शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (असर-2023) के अनुसार, सर्वे में शामिल आधे से अधिक बच्चे भाग के सवालों से जूझते हैं. 14-18 साल के केवल 43.3 प्रतिशत बच्चे ही ऐसे सवालों को सही ढंग से कर पाते हैं. लगभग 85 प्रतिशत बच्चे प्रारंभिक बिंदु ज़ीरो सेंटीमीटर होने पर स्केल से लंबाई माप सकते हैं, लेकिन इसमें बदलाव होने पर अनुपात तेज़ी से गिर जाता है.
नई दिल्ली: 14-18 वर्ष के लगभग एक चौथाई ग्रामीण किशोर अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में कक्षा-2 स्तर का पाठ नहीं पढ़ सकते हैं और कम से कम 42.7 प्रतिशत अंग्रेजी में वाक्य भी नहीं पढ़ सकते हैं. बीते बुधवार (17 जनवरी) को जारी शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर/असर) 2023 में यह जानकारी सामने आई है.
इसके तहत शिक्षा-केंद्रित गैर-लाभकारी संस्था (एनजीओ) प्रथम (Pratham) फाउंडेशन द्वारा 26 राज्यों के 28 जिलों में ‘बियॉन्ड बेसिक्स’ सर्वेक्षण आयोजित किया गया था, जिसमें ग्रामीण भारत के सरकारी और निजी दोनों संस्थानों में नामांकित 14 से 18 वर्ष के 34,745 बच्चों को शामिल किया गया था.
पिछली बार इस विशेष आयु वर्ग को 2017 की ‘असर’ रिपोर्ट में शामिल किया गया था.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, असर-2023 ने इन बच्चों के जीवन के चार पहलुओं को शामिल किया गया – शैक्षिक और करिअर; दैनिक जीवन में मूलभूत कौशल (Skills) लागू करने की क्षमता; उनकी डिजिटल पहुंच और कौशल; और भविष्य के लिए उनकी आकांक्षाएं.
सर्वेक्षण में पाया गया कि कुल मिलाकर इस समूह के 86.8 बच्चे किसी न किसी शैक्षणिक संस्थान में नामांकित हैं, जो 2017 के लगभग समान (86 प्रतिशत) है.
2023 की रिपोर्ट के अनुसार, औपचारिक शिक्षा के किसी भी रूप में नामांकित नहीं होने वाले बच्चों का प्रतिशत 14 साल के बच्चों के लिए 3.9 प्रतिशत और 18 साल के बच्चों के लिए 32.6 प्रतिशत है. 2017 में ये आंकड़े क्रमश: 5 प्रतिशत और 30 प्रतिशत थे.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां लगभग एक चौथाई लड़कों ने शिक्षा छोड़ने के लिए ‘रुचि की कमी’, वहीं लगभग 20 प्रतिशत लड़कियों ने इसके लिए ‘पारिवारिक बाधाएं’ को जिम्मेदार ठहराया है. आमतौर पर पढ़ाई छोड़ने के अन्य कारणों में ‘वित्तीय बाधाएं’ और परीक्षा में ‘असफलता’ शामिल हैं.
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यह डर निराधार था कि कई पुराने छात्रों ने आजीविका के नुकसान के कारण कोविड-19 महामारी के दौरान स्कूल छोड़ दिया.
सर्वे में शामिल बच्चों में से केवल 5.6 प्रतिशत व्यावसायिक प्रशिक्षण ले रहे हैं या अन्य संबंधित कोर्स कर रहे हैं. कॉलेज में नामांकित युवाओं में यह अनुपात सबसे अधिक 16.2 प्रतिशत है. अधिकांश युवा कम अवधि (6 माह या उससे कम अवधि वाले) के कोर्स कर रहे हैं.
युवाओं से यह भी पूछा गया था कि उन्होंने पिछले महीने में 15 या उससे अधिक दिन कोई काम किया है. लड़कियों (28 प्रतिशत) की तुलना में लड़कों (40.3 प्रतिशत) में काम करने का अनुपात अधिक है. अन्य काम कर रहे ज्यादातर युवा परिवार के कृषि-संबंधी कार्य करते हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, रिपोर्ट में पाया गया कि 2017 में जहां 14-18 वर्ष के 76.6 प्रतिशत बच्चे कक्षा-2 स्तर का पाठ पढ़ सकते थे, 2023 में यह संख्या थोड़ी कम 73.6 प्रतिशत है.
