बीते महीने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने नए नियमों में कैंपस के किसी भी शैक्षणिक या प्रशासनिक भवन के पास धरना देने, विरोध प्रदर्शन और भूख हड़ताल पर 20,000 रुपये के जुर्माने, कैंपस से निष्कासन की बात कही थी. 23 दिसंबर को इसके विरोध में छात्रों ने परिसर में मशाल मार्च निकाला.
नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के छात्रों ने बीते 23 दिसंबर को विश्वविद्यालय परिसर में विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ मशाल मार्च निकाला. वजह है कि जेएनयू प्रशासन की ओर से पिछले दिनों चीफ प्रॉक्टर कार्यालय द्वारा एक मैनुअल जारी किया गया था, जो छात्रों के बीच नाराज़गी का कारण बना हुआ है. इसमें मुख्य रूप से विश्वविद्यालय परिसर में प्रदर्शन करने पर 20,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है, वहीं ‘देशद्रोही’ नारे लगाने पर 10,000 तक का जुर्माना हो सकता है.
जेएनयू प्रशासन के फैसले पर छात्रों ने अपनी नाराज़गी व्यक्त करते हुए यह मार्च गंगा ढाबा से चंद्रभागा हॉस्टल तक निकाला गया था. इसमें शामिल जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष ओईशी घोष ने कहा, ‘हम जेएनयू के छात्रों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. छात्रसंघ ने हमेशा से इस तरह के फैसलों की कड़ी निंदा की है. इस तरह के फैसले बिल्कुल छात्र विरोधी हैं. जेएनयू हमेशा से आंदोलन का गढ़ रहा है, किसी भी गलत बात या सरकार और प्रशासन की गलत नीतियों का खिलाफ जेएनयू के छात्र हमेशा से खड़े हुए हैं और सवाल करते रहे हैं लेकिन शायद यह बात यूनिवर्सिटी प्रशासन को खटकती है. जिसके चलते इस तरह के फैसले किए जाते हैं.
ओईशी के अनुसार, उन पर पहले से विरोध प्रदर्शनों को लेकर जुर्माना लगा हुआ है. वे आगे कहती हैं, ‘इस मार्च द्वारा जेएनयू के छात्र यही संदेश देना चाहते हैं कि जिस तरह से देश के अन्य विश्वविद्यालयों में लोकतांत्रिक माहौल को धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है, छात्रों से बोलने की आज़ादी छीनी जा रही है वे जेएनयू में यह नहीं होने देंगे.’
ओईशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया का उदाहरण देते हुए जोड़ा कि वहां छात्रों को प्रदर्शन करने पर या अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने पर विश्वविद्यालयों से निष्कासित कर दिया जा रहा है या उन पर कारवाइयां हो रही हैं.
ज्ञात हो कि 24 नवंबर 2023 को यूनिवर्सिटी की कार्यकारी परिषद ने चीफ प्रॉक्टर ऑफिस मैनुअल को मंजूरी दी. इसमें ‘छात्रों के अनुशासन और उचित आचरण के नियम’ सूचीबद्ध हैं. मैनुअल (नए नियमों) में पूर्व अनुमति के बिना परिसर में ‘फ्रेशर्स की स्वागत पार्टियों, विदाई या डीजे कार्यक्रम जैसे आयोजन करने’ के लिए दंड की भी रूपरेखा दी गई है. हालांकि, सबसे ज्यादा विरोध परिसर में होने वाले प्रदर्शनों पर लगाए गए जुर्माने को लेकर है.
नए नियम कैंपस के किसी भी शैक्षणिक या प्रशासनिक भवन के 100 मीटर के दायरे में धरना देने, भूख-हड़ताल करने, गुटबाजी या किसी अन्य प्रकार का विरोध प्रदर्शन पर रोक लगाते हैं. नए नियमों के तहत धरना-प्रदर्शन, भूख हड़ताल आदि करने पर छात्रों पर अब 20,000 रुपये तक का जुर्माना लगाने के साथ कैंपस से उनका निष्कासन या दो सेमेस्टर के लिए कैंपस से उन्हें बाहर किया जा सकता है.
