महाराष्ट्र सरकार ने राज्य की सीमा से लगे 865 मराठी बहुल गांवों में एक स्वास्थ्य बीमा योजना लागू करने का फैसला किया गया है. इन ख़बरों के बीच कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने यह बयान दिया है. दोनों राज्यों के बीच सीमा का यह विवाद 1957 में शुरू हुआ था, जब राज्यों को भाषाई आधार पर पुनर्गठित किया गया था.
नई दिल्ली: महाराष्ट्र सरकार ने राज्य की सीमा से लगे 865 मराठी बहुल गांवों में एक स्वास्थ्य बीमा योजना लागू करने का फैसला किया गया है. इन खबरों के बीच कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बीते बुधवार (17 जनवरी) को कहा कि महाराष्ट्र सरकारी अधिकारियों को राज्य में प्रवेश न करने के लिए कहा गया है.
इससे पहले कर्नाटक के बेलगावी में महाराष्ट्र सरकार की इस योजना को लागू करने वाले चार केंद्रों को सील कर दिया गया था.
बुधवार को मुख्यमंत्री ने बेलगावी जिले के बैलाहोंगला तालुक में सैनिक स्कूल के उद्घाटन के लिए रवाना होने से पहले संवाददाताओं से कहा, ‘हमारे मुख्य सचिव ने (अपने महाराष्ट्र समकक्ष से) बात की है और उनसे (सरकारी अधिकारियों) कर्नाटक में प्रवेश न करने के लिए कहा है.’
द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह कदम कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच बेलगावी पर सीमा विवाद के बीच उठाया गया है, जो समय-समय पर भड़कता रहता है. यह विवाद 1957 में शुरू हुआ था, जब राज्यों को भाषाई आधार पर पुनर्गठित किया गया था.
महाराष्ट्र ने बेलगावी पर दावा किया, जो तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था, क्योंकि यहां बड़ी संख्या में मराठी भाषी आबादी है. इसने 800 से अधिक मराठी भाषी गांवों पर भी दावा किया जो वर्तमान में कर्नाटक का हिस्सा हैं.
कर्नाटक का कहना है कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम और 1967 महाजन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भाषाई आधार पर किया गया सीमांकन अंतिम है.
बेलगावी को राज्य का अभिन्न अंग बताते हुए कर्नाटक ने वहां ‘सुवर्ण विधान सौध’ का निर्माण कराया, जो बेंगलुरु में राज्य विधानसभा पर आधारित है.
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, बेलगावी जिला प्रशासन ने बीते शनिवार (13 जनवरी) को बेलगावी शहर में महाराष्ट्र सरकार की ‘महात्मा ज्योतिराव फुले जनआरोग्य बीमा योजना’ से संबंधित सेवाएं देने वाले चार केंद्रों को सील कर दिया था.
यह योजना महाराष्ट्र सरकार द्वारा विशेष रूप से कर्नाटक के 865 सीमावर्ती कस्बों और गांवों में रहने वाले मराठी भाषी लोगों के लिए शुरू की गई है.
कथित तौर पर इन चार केंद्रों पर खुद को ‘मराठी भाषी व्यक्ति’ घोषित करने वाले उपक्रम की प्रतियां और महाराष्ट्र एकीकरण समिति (एमईएस) के सिफारिश-पत्र वितरित किए जा रहे थे.
जिला स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण अधिकारी महेश कोनी ने पत्रकारों को बताया था कि कन्नड़ संगठनों की जिला कार्रवाई समिति द्वारा दायर शिकायत के आधार पर कि महाराष्ट्र सरकार ‘कर्नाटक के मराठी भाषी लोगों को भड़काने’ की कोशिश कर रही थी और योजना से संबंधित अनधिकृत केंद्र स्थापित किए गए थे. इसके बाद शनिवार को छापेमारी की गई.
कन्नड़ कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि ऐसे समय में जब सीमा विवाद अभी भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है, महाराष्ट्र सरकार ने यह साबित करने के लिए फर्जी दस्तावेज बनाने की योजना की घोषणा की थी कि कर्नाटक के मराठी भाषी लोग महाराष्ट्र के पक्ष में है.
मालूम हो कि 1960 के दशक से महाराष्ट्र का दावा है कि कर्नाटक की सीमा के 800 से अधिक गांव उसका हिस्सा हैं. इसी तरह, कर्नाटक हमेशा चाहता था कि महाराष्ट्र के लगभग 260 गांव, जहां कन्नड़ बोली जाती है, को कर्नाटक का हिस्सा बनाया जाए.
2004 में महाराष्ट्र सरकार इस विवाद को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लेकर गई और तब से यह लंबित है. इसके समाधान के रूप में बहुत कम प्रगति हुई है.
नवंबर 2022 में कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच दशकों पुराना सीमा विवाद फिर से भड़का उठा था.
कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने दावा किया था कि महाराष्ट्र के सांगली जिले के कुछ कन्नड़ भाषी ग्राम पंचायतों ने एक प्रस्ताव पारित कर कर्नाटक में विलय की मांग की है. इसके बाद महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कर्नाटक के मराठी भाषी गांवों को महाराष्ट्र में शामिल करने के लिए संघर्ष करने की बात कही थी.
इतना ही नहीं दोनों राज्य सरकारें बेलगावी को लेकर कानूनी लड़ाई के लिए तैयार थीं. 21 नवंबर 2022 को महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले के संबंध में कानूनी टीम के साथ समन्वय करने के लिए दो मंत्रियों (चंद्रकांत पाटिल और शंभूराज देसाई) की तैनाती भी की थी.