द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
राजस्थान में भाजपा की विधानसभा चुनाव में जीत के करीब दस दिन बाद पार्टी ने सांगानेर विधायक भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री चेहरे के तौर पर चुना है. एनडीटीवी के अनुसार, जयपुर की विद्याधर नगर सीट से जीती पूर्व सांसद दीया कुमारी और जयपुर की ही दूदू सीट से विधायक प्रेमचंद बैरवा को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है.अजमेर उत्तर विधायक वासुदेव देवनानी विधानसभा अध्यक्ष होंगे. 56 वर्षीय भजनलाल शर्मा लंबे समय से पार्टी सदस्य हैं और चार बार पार्टी महामंत्री रहे हैं. वे अपने छात्र जीवन के दौरान एबीवीपी से जुड़े रहे हैं. इस बार भाजपा ने सांगानेर से मौजूदा विधायक अशोक लाहोटी का टिकट काटते हुए शर्मा को उतारा था, जहां उन्होंने कांग्रेस के पुष्पेंद्र भारद्वाज को 48,081 वोटों से हराया. भाजपा ने राज्य की 199 में से 115 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं कांग्रेस को 69 सीटें मिली थीं.
सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता क़ानून की धारा 6ए की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. लाइव लॉ के अनुसार, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रखने से पहले चार दिनों तक मामले की सुनवाई की थी. नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए भारतीय मूल के विदेशी प्रवासियों को, जो 1 जनवरी 1966 के बाद, पर 25 मार्च 1971 से पहले असम आए थे, को भारतीय नागरिकता पाने की अनुमति देती है. असम के कुछ समूहों ने इस प्रावधान को यह कहते हुए चुनौती दी है कि यह बांग्लादेश से विदेशी प्रवासियों की अवैध घुसपैठ को वैध बनाता है. इससे पहले अदालत ने सरकार से ‘अवैध प्रवासियों की अनुमानित आमद’ (जो असम तक सीमित न हो) के बारे में बताने को कहा था. इसके जवाब में केंद्र सरकार ने सोमवार को कोर्ट में बताया कि चूंकि भारत में अवैध प्रवासी गुप्त रूप से और चोरी-छिपे प्रवेश करते हैं इसलिए देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले ऐसे अवैध प्रवासियों का सटीक डेटा एकत्र करना संभव नहीं है. इसने अदालत को बताया कि 2017 और 2022 के बीच 14,346 विदेशी नागरिकों को भारत से निर्वासित किया गया था. साथ ही, जनवरी 1966 और मार्च 1971 के बीच असम में प्रवेश करने वाले 17,861 प्रवासियों को नागरिकता दी गई. इसके अलावा, हलफनामे में बताया गया था कि इसी अवधि के दौरान फॉरेन ट्रिब्यूनल द्वारा 32,381 व्यक्तियों को विदेशी घोषित किया गया था और पिछले पांच वर्षों में इन ट्रिब्यूनल को कामकाज के लिए 122 करोड़ रुपये जारी किए गए.
केंद्र सरकार मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) के वेतन को सुप्रीम कोर्ट जज के बराबर करने के लिए संशोधन लाएगी. इस साल अगस्त में मोदी सरकार ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति समिति से सीजेआई को हटाने के लिए नया विधेयक पेश किया था, जिसमें आयुक्तों की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री की समिति बनाने के अलावा तीन सदस्यीय ईसी को कैबिनेट सचिव के समान वेतन देने का प्रस्ताव किया गया था. इसकी खासी आलोचना हुई थी और इसे चुनाव आयोग की स्थिति में गिरावट के रूप में देखा गया था क्योंकि वर्तमान में चुनाव आयुक्तों को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के बराबर माना जाता है. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, विधेयक पेश होने के बाद कई पूर्व सीईसी ने सरकार को पत्र लिखकर इस गिरावट पर चिंता जाहिर की थी. मंगलवार को कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा प्रस्तावित संशोधनों के साथ विधेयक को राज्यसभा में चर्चा और पारित करने के लिए सूचीबद्ध किया गया था.
