वर्ष 1991 में शराब निषेध अधिनियम पारित होने के बाद से मणिपुर आधिकारिक तौर पर एक ‘ड्राई स्टेट’ था, जहां सिर्फ अनुसूचित जाति और जनजाति के समुदायों को पारंपरिक कारणों से शराब बनाने की छूट दी गई थी. अब ग्रेटर इंफाल, ज़िला मुख्यालयों, पर्यटन स्थलों और कम से कम 20 बेड वाले पंजीकृत होटल प्रतिष्ठानों में शराब बेची और पी जा सकती है.
नई दिल्ली: मणिपुर सरकार ने बुधवार को जारी एक अधिसूचना के माध्यम से राज्य के एक बड़े हिस्से से लंबे समय से चले आ रहे शराब निषेध नियमों को वापस ले लिया है, जिससे तीन दशकों से अधिक समय के बाद राज्य का ‘ड्राई स्टेट’ (Dry state) का दर्जा समाप्त हो गया है.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, एक अधिकारी ने बताया कि शराब अब ग्रेटर इंफाल, जिला मुख्यालयों, पर्यटन स्थलों और कम से कम 20 बेड वाले वाले पंजीकृत होटल आदि में बेची और पी जा सकती है.
बुधवार को एक गजट अधिसूचना में कहा गया, ‘मणिपुर शराब निषेध अधिनियम 1991 (1991 का मणिपुर अधिनियम संख्या 4) की धारा 1 की उपधारा (2) के प्रावधानों के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए मणिपुर के राज्यपाल उक्त अधिनियम को वापस लेते हैं.’
वर्ष 1991 में शराब निषेध अधिनियम पारित होने के बाद से मणिपुर आधिकारिक तौर पर एक ‘ड्राई स्टेट’ बन गया था, जहां अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों को पारंपरिक कारणों से शराब बनाने की छूट दी गई थी.
अधिकारी ने कहा, शराब की बिक्री से राज्य को सालाना कम से कम 600 करोड़ रुपये कमाने में मदद मिलेगी.
शराबबंदी वापस लेने का फैसला सोमवार को मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में लिया गया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह प्रतिबंधित अलगाववादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ऑफ मणिपुर द्वारा पूर्ण प्रतिबंध के बाद आया है.
पिछले साल सितंबर में राज्य मंत्रिमंडल ने जिला मुख्यालयों, पर्यटन स्थलों, सुरक्षा शिविरों और कम से कम 20 बिस्तरों वाले आवास सुविधाओं वाले होटलों सहित कुछ विशिष्ट स्थानों तक बिक्री और खपत को सीमित करते हुए प्रतिबंध हटाने का फैसला किया था.
उस समय सरकार की ओर से कहा गया था कि यह निर्णय अनियमित शराब के सेवन से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं और राज्य के राजस्व को बढ़ावा देने के लिए लिया गया है.
हालांकि, इस कदम की आलोचना हुई थी, विशेष रूप से ड्रग्स और एल्कोहल के खिलाफ लामबंद हुए लगभग 10 संगठनों के एक समूह ने यह कहते हुए आंदोलन शुरू करने की धमकी दी थी कि इस कदम से केवल कुछ ‘सहयोगी उद्यमियों’ को लाभ होगा और एक बड़ा स्वास्थ्य संकट पैदा हो जाएगा.
इस विरोध के बीच मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने इस साल मार्च में इस मुद्दे की जांच कर रिपोर्ट सौंपने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन की घोषणा की थी.