राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े भारतीय मज़दूर संघ (बीएमएस) से जुड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य और प्रारंभिक शिक्षा कर्मचारी संसद तक मार्च कर मांग करेंगे कि केंद्र सरकार उन्हें सरकारी कर्मचारी घोषित करे. बीते 22 नवंबर को भी सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांग लेकर बीएमएस के बैनर तले प्रदर्शन किया था.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की ट्रेड यूनियन शाखा भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) सिर्फ एक महीने के अंतराल में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के खिलाफ अपनी दूसरी विरोध रैली आयोजित करेगी.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, सोमवार (11 दिसंबर) को बीएमएस से जुड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य और प्रारंभिक शिक्षा कर्मचारी संसद तक मार्च कर मांग करेंगे कि केंद्र उन्हें सरकारी कर्मचारी घोषित कर उन्हें सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करे. वे एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसे केंद्र सरकार के कार्यक्रमों को लागू करने वाले अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ता हैं.
इससे पहले 22 नवंबर को सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांग को लेकर बीएमएस के बैनर तले विरोध प्रदर्शन किया था.
कई केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के बैनर तले विरोध करने वालों में आंगनबाड़ी शिक्षक और सहायिकाएं, सरकारी स्कूल के रसोइये और मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) शामिल थे. बीएमएस ने कहा था कि वह स्थायी नौकरियों की उनकी मांग का समर्थन करेगा.
बीएमएस के राष्ट्रीय सचिव पवन कुमार ने कहा, ‘चाहे वह आंगनबाड़ी शिक्षक हों या मध्याह्न भोजन कार्यक्रम के रसोइये, उनके काम अस्थायी नहीं हैं और 45 वर्षों के बाद भी आईसीडीएस की योजनाएं मांग में हैं और लोग ऐसी नौकरियों की तलाश में हैं. उनका वेतन औसतन 5,000 रुपये से कम है और एक करोड़ से अधिक लोग योजना कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे हैं.’
कुमार ने कहा कि ऐसे हजारों योजनाकर्मी विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के लिए राष्ट्रीय राजधानी पहुंचेंगे. उन्होंने कहा कि बीएमएस नेता श्रमिकों के मांग पत्र के साथ केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, धर्मेंद्र प्रधान और मनसुख मंडाविया से मिलेंगे.
10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के खिलाफ पुलिस के लाठीचार्ज का विरोध किया था, जो अपने लगभग 15,000 सहयोगियों की बर्खास्तगी के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे. पत्र में उन्होंने बिहार सरकार से केंद्र के नक्शे कदम पर नहीं चलने का आग्रह किया था.
यूनियनों ने कहा था, ‘सभी यूनियनों द्वारा गठित संयुक्त कार्रवाई समिति ने अपनी वास्तविक मांगों के संबंध में संबंधित विभाग यानी महिला एवं बाल विकास और राज्य सरकार को भी कई अभ्यावेदन दिए हैं, लेकिन उन्हें चर्चा के लिए भी नहीं बुलाया गया, जबकि बिहार में आंगनबाड़ी कर्मचारियों का पारिश्रमिक दोगुना करने का प्रस्ताव एक चुनावी वादा था. कृपया बर्खास्त आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को उनके मूल पदों पर बहाल किया जाए.’