पत्रकारिता सभ्यता का दर्पण और खोजी पत्रकारिता इसका एक्स-रे है: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने वर्ष 2008 में कुछ पत्रकारों के ख़िलाफ़ दर्ज मानहानि के मामले से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि ईमानदार पत्रकारिता सुनिश्चित करने के लिए पत्रकारों को अदालतों के संरक्षण की आवश्यकता है, ताकि वे हानिकारक परिणामों से डरे बिना समाचार प्रकाशित कर सकें.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Allen Allen/Flickr CC BY 2.0)

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने वर्ष 2008 में कुछ पत्रकारों के ख़िलाफ़ दर्ज मानहानि के मामले से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि ईमानदार पत्रकारिता सुनिश्चित करने के लिए पत्रकारों को अदालतों के संरक्षण की आवश्यकता है, ताकि वे हानिकारक परिणामों से डरे बिना समाचार प्रकाशित कर सकें.

(फोटो साभार: indialegallive.com)

नई दिल्ली: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि पत्रकारिता सभ्यता का एक दर्पण और खोजी पत्रकारिता इसका एक्स-रे है.

एनडीटीवी के मुताबिक, यह टिप्पणी हाईकोर्ट ने कुछ पत्रकारों के खिलाफ 2008 के एक मानहानि के मामले में जारी समन और इसके बाद की सभी कार्यवाही को रद्द करते हुए कही.

जस्टिस अनूप चितकारा की पीठ ने 4 जनवरी के अपने आदेश में यह भी कहा कि पत्रकार सत्ता के स्वतंत्र निगरानीकर्ता के रूप में काम करते हैं और जनता की भलाई तथा सुरक्षा के लिए सूचनाएं प्रदान करते हैं.

पीठ ने आदेश में कहा, ‘पत्रकारिता सभ्यता का दर्पण है, खोजी पत्रकारिता इसका एक्स-रे है.’

यह मामला 2008 में आईपीएस अधिकारी (अब सेवानिवृत्त) पीवी राठी द्वारा वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ दायर मानहानि के मुकदमे से संबंधित है. पत्रकारों में एक दैनिक अखबार के तत्कालीन चंडीगढ़ संपादक विपिन पब्बी भी शामिल थे.

अदालत ने फैसले में कहा, ‘पत्रकारिता किसी भी लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होता है. एक पत्रकार के रूप में पत्रकार का महत्वपूर्ण कर्तव्य नागरिकों के प्रति निष्ठा है.  पत्रकार सत्ता की स्वतंत्र रूप से निगरानी करते हैं, जनता की भलाई तथा सुरक्षा के लिए सूचनाएं प्रदान करते हैं, सार्वजनिक व्यवस्था में किसी भी समस्या या कमी को संबोधित करते हैं ताकि यह प्रभावी ढंग से काम करे और समस्याओं का तत्काल निवारण हो.’

अदालत ने आगे कहा, ‘सच को सामने लाने और मीडिया के माध्यम से जनता को ऐसे तथ्यों की जानकारी देने के अपने कर्तव्य के निडर अनुपालन में इन साहसी पत्रकारों को विभिन्न बाधाओं का सामना करना पड़ता है- जैसे कि प्रभावशाली दलों, समूहों या सरकारी एजेंसियों आदि का दबाव.’

जस्टिस चितकारा ने अपने आदेश में उल्लेख किया, ‘वास्तविक घटनाओं की ईमानदारी से और सही रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने के लिए ऐसे पत्रकारों को अदालतों, विशेष रूप से संवैधानिक अदालतों, के संरक्षण की आवश्यकता है ताकि वे हानिकारक परिणामों के डर के बिना समाचार प्रकाशित कर सकें.’

जस्टिस चितकारा ने पब्बी और तीन अन्य पत्रकारों द्वारा दायर याचिकाओं का निपटारा करते हुए कहा, ‘इस प्रकार, सभी अदालतों को ऐसे साहसी मनुष्यों के हितों की रक्षा करते हुए अधिक सतर्क और सक्रिय होना चाहिए.’

गौरतलब है कि सभी के खिलाफ 2008 में मानहानि से संबंधित आईपीसी की धाराओं में शिकायत दर्ज की गई थी. पब्बी और अन्य याचिकाकर्ता उस संगठन से अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं जिसमें वे तब कार्यरत थे.

उन पर धारा 499 (मानहानि), 500 (मानहानि की सजा) और 501 (किसी व्यक्ति को लेकर कोई मानहानिकारक सामग्री छापना) के तहत आरोप लगाए गए थे.

पत्रकारों ने समन रद्द करने और गुरुग्राम सत्र न्यायालय द्वारा आपराधिक पुनरीक्षण को खारिज करने के फैसले को रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था.

एक याचिकाकर्ता के मामले में अदालती आदेश में कहा गया है, ‘खबर को पूरी तरह से पढ़ने – जिसमें याचिकाकर्ता का खंडन, उसका पक्ष, पुलिस का पक्ष शामिल हैं – पर यह कहा जा सकता है कि उसे अच्छी निष्ठा और लोकतंत्र में अपने दायित्वों के निर्वहन के तहत प्रकाशित किया गया था, और अगर ऐसी खबरों को प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगाया जाता है तो यह गलत होगा.’

अदालती आदेश में कहा गया है, ‘भले ही शिकायत में उल्लिखित याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपों और प्रारंभिक साक्ष्यों को पूरी तरह से स्वीकार कर लिया जाए, लेकिन वे आईपीसी की धारा 499 के किसी भी वास्तविक उल्लंघन की ओर इशारा करने में विफल रहते हैं.’

इसके बाद अदालत ने समन और इसके बाद की सभी कार्यवाही के साथ-साथ आपराधिक पुनरीक्षण में पारित आदेश को भी रद्द कर दिया.