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन के बीच महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष जस्टिस (रिटायर्ड) आनंद निर्गुडे ने इस्तीफा दे दिया है. द हिंदू ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि निर्गुडे ने आयोग के कामकाज में सरकारी दखल का आरोप लगाते हुए 4 दिसंबर को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार को इस्तीफा सौंपाथा, जिसे 9 दिसंबर को स्वीकार कर लिया गया. इस आयोग को मराठा समुदाय के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन का अध्ययन करने का जिम्मा सौंपा गया था. पिछले सप्ताह दस सदस्यों वाले आयोग के दो सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया था और एक ने कहा था कि वे भी इस बारे में विचार कर रहे हैं. इन सभी ने भी बढ़ते सरकारी हस्तक्षेप का हवाला दिया था. एक सदस्य का कहना था कि सरकार आयोग से पूर्व-निर्धारित धारणा पर एक रिपोर्ट चाहती है कि मराठा पिछड़े हैं. यह एक स्वतंत्र आयोग है, जो डेटा और विश्लेषण के बाद ही निष्कर्ष देगा. सरकार किसी विशेष समुदाय को पिछड़े वर्ग में शामिल करने के लिए आयोग से डेटा देने के लिए कैसे कह सकती है? इसके बाद अब तक कुल चार सदस्य इस्तीफ़ा दे चुके हैं. सूत्रों के अनुसार, अब एकनाथ शिंदे सरकार एक नए आयोग का गठन कर सकती है, जिसमें मराठों को कोटा देने की प्रक्रिया में तेजी लाने में के लिए मराठा समुदाय के अधिक सदस्य शामिल हो सकते हैं.
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने साल 2018 से जेल में बंद कश्मीरी पत्रकार आसिफ़ सुल्तान को रिहा करने का आदेश दिया है. द टेलीग्राफ के मुताबिक, न्यूज़ मैगज़ीन ‘कश्मीर नैरेटर’ के रिपोर्टर आसिफ़ को 2018 में उन आतंकवादियों को शरण देने के आरोप में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत केस दर्ज कर गिरफ़्तार किया गया था, जिन्होंने उस साल श्रीनगर में एक मुठभेड़ के दौरान एक पुलिसकर्मी की हत्या कर दी थी. पिछले साल अप्रैल में आसिफ को चार साल जेल में बिताने के बाद एनआईए अदालत ने जमानत दे दी थी, लेकिन उसकी हिरासत को बढ़ाने के लिए जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया था. अब हाईकोर्ट ने पीएसए को रद्द कर दिया है. हालांकि, इसने जोड़ा है कि उन्हें रिहा कर दिया जाना चाहिए, बशर्ते किसी अन्य मामले में उनकी जरूरत न हो.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने कैंपस के किसी भी शैक्षणिक या प्रशासनिक भवन के 100 मीटर के दायरे में धरना देने, भूख-हड़ताल, किसी अन्य प्रकार का विरोध प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए नए नियम जारी किए हैं. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, नए नियमों के तहत धरना-प्रदर्शन, भूख हड़ताल आदि करने पर छात्रों पर अब 20,000 रुपये तक का जुर्माना लगाने के साथ कैंपस से उनका निष्कासन या दो सेमेस्टर के लिए कैंपस से उन्हें बाहर किया जा सकता है. नए नियमों में पूर्व अनुमति के बिना परिसर में ‘फ्रेशर्स की स्वागत पार्टियों, विदाई या डीजे कार्यक्रम जैसे आयोजन करने’ के लिए दंड की बात भी कही गई है. ऐसी पार्टियां आयोजित करने वाले छात्रों पर या तो 6,000 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है और/या उन्हें जेएनयू में सामुदायिक सेवा करनी पड़ सकती है. इसके साथ ही विश्वविद्यालय के किसी भी सदस्य के आवास के आसपास किसी भी प्रकार के विरोध प्रदर्शन पर भी रोक लगाई गए है.