मालूम हो कि केंद्रीय गृह मंत्रालय, असम सरकार और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के वार्ता समर्थक गुट ने बीते 29 दिसंबर को एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे. परेश बरुआ के नेतृत्व वाला दूसरा गुट, जिसे उल्फा (आई) के नाम से जाना जाता है, शांति प्रक्रिया में शामिल नहीं हुआ है.
नई दिल्ली: यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम या उल्फा (इंडिपेंडेंट) के वार्ता-विरोधी गुट के नेता परेश बरुआ ने संगठन के वार्ता-समर्थक गुट के साथ हस्ताक्षरित त्रिपक्षीय शांति समझौते को ‘शर्मनाक’ बताया है. उन्होंने कहा कि ‘जब क्रांतिकारी अपने लक्ष्य और आदर्श को छोड़ दें तो राजनीतिक समाधान संभव नहीं होता.’
द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, बरुआ ने असमी टेलीविजन चैनल ‘प्रतिदिन टाइम’ से बातचीत में कहा है, ‘हम हैरान, चिंतित या क्रोधित नहीं हैं, बल्कि समझौते से शर्मिंदा हैं. हम परिणाम से अवगत थे, क्योंकि जब क्रांतिकारी अपने लक्ष्य, आदर्श और विचारधारा छोड़ देते हैं, तो राजनीतिक समझौता संभव नहीं होता है.’
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा के साथ उनकी बातचीत के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘हां, उन्होंने मुझसे बात की थी. हमने राजनीतिक समाधान की मांग की है. हम इस लक्ष्य से नहीं हटेंगे और राज्य के लोगों के साथ विश्वासघात नहीं करेंगे. अगर राजनीतिक मांगें पूरी नहीं की जाती हैं और केवल पैकेज दिया जाता है, तो यह स्वीकार्य नहीं है. हम शुरू से कह रहे हैं कि वे (वार्ता समर्थक गुट) तथाकथित व्यवस्था के गलत रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं.’
बरुआ के नेतृत्व वाला कट्टरपंथी उल्फा (आई) तब तक बातचीत के लिए तैयार नहीं है, जब तक कि ‘असम की संप्रभुता’ के मुद्दे पर चर्चा नहीं की जाती है.
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने इन मुद्दों पर अपने पूर्व साथियों के साथ चर्चा की है, उल्फा (आई) नेता ने कहा कि संगठन के महासचिव अनूप चेतिया ने उनसे बात की थी और उन्होंने चेतिया को राजनीतिक समझौते के लिए मनाने की कोशिश की थी, लेकिन चेतिया ने बताया कि वार्ताकारों ने यह मांग यह कहते हुए ठुकरा दी है कि ‘भारतीय संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘क्या वे यह जाने बिना बातचीत करने गए कि संविधान में क्या है? बातचीत संविधान के दायरे से बाहर करनी होगी.’
बरुआ ने दावा किया कि चेतिया ने उनसे कहा था कि उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है.
बरुआ ने कहा, ‘अगर कोई अन्य विकल्प नहीं था, तो उन्हें लोगों को बताना चाहिए कि उन्हें धोखा दिया गया है.’
बरुआ ने आगे दावा किया कि चेतिया ने कहा कि वह वार्ता प्रक्रिया की शुरुआत के बाद से वहां नहीं थे और ‘अब सुधार करना संभव नहीं है’.
उल्फा महासचिव चेतिया 1997 से 18 साल की सजा काटने के बाद 2015 में बांग्लादेश की जेल से रिहा होने के बाद वार्ता प्रक्रिया में शामिल हुए थे.
बरुआ ने कहा, ‘हम उनके (वार्ता समर्थक गुट) के साथ सहयोग नहीं कर सकते, क्योंकि हमने अपने आदर्शों और विचारधारा को नहीं छोड़ा है. हम तब तक बातचीत की मेज पर नहीं बैठ रहे हैं, जब तक कि नगा फ्रेमवर्क समझौते की तर्ज पर चर्चा नहीं होती है, जिसमें संसाधनों पर नियंत्रण, एक अलग संविधान और ध्वज शामिल है.’
