जामिया मस्जिद की प्रबंध संस्था अंजुमन औक़ाफ़ ने कहा कि इन प्रतिबंधों के लिए अधिकारियों द्वारा कोई कारण नहीं बताया गया है. वहीं, कश्मीर के प्रमुख मौलवी मीरवाइज़ ने एक बयान में कहा कि शासकों द्वारा तथाकथित सामान्य स्थिति के सभी दावे ऐसे जनविरोधी क़दमों से विफल हो जाते हैं.
नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर में अधिकारियों ने बिना किसी आधिकारिक स्पष्टीकरण के लगातार 10वें शुक्रवार को श्रीनगर शहर की ऐतिहासिक मस्जिद जामिया मस्जिद में सामूहिक नमाज की अनुमति नहीं दी.
14वीं सदी की मस्जिद की प्रबंध संस्था अंजुमन औकाफ जामिया मस्जिद ने एक बयान में कहा कि श्रीनगर में अधिकारियों ने उदारवादी हुर्रियत प्रमुख मीरवाइज उमर फारूक को भी शुक्रवार (15 दिसंबर) को नजरबंद कर दिया.
मीरवाइज, जो कश्मीर के प्रमुख मौलवी भी हैं, शुक्रवार की सामूहिक नमाज से पहले और अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक दिनों में मस्जिद में मुख्य उपदेश देते हैं.
प्रबंध संस्था ने बयान में कहा, ‘इन प्रतिबंधों और अंकुशों के लिए अधिकारियों द्वारा कोई कारण नहीं बताया गया है.’
मीरवाइज ने बयान में कहा, ‘शासकों द्वारा तथाकथित सामान्य स्थिति के सभी दावे ऐसे जनविरोधी कदमों से विफल हो जाते हैं.’ उन्होंने अधिकारियों पर जामिया मस्जिद को निशाना बनाने का आरोप लगाते हुए प्रतिबंधों की निंदा करते हुए कहा, ‘बार-बार घाटी के मुसलमानों को दुख पहुंचाने के साथ उन्हें ‘नया कश्मीर’ में उनकी जगह दिखाई जा रही है.’
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए मीरवाइज ने कहा कि अधिकारियों को ‘मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं के साथ खेलना बंद करना चाहिए और उन्हें अपनी मस्जिदों में बिना किसी बाधा के नमाज अदा करने देना चाहिए.’
भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र द्वारा पाकिस्तान के साथ कश्मीर मुद्दे पर 2002 में शुरू की गई बातचीत का हिस्सा रहे मीरवाइज ने कहा, ‘लोगों की चुप्पी और उनके धार्मिक अधिकारों पर बेशर्म हमलों को सहने के कारण उनके जवाब देने की क्षमता कमतर नहीं समझा जाना चाहिए.’
इस साल सितंबर में चार साल से अधिक समय के बाद उदारवादी हुर्रियत प्रमुख मीरवाइज को ‘नजरबंदी’ से रिहा कर उन्हें श्रीनगर के नौहट्टा स्थित मस्जिद में शुक्रवार का उपदेश देने की अनुमति दी गई थी, जो कभी अलगाववादियों का केंद्र हुआ करती थी.
22 सितंबर को अपनी रिहाई के बाद से मीरवाइज ने 13 में से दो शुक्रवार को मस्जिद में अपना उपदेश दिया.
जहां अधिकारियों ने कथित तौर पर जामिया मस्जिद को बंद करने को उचित ठहराया है, वहीं मस्जिद के प्रबंधन निकाय ने अधिकारियों पर सुरक्षा चिंताओं की आड़ में कश्मीर के लोगों के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है.
ऐतिहासिक मस्जिद को बंद करने का निर्णय ऐसे समय में आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को हटाने और जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के केंद्र सरकार के 5 अगस्त, 2019 के विवादास्पद फैसले को बरकरार रखा है.
पिछले महीने अधिकारियों ने इस आशंका के बीच मस्जिद में शुक्रवार की नमाज की अनुमति नहीं दी थी कि लोग गेट सील करके गाजा के समर्थन में और इजराइल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं.
इससे पहले कश्मीर स्थित कुछ उपदेशकों ने स्थानीय प्रशासन पर, जो सीधे केंद्र द्वारा चलाया जाता है, घाटी भर की मस्जिदों में शुक्रवार को अपने उपदेशों में फिलिस्तीन के उल्लेख को ‘म्यूट’ करने का आरोप लगाया था.
केंद्र शासित प्रदेश में धार्मिक स्थलों का संचालन करने वाले जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड के अधिकारियों के ‘मौखिक निर्देशों’ के कारण कुछ उपदेशकों ने आरोप लगाया था कि उनसे श्रीनगर की एक दरगाह में एक प्रमुख सूफी संत के वार्षिक उत्सव के दौरान ‘फिलिस्तीन मुद्दे का उल्लेख करने से बचने’ के लिए कहा गया था.
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