असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद नागरिकता अधिनियम, 1955 में जोड़ी गई धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीर्ष अदालत में चली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने यह जवाब दाख़िल किया था. केंद्र सरकार ने अपने हलफ़नामे में कहा है कि 2017 और 2022 के बीच कुल 14,346 विदेशियों को निर्वासित किया गया है.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सोमवार (11 दिसंबर) को सुप्रीम कोर्ट में बताया कि चूंकि भारत में अवैध प्रवासी गुप्त रूप से और चोरी-छिपे प्रवेश करते हैं, इसलिए देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले ऐसे अवैध प्रवासियों का सटीक आंकड़ा एकत्र कर पाना संभव नहीं है.
केंद्र ने यह प्रतिक्रिया सुप्रीम कोर्ट द्वारा 25 मार्च 1971 के बाद असम और अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में ‘अवैध प्रवासियों की अनुमानित आमद’ का विवरण मांगने वाले एक निर्देश के जवाब में दी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने कहा कि 2017 और 2022 के बीच कुल 14,346 विदेशियों को निर्धारित समय से अधिक तक रुकने, वीजा उल्लंघन, अवैध प्रवेश आदि कारणों से निर्वासित किया गया.
शीर्ष अदालत असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद नागरिकता अधिनियम-1955 में जोड़ी गई धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. असम के कुछ समूहों ने इस प्रावधान को यह कहते हुए चुनौती दी है कि यह बांग्लादेश से विदेशी प्रवासियों की अवैध घुसपैठ को वैध बनाता है.
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रखने से पहले चार दिनों तक मामले की सुनवाई की थी.
बहरहाल, केंद्र सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच नागरिकता प्रदान करने वाले लोगों की संख्या 17,861 है. इसके अलावा 1 जनवरी 1966 और 25 मार्च 1971 के बीच देश में प्रवेश करने वालों में से 32,381 लोगों के 31 अक्टूबर 2023 तक विदेशी न्यायाधिकरण के एक आदेश द्वारा विदेशी होने का पता चला है.
इसमें भारत-बांग्लादेश सीमा पर बाड़ लगाने का विवरण देते हुए कहा गया कि पश्चिम बंगाल बांग्लादेश के साथ लगभग 2,216.7 किलोमीटर की सीमा साझा करता है, जिसमें से 78 फीसदी की बाड़बंदी कर दी गई है और 435.504 किलोमीटर पर बाड़ लगाया जाना बाकी है, इसमें से लगभग 286.35 किलोमीटर भूमि अधिग्रहण के कारण लंबित है.
हलफनामे में कहा गया है, ‘पश्चिम बंगाल सरकार सीमा पर बाड़ लगाने जैसी राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजनाओं के लिए भी बहुत धीमी, अधिक जटिल प्रत्यक्ष भूमि खरीद नीति का पालन करती है. भूमि अधिग्रहण के विभिन्न मुद्दों को हल करने के संबंध में राज्य सरकार के असहयोग के कारण आवश्यक भूमि प्राप्त करने में काफी देरी हुई है, जिससे पश्चिम बंगाल में भारत-बांग्लादेश सीमा पर बाड़ लगाने का काम समय पर पूरा होने में बाधा उत्पन्न हुई है, जो एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजना है.’
सरकार ने कहा, ‘भारत बांग्लादेश के साथ 4096.7 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा (भूमि/नदी) साझा करता है. पश्चिम बंगाल और असम के अलावा यह मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा और असम से भी गुजरती है.
हलफनामे में कहा गया है कि 4096.7 किलोमीटर में से बाड़ लगाने के लिए व्यवहार्य लंबाई लगभग 3,922.24 किलोमीटर है और गैर-व्यवहार्य लंबाई लगभग 174.5 किलोमीटर है.
सरकार ने कहा कि भारत-बांग्लादेश की पूरी सीमा पर करीब 81.5 फीसदी बाड़बंदी का काम पूरा हो चुका है और उन हिस्सों में काम चल रहा है, जहां बाधा रहित साइट उपलब्ध हैं. गृह सचिव में 3 साल में यह काम पूरा होने की संभावना जताई.
सरकार ने कहा कि भारत-बांग्लादेश की पूरी सीमा पर करीब 81.5 फीसदी बाड़बंदी का काम पूरा हो चुका है और उन हिस्सों में काम चल रहा है जहां बाधा रहित साइट उपलब्ध हैं.
असम को लेकर हलफनामे में कहा गया है कि राज्य बांग्लादेश के साथ लगभग 263 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है, जिसमें से लगभग 210 किलोमीटर में बाड़ लगाई गई है और शेष लंबाई को तकनीकी समाधानों से कवर किया गया है.