संसदीय समिति ने धार्मिक महत्व के एएसआई संरक्षित स्मारकों में पूजा की अनुमति देने का सुझाव दिया

संसदीय समिति ने अपनी सिफ़ारिशों में कहा है कि ‘देश भर में कई ऐतिहासिक स्मारक बड़ी संख्या में लोगों के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व रखते हैं. ऐसे स्मारकों पर पूजा/धार्मिक गतिविधियों की अनुमति देने से लोगों की वैध आकांक्षाएं पूरी हो सकती हैं’. इस पर संस्कृति मंत्रालय ने कहा कि वह इसकी व्यवहार्यता का पता लगाएगा. 

जम्मू कश्मीर के अनंतनाग में स्थित एएसआई द्वारा संरक्षित 8वीं शताब्दी के मार्तंड सूर्य मंदिर के खंडहरों में पिछले साल पूजा किए जाने पर विवाद हो गया था. (प्रतीकात्मक फोटो साभार: विकिपीडिया/Varun Shiv Kapur)

संसदीय समिति ने अपनी सिफ़ारिशों में कहा है कि ‘देश भर में कई ऐतिहासिक स्मारक बड़ी संख्या में लोगों के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व रखते हैं. ऐसे स्मारकों पर पूजा/धार्मिक गतिविधियों की अनुमति देने से लोगों की वैध आकांक्षाएं पूरी हो सकती हैं’. इस पर संस्कृति मंत्रालय ने कहा कि वह इसकी व्यवहार्यता का पता लगाएगा.

जम्मू कश्मीर के अनंतनाग में स्थित एएसआई द्वारा संरक्षित 8वीं शताब्दी के मार्तंड सूर्य मंदिर के खंडहरों में पिछले साल पूजा किए जाने पर विवाद हो गया था. (प्रतीकात्मक फोटो साभार: विकिपीडिया/Varun Shiv Kapur)

नई दिल्ली: एक संसदीय समिति ने केंद्र सरकार को धार्मिक महत्व वाले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित स्मारकों पर पूजा-अर्चना की अनुमति देने की संभावना तलाशने की सिफारिश की है. ‘भारत में अप्राप्य स्मारकों और स्मारकों की सुरक्षा से संबंधित मुद्दे’ पर रिपोर्ट बीते शुक्रवार (8 दिसंबर) को संसद के दोनों सदनों में पेश की गई.

अगर ऐसा होता है, तो यह एक पंडोरा बॉक्स (यानी कुछ ऐसा शुरू करना जिससे कई अप्रत्याशित समस्याएं पैदा होंगी) खुल जाएगा, क्योंकि कई संरक्षित स्मारकों में जीर्ण-शीर्ण मंदिर, दरगाह, चर्च और अन्य धार्मिक स्थल स्थित हैं. अब तक एएसआई केवल उन स्मारकों पर पूजा और अनुष्ठान की अनुमति देता है, जहां उसके (एएसआई) संरक्षण में आने के समय ऐसी परंपराएं चल रही थीं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, वाईएसआर कांग्रेस के राज्यसभा सांसद वी. विजयसाई रेड्डी की अध्यक्षता वाली इस समिति में विभिन्न राजनीतिक दलों के एक दर्जन से अधिक सांसद शामिल हैं.

समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि ‘देश भर में कई ऐतिहासिक स्मारक बड़ी संख्या में लोगों के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व रखते हैं. ऐसे स्मारकों पर पूजा/धार्मिक गतिविधियों की अनुमति देने से लोगों की वैध आकांक्षाएं पूरी हो सकती हैं’.

समिति ने सिफारिश की कि एएसआई धार्मिक महत्व के केंद्रीय संरक्षित स्मारकों पर पूजा/धार्मिक गतिविधियों की अनुमति देने की संभावना तलाश सकता है, बशर्ते कि ऐसी गतिविधियों का स्मारकों के संरक्षण की स्थिति पर कोई हानिकारक प्रभाव न हो.

अपनी प्रतिक्रिया में संस्कृति मंत्रालय ने कहा कि उसने सिफारिशों पर ध्यान दिया है और इसकी व्यवहार्यता का पता लगाएगा.

पिछले साल मई में जम्मू कश्मीर के अनंतनाग में 8वीं शताब्दी के मार्तंड सूर्य मंदिर के खंडहरों में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा पूजा किए जाने पर एएसआई ने जिला प्रशासन के समक्ष अपनी चिंता व्यक्त की थी. संस्कृति मंत्रालय के तहत काम करने वाली एजेंसी ने इस घटना को अपने नियमों का उल्लंघन माना था.

एएसआई के नियमों के अनुसार, इसके संरक्षित स्थलों पर प्रार्थना की अनुमति केवल तभी दी जाती है, जब एजेंसी द्वारा ऐसे स्थलों का कार्यभार संभालने के समय यहां ‘कार्यशील पूजा स्थल’ थे.