उधर, छात्र संघ का कहना है कि छात्रों को जब यूनिवर्सिटी में हो रही समस्याओं पर प्रदर्शन करना होता है तो वे प्रशासनिक ब्लॉक पर ही प्रदर्शन करते हैं. अगर वे उनकी मांगें और समस्याएं यूनिवर्सिटी प्रशासन को नहीं बताएंगे तो किसे बताएंगे?
जेएनयू छात्र संघ के जॉइंट सेक्रेटरी दानिश कहते हैं, ‘पहले के निर्देशों में यह शामिल था कि हम प्रशासनिक ब्लॉक के 100 मीटर के दायरे में कोई प्रदर्शन नहीं कर सकते. लेकिन अब उसी बात को फिर नए अंदाज़ से ले आना दर्शाता है कि किस तरह से धीरे-धीरे छात्रों से लोकतांत्रिक अधिकार छीनने का प्रयास हो रहा है.
दानिश आगे जोड़ते हैं, ‘जेएनयू एक संवेदनशील कैंपस है, कहीं कोई अन्याय होता है या फिर लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाया जाता है तो यहां के छात्र हमेशा उस पर अपना विरोध दर्ज कराते हैं. और यही बात प्रशासन को नापसंद है. इसलिए वे आए दिन छात्र विरोधी निर्देश जारी करते रहते हैं.’
बता दें कि इस तरह के निर्देश जेएनयू प्रशासन की ओर से पहले भी जारी किए जाते रहे हैं. इसी साल मार्च महीने में यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से विरोध प्रदर्शनों पर 50,000 तक का जुर्माना लगाया गया था, जो छात्रों के प्रतिरोध के बाद वापस ले लिया गया. लेकिन फिर नवंबर में इस तरह का निर्देश दिए गए और इस दफा भी जेएनयू के छात्र लगातार इसका विरोध कर रहे हैं.
सेंटर फ़ॉर पॉलिटिकल स्टडीज़ की छात्रा अनघा बताती हैं, ‘इस मामले पर छात्रों ने यूनिवर्सिटी प्रशासन को एक पत्र भी लिखा और प्रशासन से बात करने की भी कोशिश की, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने अब तक उसका कोई जवाब नहीं दिया.’
अनघा ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय प्रशासन चाहता है कि यूनिवर्सिटी में उनके खिलाफ कोई प्रदर्शन न हो, छात्र उनके ग़लत फैसलों की आलोचना न करें और वे जैसे चाहें वैसे यूनिवर्सिटी को चलाएं. अनघा यह भी दावा करती हैं कि प्रशासन की मंशा है कि विश्वविद्यालय का निजीकरण हो और फीस बढ़ जाए.
अनाघा आगे बताती हैं, ‘सितंबर के महीने में जेएनयू के कई हॉस्टलों में पानी की समस्या पेश आई, यहां तक कि हॉस्टल में दिनभर में सिर्फ एक घंटा पानी आ रहा था जिसका छात्रों के स्वास्थ्य पर पड़ा. इस मामले पर यूनिवर्सिटी प्रशासन से बात करने की कोशिश की गई लेकिन जब कई बार बात करने के बाद भी प्रशासन की ओर से कोई खास कदम उठाया नहीं गया तो इन हॉस्टल के अध्यक्षों व छात्रों ने कुलपति आवास पर प्रदर्शन किया. इसके बाद इन छात्रों को वजह बताओ नोटिस भेजा गया जिनमें मैं भी शामिल हूं. अभी कहा गया कि एक सप्ताह के भीतर इस नोटिस का जवाब दिया जाए अगर ऐसा नहीं हुआ तो छात्रों पर कार्रवाई की जाएगी.
छात्रों ने प्रशासन के इस फैसले को मनमाना करार दिया है. शनिवार को हुए मार्च में छात्रों ने संसद से विपक्षी सांसदों के निलंबन, देशभर के विश्वविद्यालयों में लोकतांत्रिक माहौल पर भी चिंता व्यक्त की. साथ ही जेएनयू में जल्द ही छात्र संघ चुनाव करवाने की मांग उठाई.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)