अंकगणित की बात करें तो 2017 में 39.5 प्रतिशत युवा सरल (कक्षा 3-4 स्तर) भाग के सवालों को हल कर सकते थे, जबकि 2023 में यह अनुपात थोड़ा अधिक 43.3 प्रतिशत है.
इसके अनुसार, ‘आधे से अधिक बच्चे भाग (3 अंक वाली संख्या को 1 अंक वाली संख्या से भाग देना) के सवालों से जूझते हैं. 14-18 साल के केवल 43.3 प्रतिशत बच्चे ही ऐसे सवालों को सही ढंग से कर पाते हैं. यह कौशल आमतौर पर कक्षा तीन/चार में अपेक्षित होता है.’
गणना या गिनती करने के संदर्भ में रिपोर्ट में बताया गया है कि सर्वेक्षण में शामिल लगभग 85 प्रतिशत बच्चे प्रारंभिक बिंदु जीरो सेंटीमीटर (0 cm) होने पर स्केल से लंबाई माप सकते हैं, लेकिन शुरुआती बिंदु स्थानांतरित होने पर अनुपात तेजी से गिरकर 39 प्रतिशत हो जाता है.
लिंग-वार तुलना में लड़कियां (76 प्रतिशत) अपनी क्षेत्रीय भाषा में कक्षा-2 स्तर का पाठ पढ़ने में लड़कों (70.9 प्रतिशत) की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करती हैं, जबकि इसके विपरीत लड़के अंकगणित और अंग्रेजी पाठ पढ़ने में लड़कियों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं.
असर-2023 में पहली बार कक्षा 11 और 12 और कॉलेज में नामांकित बच्चों के पाठ्यक्रम यानी वह किस स्ट्रीम का छात्र/छात्रा है, ये भी दर्ज किया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 14-18 आयु वर्ग के ग्रामीण बच्चों के बीच कला/मानविकी (Humanities) विषय शीर्ष पसंद है, इस स्ट्रीम में 11वीं कक्षा या उससे अधिक के 55.7 प्रतिशत छात्र नामांकित हैं. इसके बाद एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) में 31.7 प्रतिशत और वाणिज्य में 9.4 प्रतिशत हैं.
लिंग के आधार पर लड़कियों (28.1 प्रतिशत) के एसटीईएम स्ट्रीम में लड़कों (36.3 प्रतिशत) की तुलना में नामांकित होने की संभावना कम है.
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि जो छात्र कक्षा 11 और 12 में विज्ञान में नामांकित हैं, वे कक्षा 9 में उच्च प्रदर्शन करने वाले हैं, इसलिए उन्हें विज्ञान स्ट्रीम में चुना गया है और इसलिए उनके ग्रेड स्तर पर होने की अधिक संभावना है.
सर्वेक्षण में छात्रों की डिजिटल जागरूकता का भी पता लगाया गया और इस बात पर प्रकाश डाला गया कि 90 प्रतिशत युवाओं के पास घर में स्मार्टफोन है और वे इसका उपयोग करना जानते हैं.
इसके अनुसार, ‘जो युवा स्मार्टफोन का उपयोग कर सकते हैं, उनमें से लड़कों (43.7 प्रतिशत) के पास अपना स्मार्टफोन रखने की संभावना लड़कियों (19.8 प्रतिशत) की तुलना में दोगुनी से भी अधिक है. लड़कों की तुलना में लड़कियों को स्मार्टफोन या कंप्यूटर का उपयोग करना कम आता है.’
जो युवा स्मार्टफोन का उपयोग कर सकते हैं, उनमें से दो-तिहाई ने बताया कि उन्होंने सर्वेक्षण सप्ताह के दौरान शिक्षा से संबंधित कुछ गतिविधियों के लिए इसका उपयोग किया है, जैसे पढ़ाई से संबंधित ऑनलाइन वीडियो देखना, शंकाओं का समाधान करना या नोट्स का आदान-प्रदान करना.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘लगभग 80 प्रतिशत युवा बताते हैं कि उन्होंने सर्वेक्षण सप्ताह के दौरान अपने स्मार्टफोन का उपयोग मनोरंजन से संबंधित गतिविधि, जैसे फिल्म देखना या संगीत सुनना, करने के लिए किया है.’