कुकी-जो जनजातियों के समूह, इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने जातीय हिंसा से प्रभावित राज्य में लोगों से अनुरोध किया है कि वे ‘खुले तौर पर विशिष्ट’ समारोहों में शामिल न हों और सभी समुदायों और चर्चों से केवल सामान्य चर्च सेवा करने और दावतें तथा फेलोशिप कार्यक्रम आयोजित न करने के लिए कहा है.
नई दिल्ली: मणिपुर के चुराचांदपुर जिले के लमका में मान्यता प्राप्त कुकी-जो जनजातियों के समूह ‘इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम’ (आईटीएलएफ) ने बीते बुधवार (13 दिसंबर) को जातीय हिंसा प्रभावित इस राज्य में क्रिसमस और नए साल का जश्न सीमित तरीके से मनाने का आह्वान किया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एक ‘एडवाइजरी’ में आईटीएलएफ के मीडिया और प्रचार कार्यकारी गिन्ज़ा वुएलज़ोंग ने कहा कि फोरम ने लोगों से अनुरोध किया है कि वे ‘खुले तौर पर विशिष्ट’ समारोहों में शामिल न हों और सभी समुदायों और चर्चों से केवल सामान्य चर्च सेवा करने और दावतें तथा फेलोशिप कार्यक्रम या ‘लेंगखौम’ आयोजित न करने के लिए कहा गया है.
आईटीएलएफ की एडवाइजरी में लोगों से फुटसल जैसे खेल रात 8 बजे तक खत्म करने और उस समय तक दुकानें और खाद्य स्टॉल बंद करके बाहरी गतिविधियों को सीमित करने के लिए भी कहा गया है.
मणिपुर हिंसा जिसमें सितंबर तक चार महीनों में 175 लोगों की जान चली गई और 1,100 से अधिक घायल हुए हैं, का जिक्र करते हुए संगठन ने सभी नागरिकों से राज्य में ‘मौजूदा माहौल’ के कारण विशेष रूप से क्रिसमस और नए साल के दौरान किसी भी गड़बड़ी के लिए ‘सतर्क’ और ‘तैयार रहने’ के लिए भी कहा है.
एडवाइजरी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए डेमोक्रेटिक स्टूडेंट अलायंस मणिपुर के महासचिव लीशांगत्शेम लाम्बियानबा ने कहा कि आईटीएलएफ खुद का वर्णन करने के लिए इंडिजिनस (स्वदेशी) का गलत इस्तेमाल कर रहा है. साथ ही कहा कि मेईतेई समुदाय ने नगा जैसे स्वदेशी समुदायों के साथ शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व बनाए रखा है.
लामयांबा ने कहा कि क्रिसमस या नए साल के जश्न को लेकर कोई भी चिंता निराधार है. उन्होंने कहा, ‘हम नगाओं जैसे कई स्वदेशी लोगों के साथ सह-अस्तित्व में हैं. वे हमेशा लोगों को बांटना, नफरत बोना और अराजकता पैदा करना चाहते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘हम उनकी एडवाइजरी को बहुत गंभीरता से नहीं लेते. हम जानते हैं कि वे स्थिति पर कैसे और क्यों प्रतिक्रिया दे रहे हैं. हम उनके उद्देश्यों को पहले से ही जानते हैं. हम उन पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते. सभी जातीय समुदायों के लोगों को तय करने दें कि क्या करना है.’
मालूम हो कि बीते 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 200 से अधिक लोगों की जान चली गई है. यह हिंसा तब भड़की थी, जब बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था.
मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.