एनएचआरसी ने पिछले महीने 13 लोगों की हत्या पर मणिपुर सरकार को नोटिस जारी किया

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पिछले महीने जातीय हिंसा प्रभावित मणिपुर में एक ही घटना में 13 लोगों की हत्या का स्वत: संज्ञान लेते हुए इस घटना को ‘ख़तरनाक और परेशान करने वाला’ बताया है. बीते 4 दिसंबर को म्यांमार सीमा के क़रीब मणिपुर के तेंगनौपाल ज़िले में भीषण गोलीबारी के बाद कम से कम 13 लोगों के शव मिले थे.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: एक्स/@manipur_police)

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पिछले महीने जातीय हिंसा प्रभावित मणिपुर में एक ही घटना में 13 लोगों की हत्या का स्वत: संज्ञान लेते हुए इस घटना को ‘ख़तरनाक और परेशान करने वाला’ बताया है. बीते 4 दिसंबर को म्यांमार सीमा के क़रीब मणिपुर के तेंगनौपाल ज़िले में भीषण गोलीबारी के बाद कम से कम 13 लोगों के शव मिले थे.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने पिछले महीने जातीय हिंसा प्रभावित मणिपुर में एक ही घटना में 13 लोगों की हत्या पर स्वत: संज्ञान लिया है और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर नागरिकों की सुरक्षा के अपने कर्तव्य की याद दिलाई.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने कहा कि ग्राम रक्षा स्वयंसेवकों ने 4 दिसंबर को कुकी जनजाति क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद 13 लोगों की हत्या कर दी थी. बीते 3 मई यानी 8 महीने से राज्य में जारी बहुसंख्यक मेईतेई और कुकी समुदायों के बीच झड़पों में यह एक दिन में सबसे ज्यादा मौतें थीं, जिसमें लगभग 200 लोग मारे गए हैं.

अपने नोटिस में एनएचआरसी ने इस घटना को ‘खतरनाक और परेशान करने वाला’ बताया, जो कानून लागू करने वाली एजेंसियों और शांति, कानून व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए वहां तैनात बलों की ओर से चूक को दर्शाता है.

इसने राज्य पुलिस से प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) की स्थिति और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए उठाए गए कदमों पर एक रिपोर्ट सौंपने को कहा.

एक अधिकारी ने कहा कि मणिपुर पुलिस ने जवाब दाखिल किया है और विवरण उपलब्ध कराया है. उन्होंने विस्तार से नहीं बताया.

असम राइफल्स को बीते 4 दिसंबर को म्यांमार सीमा के करीब मणिपुर के तेंगनौपाल जिले में कम से कम 13 लोगों के शव मिले थे. मई में भड़की जातीय हिंसा के बाद से यह एक दिन में हुआ जान-माल का सबसे ज्यादा नुकसान था.

एक रक्षा सूत्र ने बताया था कि कुकी बहुल इलाके तेंगनौपाल के लीथाओ गांव में दो समूहों के बीच भीषण गोलीबारी की खुफिया जानकारी मिलने के बाद असम राइफल्स की एक टीम 4 दिसंबर की सुबह करीब 10:30 बजे घटनास्थल पर पहुंची थी.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश मृतक मेईतेई समुदाय के प्रभुत्व वाली इंफाल घाटी के विभिन्न हिस्सों से थे. उनमें से कम से कम दो – चुराचांदपुर जिले के तोरबुंग से एक और तेंगनौपाल जिले के मोरेह से एक व्यक्ति – राहत शिविरों में रह रहे थे. उनमें से कई किशोर थे, तीन सबसे कम उम्र के मृतक 16 वर्ष के थे.

दिसंबर महीने में भी एनएचआरसी ने इस घटना को लेकर मणिपुर सरकार को नोटिस जारी किया था.

आयोग ने कहा था कि घटना राज्य में शांति और कानून व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए कानून लागू करने वाली एजेंसियों और तैनात बलों की ओर से चूक का संकेत देती है.

आयोग ने मणिपुर के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर मामले में विस्तृत रिपोर्ट मांगी ​थी. इसमें पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर की स्थिति और राज्य में कहीं भी हिंसा की ऐसी घटनाएं न होना सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदम की जानकारी भी मांगी गई थी.

मालूम हो कि 3 मई को मणिपुर में मेईतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद से पिछले 8 महीनों में अब तक लगभग 200 लोग मारे गए हैं, सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हुए हैं और 60,000 लोग विस्थापित हुए हैं.

3 मई को बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बीच दोनों समुदायों के बीच यह हिंसा भड़क उठी थी.

मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.