गुजरात हाईकोर्ट ने कैडिला फार्मा के सीएमडी के ख़िलाफ़ रेप के आरोपों की जांच का आदेश दिया

एक बुल्गारियाई महिला ने अहमदाबाद स्थित कैडिला फार्मास्यूटिकल्स के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक राजीव मोदी और कंपनी के एक अन्य कर्मचारी पर बलात्कार, हमला और आपराधिक धमकी समेत अन्य आरोप लगाए हैं. अक्टूबर में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने महिला की शिकायत ख़ारिज को कर दिया था.

(फोटो साभार: फेसबुक/@officialcadilapharma)

एक बुल्गारियाई महिला ने अहमदाबाद स्थित कैडिला फार्मास्यूटिकल्स के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक राजीव मोदी और कंपनी के एक अन्य कर्मचारी पर बलात्कार, हमला और आपराधिक धमकी समेत अन्य आरोप लगाए हैं. अक्टूबर में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने महिला की शिकायत ख़ारिज को कर दिया था.

(फोटो साभार: फेसबुक/@officialcadilapharma)

नई दिल्ली: गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य की मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की एक अदालत के आदेश को दरकिनार करते हुए शुक्रवार को निर्देश दिया कि एक बुल्गारियाई महिला द्वारा अहमदाबाद की कैडिला फार्मास्यूटिकल्स के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक राजीव मोदी पर लगाए गए बलात्कार और यौन उत्पीड़न का आरोपों की राज्य डीआईजी (कानून एवं व्यवस्था) द्वारा नामित एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी द्वारा जांच की जानी चाहिए. इससे पहले मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की एक अदालत ने महिला की शिकायत को खारिज कर दिया था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, हाईकोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि जांच दो महीने के भीतर पूरी की जाए.

यह देखते हुए कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने ‘कानून के उचित नियमों का पालन नहीं किया’, हाईकोर्ट के जस्टिस एचडी सुथार की पीठ ने 27 वर्षीय महिला की शिकायत पर कार्रवाई न करने के लिए पुलिस की भी खिंचाई की. महिला ने पहली बार इस साल मई में पुलिस से संपर्क किया था.

यौन उत्पीड़न की शिकायत करने वाली महिलाओं के संघर्ष पर टिप्पणी करते हुए जस्टिस सुथार ने अपने आदेश में कहा, ‘केवल कुछ निर्भीक और साहसी पीड़ित पीड़ा सहने और कानूनी लड़ाई शुरू करने के लिए तैयार होते हैं. मौजूदा परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए पुलिस प्राधिकारी और विद्वान मजिस्ट्रेटों को ऐसी शिकायतों से संवेदनशील तरीके से निपटना चाहिए.’

शिकायतकर्ता, जो पिछले साल अगस्त में सीएमडी मोदी के लिए फ्लाइट अटेंडेंट और निजी सहायक के रूप में कार्यरत थीं, ने इस साल फरवरी और मार्च के बीच यौन उत्पीड़न के कई मामलों का आरोप लगाया था. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सीएमडी मोदी की ‘अवैध मांगों’ से इनकार करने के बाद उन्हें अप्रैल में नौकरी से निकाल दिया गया था.

महिला ने जुलाई में मजिस्ट्रेट अदालत में याचिका दायर कर सीएमडी और कंपनी के एक अन्य कर्मचारी जॉनसन मैथ्यू पर बलात्कार, आपराधिक हमला और आपराधिक धमकी समेत अन्य आरोप लगाए थे. उन्होंने मजिस्ट्रेट अदालत से तत्काल एफआईआर दर्ज करने और पुलिस अधिकारियों, विशेष रूप से महिला थाने की एसीपी हिमाला जोशी, जिनसे उन्होंने पहली बार उनसे संपर्क किया था, के खिलाफ कार्रवाई के लिए दिशानिर्देश देने की मांग की थी.

हालांकि, अक्टूबर में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत ने महिला की याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का रुख किया.

इस आदेश को रद्द करते हुए जस्टिस सुथार ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को ‘निष्पक्ष जांच की जरूरत सहित मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए’ सीआरपीसी धारा 156 (3) के तहत जांच का आदेश पारित करने का निर्देश दिया.

जस्टिस सुथार ने कहा, ‘शिकायत में लगाए गए आरोप संज्ञेय अपराध के हैं और अपराध की जांच करना और जांच के बाद उचित रिपोर्ट दाखिल करना पुलिस का कर्तव्य है. चूंकि याचिकाकर्ता ने आरोपों की स्वतंत्र रूप से जांच करने और कोई निर्णय लेने के बजाय पुलिस की ओर से निष्क्रियता के खिलाफ आवाज उठाई है, इसलिए मजिस्ट्रेट ने केवल पुलिस अधिकारियों की रिपोर्ट पर भरोसा किया.’

आगे जस्टिस सुथार ने कहा, ‘यद्यपि मजिस्ट्रेट आरोपों की प्रकृति को देखते हुए स्वतंत्र रूप से जांच करने के लिए बाध्य थे, लेकिन उन्होंने कानून के उचित नियमों का पालन नहीं किया.’

उनके आदेश में कहा गया है, ‘जांच के रिकॉर्ड और कार्यवाही को देखते हुए, जांच कार्यवाही करते समय मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया के संबंध में बहुत सारी अनियमितताएं देखी गईं. एक ओर विद्वान मजिस्ट्रेट सबूत पेश करने का पर्याप्त अवसर नहीं देते और शिकायत में लगाए गए आरोपों को साबित करने के लिए गवाहों को पेश करने का अवसर देने से इनकार करते हैं और दूसरी तरफ कहते हैं कि शिकायतकर्ता ने कोई सबूत पेश नहीं किया है.’

इसमें कहा गया, ‘मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने कानून की स्थिति का पालन नहीं किया और शिकायत को खारिज करने में गलती की.’

जस्टिस सुथार ने पुलिस अधिकारियों की ढीली जांच को लेकर कहा, ‘हालांकि शिकायत में प्रथमदृष्टया मानव तस्करी के आरोप सहित संज्ञेय और गैर-समाधान योग्य अपराधों का खुलासा किया गया था, यह पुलिस का कर्तव्य था कि वह आरोपों की पूरी तरह से और निष्पक्ष रूप से जांच करे, विशेष रूप से मानव तस्करी के मामले में.’

अपनी शिकायत में महिला ने दावा किया है कि महिला थाने और अन्य अधिकारियों के पास एफआईआर दर्ज करने के उनके प्रयास असफल रहे और महिला थानाकर्मियों ने उन पर शिकायत वापस लेने का दबाव डाला.

इस संबंध में जस्टिस सुथार ने सरकार को पुलिस अधिकारियों के खिलाफ ड्यूटी में लापरवाही के आरोपों की जांच करने का निर्देश दिया और कहा कि यदि कोई गलती पाई जाती है, तो वे उचित कार्रवाई के लिए स्वतंत्र हैं.