भारत को लंबित पॉक्सो मामलों के बैकलॉग को निपटाने में कम से कम नौ साल लगेंगे: अध्ययन

इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड के एक अध्ययन में बताया गया है कि साल 2022 में पॉक्सो अधिनियम के तहत केवल 3% मामलों में सज़ा हुई थी. अध्ययन के अनुसार, देश में 1,000 से अधिक फास्ट-ट्रैक अदालतों में से प्रत्येक हर साल औसतन केवल 28 मामलों का निपटारा कर रही है, जो 165 के लक्ष्य से कहीं पीछे है.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: pixabay/Gerd Altmann)

इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड के एक अध्ययन में बताया गया है कि साल 2022 में पॉक्सो अधिनियम के तहत केवल 3% मामलों में सज़ा हुई थी. अध्ययन के अनुसार, देश में 1,000 से अधिक फास्ट-ट्रैक अदालतों में से प्रत्येक हर साल औसतन केवल 28 मामलों का निपटारा कर रही है, जो 165 के लक्ष्य से कहीं पीछे है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: pixabay/Gerd Altmann)

नई दिल्ली: एक नए अध्ययन में सामने आया है कि यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (पॉक्सो) अधिनियम के तहत लंबित मामलों को निपटाने के लिए भारत को कम से कम नौ साल लगेंगे.

रिपोर्ट के अनुसार, इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड (आईसीपीएफ) के एक अध्ययन ‘जस्टिस अवेट्स: एनालिसिस ऑफ द एफिकेसी ऑफ जस्टिस डिलीवरी मेकेनिज़्म इन केसेस ऑफ चाइल्ड सेक्शुअल अब्यूज़’ (Justice Awaits: An Analysis of the Efficacy of Justice Delivery Mechanisms in Cases of Child Sexual Abuse in India) में कहा गया है कि साल 2022 में पॉक्सो अधिनियम के तहत केवल 3% मामलों में सजा हुई.

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 2019 में घोषणा की थी कि सरकार ‘निर्भया फंड’ का इस्तेमाल करते हुए इन फास्ट-ट्रैक अदालतों बनाएगी. इन अदालतों का उद्देश्य विशेष रूप से पॉक्सो मामलों से निपटना था. उस समय, कानूनी और बाल अधिकार विशेषज्ञों ने आगाह किया था कि जब तक ज्यादा जजों की नियुक्ति नहीं की जाती और पब्लिक प्रॉसिक्यूटर्स को ऐसे मामलों से निपटने के लिए प्रशिक्षित और संवेदनशील नहीं बनाया जाता, केवल फास्ट-ट्रैक अदालतें बनाना काफी नहीं होगा.

आईसीपीएफ अध्ययन के अनुसार, देश में 1,000 से अधिक ऐसी अदालतों में से प्रत्येक हर साल औसतन केवल 28 मामलों का निपटारा कर रही है, जो 165 के लक्ष्य से कहीं पीछे है.

डेक्कन हेराल्ड ने अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि महाराष्ट्र में पॉक्सो मामले में किसी बच्चे को इंसाफ मिलने में साल 2036 तक का समय लग सकता है. इस साल जनवरी तक राज्य की फास्ट-ट्रैक अदालतों में 33,073 ऐसे मामले लंबित थे.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अरुणाचल प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में लंबित मामलों को किसी अंत तक पहुंचाने में 25 साल से अधिक का समय लग सकता है. वहीं आंध्र प्रदेश में किसी शिकायतकर्ता को इंसाफ के लिए साल 2034 तक इंतजार करना होगा क्योंकि राज्य में 8,137 मामले लंबित हैं. इसी तरह राजस्थान और झारखंड में क्रमशः 8,921 और 4,408 मामलों के साथ 2033 तक का समय लगेगा.

कुल मिलाकर, 2022 में प्रत्येक फास्ट ट्रैक विशेष अदालत (एफटीएससी) द्वारा औसतन केवल 28 POCSO मामलों का निपटारा किया गया. और जनवरी 2023 तक भारत की फास्ट ट्रैक अदालतों में कुल 2.43 लाख POCSO मामले लंबित हैं.

अखबार ने कहा कि प्रत्येक मामले के निपटारे पर औसत खर्च 2.73 लाख रुपये था. बताया गया है कि कर्नाटक (919) और गोवा (62) ऐसे दो राज्य हैं जहां सबसे कम लंबित पॉक्सो मामले हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि कोई शिकायतकर्ता इन राज्यों में 2024 तक न्याय पाने की उम्मीद कर सकता है.