एएसआई के एक अधिकारी ने कहा, ‘निर्जीव स्मारकों पर कोई भी धार्मिक अनुष्ठान नहीं किया जा सकता है, जहां एएसआई-संरक्षित स्थल बनने के बाद पूजा की कोई निरंतरता नहीं रही है.’

सूत्रों का कहना है कि शासन के बीच यह भावना रही है कि महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिरों और स्थलों पर प्रार्थना की अनुमति दी जानी चाहिए, भले ही वे तकनीकी रूप से ‘निर्जीव’ स्मारक हों.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, एएसआई के तहत आने वाले 3,693 केंद्रीय संरक्षित स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों में से एक चौथाई से थोड़ा कम (820) में पूजा स्थल हैं, जबकि बाकी को निर्जीव स्मारक माना जाता है, जहां कोई नया धार्मिक अनुष्ठान शुरू या संचालित नहीं किया जा सकता है. जिन स्थलों पर पूजा स्थल हैं उनमें मंदिर, मस्जिद, दरगाह और चर्च शामिल हैं.

हालांकि मार्तंड सूर्य मंदिर एक समय एक संपन्न पूजा स्थल था, जिसे कर्कोटा वंश के राजा ललितादित्य मुक्तापीड (725 ईसवी से 753 ईसवी) ने 8वीं शताब्दी में बनवाया था. इस मंदिर को 14वीं शताब्दी में सिकंदर शाह मिरी ने नष्ट कर दिया था.

20वीं सदी में जब एएसआई ने संरक्षण के लिए इस मंदिर के खंडहरों को अपने कब्जे में लिया था, तब वहां कोई पूजा या हिंदू अनुष्ठान नहीं हो रहा था.

एएसआई अधिकारियों ने कहा कि इसलिए जब पिछले साल मंदिर परिसर में दो बार पूजा की गई – पहले भक्तों के एक समूह द्वारा और फिर जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की उपस्थिति में – तो यह एएसआई मानदंडों का उल्लंघन था, क्योंकि इस स्मारक को एक निर्जीव स्मारक माना जाता है.

इस बीच, समिति ने संस्कृति मंत्रालय की भी आलोचना की, क्योंकि वह ‘अप्राप्य स्मारकों’ के संबंध में की गई ‘कुल 35 सिफारिशों में से केवल 21’ पर कार्रवाई नोट प्रदान कर सका, जिसे सितंबर 2023 में सार्वजनिक किया गया था.

समिति के बयान में कहा गया है, ‘मंत्रालय 4 अक्टूबर 2023 तक यानी 1 वर्ष और 19 दिनों की अवधि के बाद 324वीं रिपोर्ट में शामिल कुल 35 सिफारिशों में से केवल 21 पर कार्रवाई नोट्स प्रदान करने में सक्षम हो सका है.’

समिति ने कहा कि उसके विचारों की ‘अनदेखी या तुच्छीकरण’ मंत्रालय के विश्वास, विश्वसनीयता और गंभीरता को कम करता है.

समिति के अनुसार, रिपोर्ट 15 जून 2022 को आवश्यक कार्रवाई के लिए मंत्रालय को भेज दी गई थी.

परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने वाली सिफारिशों के जवाब में मंत्रालय की ओर से ‘गंभीरता की इस स्पष्ट कमी पर गहरी चिंता और निराशा’ व्यक्त की है.

इसने दोहराया कि मंत्रालय और एएसआई को ‘समयबद्ध तरीके से प्राथमिकता के आधार पर स्मारकों की पहचान के लिए सर्वेक्षण करना चाहिए’.

इसने सिफारिश की कि सर्वेक्षण के नतीजे ‘सार्वजनिक डोमेन में रखे जाने चाहिए’ और इसमें उन पर किए गए व्यय और स्मारकों और उसके आसपास की समस्याओं से संबंधित डेटा शामिल होना चाहिए.

एएसआई के नियमों के अनुसार, संरक्षित स्थलों पर प्रार्थना की अनुमति केवल तभी दी जाती है, जब वे उन पर कार्यभार संभालने के समय ‘कार्यशील पूजा स्थल’ थे.

रिपोर्ट के अनुसार, जीवित एएसआई स्मारक का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण ताजमहल है, जहां हर शुक्रवार को नमाज होती है. अन्य उल्लेखनीय जीवित स्मारकों में कन्नौज में तीन मस्जिदें, मेरठ में रोमन कैथोलिक चर्च, दिल्ली के हौज खास गांव में नीला मस्जिद और लद्दाख में कई बौद्ध मठ शामिल हैं.

एएसआई रिकॉर्ड के अनुसार, कई संरक्षित स्मारक में ‘अनधिकृत प्रार्थना’ की जाती है. इनमें दिल्ली में लाल गुम्बद, सुल्तान गारी का मकबरा और फिरोजशाह कोटला शामिल हैं.