डीयू के रामानुजन कॉलेज ने फैकल्टी सदस्यों और शोधार्थियों के लिए भगवद गीता पर आधारित सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किया है. कॉलेज द्वारा जारी कॉन्सेप्ट नोट में कहा गया है कि इससे जुड़कर, प्रतिभागी न केवल आध्यात्मिक समझ को समृद्ध करेंगे बल्कि देश की सांस्कृतिक और दार्शनिक विरासत से भी परिचित होंगे.
नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के तहत एक कॉलेज ने फैकल्टी सदस्यों और शोधार्थियों के लिए ‘श्रीमद्भगवद गीता: ज्ञानोदय और प्रासंगिकता’ पर एक सर्टिफिकेट/रिफ्रेशर कोर्स शुरू किया है.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, रामानुजन कॉलेज में भगवद गीता की शिक्षाओं पर आधारित 20 दिन का सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम 22 दिसंबर से शुरू हुआ है और 10 जनवरी, 2024 तक चलेगा.
इसमें 18 व्याख्यान सहित 20 सत्र होंगे. कॉलेज द्वारा जारी एक कॉन्सेप्ट नोट के अनुसार, चयनित व्याख्यानों में अर्जुन विषाद योग, सांख्य योग, कर्म योग, ज्ञान योग, कर्म संन्यास योग, ध्यान योग, विज्ञान योग, अक्षर परब्रह्म योग, राज विद्या योग, विभूति योग, विश्वरूप संदर्शन योग, भक्ति योग और मोक्ष संन्यास योग शामिल हैं.
नोट में कहा गया है, ‘श्रीमद्भगवद-गीता प्रबोध एवं प्रासंगिकता पर 20 दिवसीय सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम, ‘श्रीमद भगवद गीता’ के पवित्र छंद प्रत्येक मनुष्य के जीवन में युगांतरकारी परिवर्तन करने में सक्षम हैं. यह पाठ्यक्रम श्रीमद भगवद गीता के प्रत्येक अध्याय को गहराई से जानने, उसके दार्शनिक प्रत्ययों को प्रस्तुत करता है. यह पाठ्यक्रम भारत के उद्देश्य के साथ आवयविक रूप से संबद्ध है, जो भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित चिंतन के संरक्षण और प्रसार के लिए मील का पत्थर साबित होगा.’
इसमें आगे कहा गया है, ‘श्रीमद्भगवद गीता जीवन के लिए एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक है जो कर्तव्य, धर्म और आत्म-बोध के मार्ग पर महत्वपूर्ण, समयातीत सीखों को अपने में समाहित किए हुए है. इससे जुड़कर, प्रतिभागी न केवल अपनी आध्यात्मिक समझ को समृद्ध करेंगे बल्कि भारत की सांस्कृतिक और दार्शनिक विरासत से भी परिचित होंगे.’
दो फैकल्टी सदस्यों के अनुसार, यह पहली बार है कि डीयू का कोई कॉलेज इस तरह का कोर्स पेश कर रहा है.
डीयू अकादमिक परिषद (एसी) की सदस्य माया जॉन ने पाठ्यक्रम की पेशकश के पीछे के औचित्य पर सवाल उठाया.
जॉन ने कहा, ‘भगवद गीता कॉलेज के छात्रों के किसी भी पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं है, चाहे वह इतिहास हो, या राजनीति विज्ञान या अंग्रेजी साहित्य. सवाल यह है कि क्या इस पाठ्यक्रम की पेशकश से शिक्षकों के छात्रों को पढ़ाने के कौशल में वृद्धि होती है. क्या यह अनुसंधान कौशल को बढ़ा रहा है? कैसे? इन सवालों का कोई जवाब नहीं है.’
उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम सभी विषयों के शिक्षकों के लिए खुले हैं. आमतौर पर, ये रिफ्रेशर पाठ्यक्रम शिक्षण और अनुसंधान पद्धति और ज्ञान के अपदेशन पर केंद्रित होते हैं.
जॉन ने कहा कि हाल के वर्षों में अकादमिक स्टाफ कॉलेजों, जिन्हें अब मदन मोहन मालवीय केंद्र के रूप में जाना जाता है, में पेश किए जाने वाले रिफ्रेशर पाठ्यक्रमों का ध्यान धार्मिक ग्रंथों को पढ़ाने पर रहा है, वह भी एक विशेष धर्म से.
जॉन ने कहा, ‘रिफ्रेशर पाठ्यक्रम शिक्षकों की पढ़ाने के लिए क्षमता बढ़ाने के लिहाज़ से डिज़ाइन करने के बजाय हिंदुत्व विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए आयोजित किए जा रहे हैं. आरएसएस और विहिप से जुड़े लोगों को विशेषज्ञ कहा जाता है जिनका शिक्षण या शोध से कोई संबंध नहीं होता. यह राजनीतिक सांठगांठ अपने चरम पर है.’