भूटान में ‘ऑपरेशन ऑल क्लियर’ सहित सुरक्षा अभियानों के दौरान लापता उल्फा नेताओं और कैडरों के बारे में उन्होंने कहा, ‘जिन्होंने समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, उनके पास उनके (लापता उग्रवादियों) के बारे में पूछने का अवसर था, चाहे वे मर गए हों या जीवित हों और अगर जिंदा हैं तो उनका ठिकाना क्या है.’
बरुआ ने कहा, ‘उन्हें विवरण जानने के अपने अधिकार का दृढ़ता से प्रयोग करना चाहिए था, लेकिन जब उनके पास कोई आदर्श नहीं बचा है, तो उनमें ये सवाल पूछने का साहस नहीं होगा.’
समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद ली गई एक तस्वीर का जिक्र करते हुए, जिसमें वार्ता समर्थक उल्फा नेता, जिसमें इसके अध्यक्ष अरबिंद राजखोवा और महासचिव अनूप चेतिया, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा और वरिष्ठ अधिकारियों के पीछे खड़े दिखाई दे रहे थे, बरुआ ने आरोप लगाया कि ‘उन्हें बुनियादी सम्मान से वंचित किया गया जो असमिया समुदाय के लिए अपमानजनक था और इससे वास्तव में दुख हुआ.’
उन्होंने कहा, ‘अपने-अपने समझौते पर हस्ताक्षर के दौरान नगा और बोडो नेताओं को मंत्रियों और अधिकारियों के साथ बैठे देखा गया, लेकिन मुझे नहीं पता कि उल्फा नेताओं को इस बुनियादी सम्मान से क्यों वंचित किया गया.’
मालूम हो कि केंद्रीय गृह मंत्रालय, असम सरकार और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के वार्ता समर्थक गुट ने बीते शुक्रवार (29 दिसंबर) को एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे.
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि ‘त्रिपक्षीय समझौता असम की शांति के लिए महत्वपूर्ण है’ और सरकार ने राज्य में सभी हिंसक समूहों को खत्म करने में सफलता हासिल की है.
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा था कि शांति समझौते के मुख्य बिंदु यह थे कि असम की 126 विधानसभा सीटों में से 97 सीटें स्वदेशी लोगों के लिए आरक्षित होंगी और भविष्य में परिसीमन प्रक्रिया इसी सिद्धांत का पालन करेगी. मुख्यमंत्री ने कहा था, ‘यह असम के लोगों की राजनीतिक असुरक्षा के सवाल का समाधान करेगा.’
उन्होंने कहा था कि शांति समझौते में 1.5 लाख करोड़ रुपये के निवेश का वादा किया गया है और भूमि अधिकारों की रक्षा तथा एक निर्वाचन क्षेत्र से दूसरे निर्वाचन क्षेत्र में प्रवास पर प्रतिबंध लगाकर संवैधानिक सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी.
अरबिंद राजखोवा के नेतृत्व में उल्फा का 16 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल शुक्रवार को नॉर्थ ब्लॉक में शांति समझौते पर हस्ताक्षर के समय उपस्थित था. समूह 2011 में शांति वार्ता में शामिल हुआ, जब उसने गृह मंत्रालय और असम सरकार के साथ ऑपरेशन के निलंबन (एसओओ) पर हस्ताक्षर किए थे.
परेश बरुआ के नेतृत्व वाला दूसरा गुट, जिसे उल्फा-आई के नाम से जाना जाता है, शांति प्रक्रिया में शामिल नहीं हुआ है. कहा जाता है कि बरुआ चीन में हैं और उन्हें 100 कैडरों का समर्थन प्राप्त है, जो मुख्य रूप से म्यांमार सीमा से काम करते हैं.
उल्फा का जन्म साल 1979 के विदेशी-विरोधी आंदोलन के दौरान असमिया लोगों के लिए एक संप्रभु राज्य की मांग के दौरान हुआ था, जब 1971 के बाद बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के समय कई बंगाली भाषी लोग भारत में आ गए थे.