दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के हिस्से के रूप में ये दिशानिर्देश जारी किए, जहां एक मुस्लिम व्यक्ति ने अक्टूबर 2022 में एक हिंदू महिला द्वारा उसके ख़िलाफ़ दायर बलात्कार की शिकायत को रद्द करने के लिए अदालत में याचिका दायर की थी. हालांकि, अदालत ने एफ़आईआर रद्द करने से इनकार कर दिया.
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने शादी के लिए धर्म परिवर्तन की सुविधा देने वालों के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं. एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने कहा कि प्रक्रिया के दौरान सुविधा प्रदाताओं को व्यक्ति जिस धर्म में परिवर्तित हो रहा है, उसके संबंधित प्रभावों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करनी चाहिए और व्यक्ति को धर्मांतरण के बाद कानूनी स्थिति में संभावित बदलावों के बारे में जागरूक करना चाहिए.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस शर्मा ने कहा, ‘बिना जानकारी के किसी दूसरे धर्म में परिवर्तन करने से व्यक्ति धर्म परिवर्तन के लिए तैयार नहीं हो सकता है, इसके परिणाम यह होंगे कि वे अब अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगे, अगर जिस धर्म में वे परिवर्तित हो रहे हैं, वह इसकी अनुमति नहीं देता है. यह उस स्थिति में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जब उनके अपने धर्म में वापस लौटने पर कानूनी, वैवाहिक, उत्तराधिकार और संरक्षण (Custody) से संबंधित परिणाम सामने आ सकते हैं.
अदालत ने बीते शुक्रवार (19 जनवरी) को एक मामले की सुनवाई के हिस्से के रूप में ये दिशानिर्देश जारी किए, जहां एक मुस्लिम व्यक्ति ने अक्टूबर 2022 में एक हिंदू महिला द्वारा उसके खिलाफ दायर बलात्कार की शिकायत को रद्द करने के लिए अदालत में याचिका दायर की थी.
मुस्लिम व्यक्ति को 18 नवंबर 2022 को गिरफ्तार किया गया था और पांच दिन बाद इस आधार पर अंतरिम जमानत दे दी गई थी कि महिला के इस्लाम में परिवर्तित होने के बाद उन्होंने मुस्लिम रीति-रिवाजों और अधिकारों के अनुसार शादी की थी.
फरवरी 2023 में उसे नियमित (जमानत) कर दिया गया, जब महिला ने अधिकारियों को बताया कि उसने पुरुष के खिलाफ शिकायत दर्ज होने के 10 दिन बाद उस व्यक्ति से शादी की थी.
इसके बाद उस व्यक्ति ने अपने खिलाफ एफआईआर को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया और अदालत को बताया था कि उसने महिला के साथ अपने विवादों को सुलझा लिया है और अब वे कानूनी रूप से शादीशुदा हैं.
हालांकि, अदालत ने एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया.
रिपोर्ट के अनुसार, इसके बजाय अदालत ने 53 पेज के फैसले में धर्मांतरण की सुविधा देने वाले अधिकारियों/व्यक्तियों को दिशानिर्देश जारी किए.
इसके मुताबिक, ‘व्यक्ति को उसकी मूल भाषा में चुने गए विश्वास/धर्म से जुड़े धार्मिक सिद्धांतों, रीति-रिवाजों और प्रथाओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान किया जाए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस तरह के धर्मांतरण के लिए सहमति है.’
जज ने टिप्पणी की, ‘धार्मिक नतीजों की खोज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है. व्यक्ति को धर्मांतरण के साथ आने वाले धार्मिक मानदंडों, दायित्वों और प्रतिबंधों से अवगत कराया जाना चाहिए.’
अदालत ने संबंधित अधिकारियों से यह भी कहा कि वे धर्म परिवर्तन के इच्छुक पक्षों से अंतरधार्मिक विवाह के समय उनकी उम्र, वैवाहिक इतिहास और वैवाहिक स्थिति का संकेत देते हुए एक हलफनामा प्राप्त करें.
इसमें यह भी कहा गया है कि वैवाहिक तलाक, उत्तराधिकार, हिरासत और धार्मिक अधिकारों से संबंधित निहितार्थों को समझने के बाद इस आशय का हलफनामा प्राप्त किया जाना चाहिए कि धर्मांतरण स्वैच्छिक है.
मौजूदा मामले में जस्टिस शर्मा ने कहा कि महिला अनपढ़ थी और उर्दू नहीं जानती थी, साथ ही यह भी कहा कि निकाहनामे में ऐसा कुछ भी नहीं था, जिससे पता चले कि विवाह या धर्मांतरण प्रमाण-पत्र की सामग्री, जो उर्दू में भी थी, उसे समझाया गया था. उन्होंने उस व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया.
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