सुप्रीम कोर्ट ने महुआ को राहत देने से इनकार किया, उनके निष्कासन पर लोकसभा महासचिव से जवाब मांगा

पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर लोकसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस की विधायक महुआ मोइत्रा को बीते 8 दिसंबर को एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट में उनके ख़िलाफ़ कैश-फॉर-क्वेरी के आरोप में अनैतिक आचरण का आरोप लगाए जाने के बाद निष्कासित कर दिया गया था. मोइत्रा पर संसद में सवाल पूछने के लिए दुबई के व्यवसायी से रिश्वत लेने के आरोप हैं.

महुआ मोइत्रा. (फोटो साभार: एक्स वीडियोग्रैब)

पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर लोकसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस की विधायक महुआ मोइत्रा को बीते 8 दिसंबर को एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट में उनके ख़िलाफ़ कैश-फॉर-क्वेरी के आरोप में अनैतिक आचरण का आरोप लगाए जाने के बाद निष्कासित कर दिया गया था. मोइत्रा पर संसद में सवाल पूछने के लिए दुबई के व्यवसायी से रिश्वत लेने के आरोप हैं.

महुआ मोइत्रा. (फोटो साभार: एक्स वीडियोग्रैब)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते बुधवार (3 जनवरी) लोकसभा से अपने निष्कासन को चुनौती देने वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा की याचिका पर लोकसभा के महासचिव को नोटिस जारी किया है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि जिन मुद्दों पर अदालत गौर करेगी, उनमें से एक यह है कि क्या अदालत के पास लोकसभा के कार्यों की समीक्षा करने का अधिकार क्षेत्र है.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस लाइन का विरोध करते हुए कहा, ‘सरकार का एक संप्रभु अंग अपने आंतरिक अनुशासन का फैसला कर रहा है. तो अगर कोई न्यायिक समीक्षा हो भी सकती है, तो उसका दायरा क्या है?’

शीर्ष अदालत ने कहा कि लोकसभा महासचिव को तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करना होगा. मोइत्रा को अगर हो तो इसका जवाब दाखिल करने के लिए अतिरिक्त तीन सप्ताह का समय मिलेगा.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, महुआ मोइत्रा के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत से अनुरोध किया कि उन्हें वोट देने या एक सांसद के रूप में वेतन लेने के अधिकार के बिना भी अंतरिम रूप से संसद की कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति दी जाए, लेकिन अदालत ने इसे ठुकरा दिया.

जस्टिस खन्ना ने कहा, ‘नहीं, यह वस्तुत: आपकी रिट याचिका को अनुमति देना होगा, जब हम स्वयं संदेह में हों.’

पीठ ने कहा कि वह अब 11 मार्च से शुरू होने वाले सप्ताह में मामले की फिर से सुनवाई करेगी. आम चुनाव होने से पहले वर्तमान लोकसभा का एक और सत्र (बजट सत्र) होगा.

बुधवार को अदालत में सिंघवी ने दलील दी कि मोइत्रा को केवल इस कारण से निष्कासित किया गया, क्योंकि उन्होंने अपने (लोकसभा एकाउंट के) लॉगिन क्रेडेंशियल साझा किए थे.

उन्होंने कहा, ‘पोर्टल में लॉग इन एक्सेस का मतलब इसके उपयोग पर नियंत्रण नहीं है, क्योंकि पोर्टल को एक ओटीपी के अतिरिक्त चरण की आवश्यकता होती है, जो केवल उन्हें (मोइत्रा) भेजा जाता है.’

उन्होंने कहा, ‘कोई भी सांसद लोकसभा एकाउंट को स्वयं संचालित नहीं करता है. आवश्यकता पड़ने पर हर सांसद विभिन्न सचिवीय कर्मचारियों को पोर्टल का एक्सेस सौंपता है.’

उन्होंने कहा, ‘कोई भी मौजूदा आचार संहिता या अन्य कानून अधिकृत और नियंत्रित पहुंच को नियंत्रित करने वाले किसी भी दिशानिर्देश या प्रतिबंध को निर्धारित नहीं करता है… इसलिए आपने एक्सेस कोड को साझा करने के लिए नियमों को बनाए बिना ही उन्हें निष्कासित कर दिया.’

सिंघवी ने कहा, ‘लॉगिन क्रेडेंशियल गैर-सदस्यों के साथ साझा करना निषिद्ध नहीं है, बल्कि यह सांसदों के बीच एक स्थापित प्रथा है. इसे साझा करना निश्चित रूप से नैतिक उल्लंघन नहीं है.’

उन्होंने कहा कि एथिक्स कमेटी प्राकृतिक न्याय के प्राथमिक सिद्धांतों का पालन किए बिना अपने निष्कर्ष पर पहुंची है.

