उत्तर प्रदेश में छह साल पहले केंद्र की मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत काम करने वाले शिक्षकों का वेतन कथित तौर पर रोक दिया गया था. अब यूपी सरकार ने इन शिक्षकों को 2016 से दिए जाने वाले मानदेय या ‘अतिरिक्त धन’ का भुगतान भी बंद करने का फैसला किया है. लंबित वेतन को लेकर ये शिक्षक दिसंबर 2023 से लखनऊ में धरना दे रहे हैं.
नई दिल्ली: पूरे उत्तर प्रदेश में केंद्र की मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत काम करने वाले शिक्षकों का वेतन कथित तौर पर रोके जाने के लगभग छह साल बाद राज्य सरकार ने अब इन शिक्षकों को 2016 से दिए जाने वाले मानदेय या ‘अतिरिक्त धन’ का भुगतान बंद करने का फैसला किया है.
इन शिक्षकों – जिन्हें ‘आधुनिक’ शिक्षकों के रूप में जाना जाता है – का आरोप है कि उन्हें 2017 से वेतन नहीं दिया गया है. उनका कहना है कि वे 2016 से मिलने वाले ‘अतिरिक्त पैसे’ पर निर्भर हैं – एक पहल जिसे राज्य सरकार ने उसी वर्ष शुरू किया था, शिक्षकों द्वारा यह आरोप लगाए जाने के बाद कि उनका वेतन वितरण पहले भी ‘अनियमित’ था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अपने ‘लंबित वेतन’ की मांग को लेकर कई आधुनिक शिक्षक 18 दिसंबर 2023 से लखनऊ के इको गार्डन में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. यह जानने के बाद कि राज्य सरकार ने ‘अतिरिक्त पैसा’ बंद कर दिया है, जिस पर वे आश्रित थे, शिक्षकों ने बुधवार (10 जनवरी) को अपना विरोध तेज करने का फैसला किया.
मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत आधुनिक शिक्षक जो स्नातक हैं, उन्हें 6,000 रुपये प्रति माह मिलते हैं और जो स्नातकोत्तर हैं, उन्हें 12,000 रुपये का भुगतान किया जाता है. वेतन के बजाय इन शिक्षकों को ‘अतिरिक्त धन’ मिल रहा है – स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षकों के लिए क्रमशः 2,000 रुपये और 3,000 रुपये – जिसकी घोषणा राज्य सरकार ने 2016 में की थी.
राज्य भर में चल रहे 7,442 पंजीकृत मदरसों में 21,000 से अधिक आधुनिक शिक्षक तैनात हैं. इनमें से लगभग 8,000 हिंदू समुदाय के हैं. वे लगभग 10 लाख छात्रों को हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान जैसे विषय पढ़ाते हैं. पंजीकृत मदरसों में से 560 सरकारी सहायता प्राप्त हैं.
उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष इफ्तिखार अहमद जावेद ने बुधवार को आधुनिक शिक्षकों को ‘अतिरिक्त धन’ का भुगतान खत्म करने के सरकार के फैसले की पुष्टि की.
8 जनवरी को राज्य सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण और वक्फ विभाग की निदेशक जे. रीभा ने सभी जिला अल्पसंख्यक अधिकारियों को पत्र लिखकर निर्णय की जानकारी दी. बुधवार को इंडियन एक्सप्रेस द्वारा रीभा के फोन पर किए गए कॉल का जवाब नहीं दिया गया.
इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा, ‘वेतन रोके जाने के बाद आधुनिक शिक्षकों ने जल्द से जल्द अपना बकाया पाने की उम्मीद में मदरसों में छात्रों को पढ़ाना जारी रखा. वे राज्य सरकार द्वारा दिए जा रहे ‘अतिरिक्त धन’ पर निर्भर थे. अब इन शिक्षकों की उम्मीद टूटने लगी है. संभावना है कि मदरसा छात्रों को आधुनिक शिक्षा प्रदान करने की अवधारणा ही जल्द खत्म हो सकती है.’
बुधवार को अहमद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि राज्य और देश में मदरसा आधुनिकीकरण योजना को ‘नवीनीकरण’ किया जाए. उन्होंने प्रधानमंत्री से उनका लंबित बकाया जारी करने का भी अनुरोध किया.
रिपोर्ट के मुताबिक, बकाया वेतन की मांग को लेकर लखनऊ में पिछले साल से प्रदर्शन कर रहे मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक एकता समिति के अध्यक्ष अशरफ अली ने कहा, ‘हमें 2017 से वेतन नहीं मिला है. कुछ शिक्षकों ने तब से नौकरी छोड़ दी है. बचे हुए लोगों ने अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए वेंडिंग, सिलाई, रिक्शा चलाना और खेती जैसे छोटे-मोटे काम करना शुरू कर दिया. पांच महीने पहले राज्य ने अतिरिक्त पैसा देना भी बंद कर दिया.’
अली ने कहा, ‘आधुनिक शिक्षकों के रूप में काम करने वाले लगभग 21,000 लोग अब बेरोजगार हैं. अब उनके लिए मदरसों में जाने का कोई कारण नहीं है.’
विरोध कर रहे आधुनिक शिक्षकों ने तब तक अनिश्चितकालीन आंदोलन करने का फैसला किया है, जब तक कि सरकार उनके लिए किसी भी संभावित मदद के बारे में घोषणा नहीं करती.
अली ने कहा, ‘हम कार्रवाई की मांग करते हैं. अगर केंद्र यह योजना नहीं चलाएगा तो राज्य सरकार को यह योजना चलानी चाहिए और हमारा बकाया चुकाया जाना चाहिए.’
2016 के एक सरकारी आदेश का हवाला देते हुए एक वरिष्ठ आधिकारिक अधिकारी ने बुधवार को कहा कि ‘(राज्य द्वारा) अतिरिक्त धन’ केवल तब तक दिया जाना था जब तक कि केंद्र ने योजना जारी रखी, जो 2021-22 में समाप्त हो गई.
मदरसों में हिंदी, अंग्रेजी, विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान और अन्य भाषाओं में शिक्षा प्रदान करने के लिए मदरसा आधुनिकीकरण योजना 1993-94 में तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी, जिसका नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया. एक मदरसे में अधिकतम तीन आधुनिक शिक्षक नियुक्त किए जाते हैं.
अप्रैल 2021 में इस योजना को शिक्षा मंत्रालय से अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया.
पहले इसे मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की योजना (एसपीक्यूईएम) कहा जाता था, अब इसे मदरसों/अल्पसंख्यकों में शिक्षा प्रदान करने की योजना (एसपीईएमएम) नाम दिया गया है.
इस योजना के तहत केंद्र और राज्य सरकारों ने 2018 में वेतन को 60:40 के अनुपात में विभाजित करने का निर्णय लिया था. 2018 से पहले वेतन का भुगतान पूरी तरह से केंद्र द्वारा किया जाता था. प्रबंधन समितियों की अनुशंसा पर जिला अल्पसंख्यक अधिकारियों द्वारा मदरसों में आधुनिक शिक्षकों की नियुक्ति की जाती थी.