ने दावा किया है कि समिति को राज्य के अधिकारियों ने गुमराह किया था कि आदिवासी शवों को स्वीकार करने में बाधा डाल रहे हैं.

हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों के दौरान 6 से 20 नवंबर के बीच 1,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा के चुनावी बॉन्ड्स की बिक्री हुई. इंडियन एक्सप्रेस द्वारा दायर एक आरटीआई आवेदन के जवाब में मिली जानकारी बताती है कि चुनावी बॉन्ड योजना के तहत नवीनतम बिक्री (29वीं किश्त) में सर्वाधिक बिक्री तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद (359 करोड़ रुपये) में हुई, इसके बाद मुंबई (259.30 करोड़ रुपये) और दिल्ली (182.75 करोड़ रुपये) रहे. भारतीय स्टेट बैंक से प्राप्त डेटा के अनुसार, तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में हाल के विधानसभा चुनावों के दौरान 2018 में हुए पिछले चुनावों की तुलना में अज्ञात चुनावी बॉन्ड के जरिये मिले राजनीतिक चंदे में 400% से अधिक की बढ़ोतरी देखी गई. 2018 में जब चुनावी बॉन्ड की छठी किश्त 1 नवंबर से 11 नवंबर तक बेची गई, तो कुल बिक्री 184.20 करोड़ रुपये रही थी. उस साल नवंबर-दिसंबर में उक्त पांच राज्यों में चुनाव हुए थे.

भाजपा के एक सांसद ने लिव-इन सबंधों को ‘खतरनाक बीमारी’ बताते हुए इसके लिए कानून बनाने की मांग की है. अमर उजाला के अनुसार, हरियाणा के भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद चौधरी धर्मबीर सिंह ने शून्य काल के दौरान यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि लव मैरिज में तलाक की संभावनाएं ज्यादा दिखती हैं, इसलिए शादी जैसे मामले में  माता-पिता की मंजूरी को अनिवार्य किया जाए. उन्होंने लिव-इन सबंधों को सामाजिक तानेबाने के लिए बेहद घातक भी कहा.