उन्होंने कहा, ‘दो निजी नागरिकों ने एक पत्र भेजा. मुझे उनसे जिरह करने की अनुमति नहीं है, हालांकि उनके द्वारा कही गईं बातों के बीच सीधा विरोधाभास है.’

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इस पर जस्टिस खन्ना ने पूछा कि क्या जिरह की मांग की गई है, सिंघवी ने जवाब दिया, ‘कई बार’. उन्होंने कहा कि (दुबई के व्यवसायी दर्शन) हीरानंदानी को ‘प्रमुख गवाह होने के बावजूद भी तलब नहीं किया गया’.

‘विरोधाभास’ को समझाने की कोशिश करते हुए सिंघवी ने कहा कि (मामले के शिकायतकर्ता वकील जय अनंत) देहाद्राई के अनुसार, हीरानंदानी संसद में प्रश्न पूछने के लिए मोइत्रा को रिश्वत दे रहे थे. हालांकि, हीरानंदानी ने दावा किया कि मोइत्रा उनकी ओर से संसदीय प्रश्न प्रस्तुत करने के लिए उन पर दबाव डाल रही थीं.

जस्टिस दत्ता ने जानना चाहा कि क्या ऐसा कोई निष्कर्ष नहीं निकला कि उन्होंने (मोइत्रा) ओटीपी साझा किया था.

इस बात पर सहमति जताते हुए कि मोइत्रा ने ओटीपी साझा किया, सिंघवी ने कहा, ‘हर सांसद का एक नामांकित व्यक्ति होता है, जिसके साथ वे इसे साझा करते हैं, लेकिन यह उनके (मोइत्रा) द्वारा नियंत्रित है.’

उन्होंने कहा, ‘संसद में बहुत सारी अनियमितताएं हैं. बहुमत लोकतंत्र का संपूर्ण सार है. अगर आप हर अनियमितता को उठा लेंगे और लोगों को बाहर निकालना शुरू कर देंगे, तो लोकतंत्र का कोई सवाल ही नहीं बचेगा.’

उन्होंने कहा कि लोकसभा सदस्यों को 495 पन्नों की एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट की जांच करने का अवसर दिए बिना मोइत्रा को निष्कासित कर दिया गया.

सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘राज्य के किसी अन्य अंग (संसद) के कामकाज में एक अंग (न्यायपालिका) द्वारा कोई भी हस्तक्षेप संविधान के तहत निहित शक्तियों के पृथक्करण का उल्लंघन होगा.’

मेहता ने यह भी कहा कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल है और पोर्टल का उपयोग मोइत्रा के निजी सहायक ने नहीं, बल्कि एक उद्योगपति ने किया था.

पीठ ने कहा कि वह ‘इस स्तर पर किसी भी चीज पर टिप्पणी नहीं करना चाहेगी’, और जो मुद्दे उठेंगे उनमें से एक अदालत के अधिकार क्षेत्र और न्यायिक समीक्षा की शक्ति के संबंध में होगा.

मालूम हो कि महुआ मोइत्रा पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर लोकसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस की विधायक हैं. बीते 8 दिसंबर को एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट में उनके खिलाफ कैश-फॉर-क्वेरी के आरोप में अनैतिक आचरण का आरोप लगाए जाने के बाद उन्हें निष्कासित कर दिया गया था.

समिति के अध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद विनोद कुमार सोनकर हैं. मोइत्रा ने जांच को ‘गंदी, अनैतिक, स्त्रीद्वेषपूर्ण’ बताया था. इसे लेकर कई विपक्षी सांसद सदन से वॉकआउट भी कर गए थे.

यह जांच तब हुई जब भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने एक वकील जय अनंत देहाद्राई के साथ मिलकर समिति में शिकायत दर्ज कराई थी कि कि टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने संसद में सवाल पूछने के लिए दुबई के व्यवसायी दर्शन हीरानंदानी से रिश्वत ली थी.

मोइत्रा ने द्रेहाद्राई को ‘जिल्टेड लवर’ बताया था.

शिकायत में कहा गया है कि मोइत्रा ने अपने लोकसभा एकाउंट के आधिकारिक ईमेल का पासवर्ड हीरानंदानी के साथ साझा किया था. साथ ही दावा किया गया था कि इस कृत्य से ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ से समझौता हुआ है.

बीते 27 अक्टूबर को द इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक साक्षात्कार में मोइत्रा ने स्वीकार किया था कि उन्होंने हीरानंदानी को अपना लॉगिन और पासवर्ड विवरण दिया था, लेकिन उनसे कोई नकद लेने से इनकार किया, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के वकील जय अनंत देहाद्राई ने सीबीआई को अपनी शिकायत में आरोप लगाया था.