मणिपुर: सीएम ने धारा 355 लागू होने की पुष्टि की, विपक्ष ने गोपनीयता बरतने को लेकर निशाना साधा

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने सर्वदलीय बैठक में अफ़वाहों पर विराम लगाते हुए बताया कि मई में हिंसा शुरू होने के बाद से राज्य में अनुच्छेद 355 प्रभावी है. यह अनुच्छेद केंद्र को राज्य सरकार को बर्ख़ास्त किए बिना राज्य के क़ानून-व्यवस्था को संभालने का अधिकार देता है.

एन. बीरेन सिंह. (फोटो साभार: ट्विटर/@NBirenSingh)

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने सर्वदलीय बैठक में अफ़वाहों पर विराम लगाते हुए बताया कि मई में हिंसा शुरू होने के बाद से राज्य में अनुच्छेद 355 प्रभावी है. यह अनुच्छेद केंद्र को राज्य सरकार को बर्ख़ास्त किए बिना राज्य के क़ानून-व्यवस्था को संभालने का अधिकार देता है.

एन. बीरेन सिंह. (फोटो साभार: ट्विटर/@NBirenSingh)

नई दिल्ली: गृह मंत्रालय (एमएचए) और इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के वरिष्ठ अधिकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल जातीय हिंसा प्रभावित मणिपुर की स्थिति का जायजा लेने, शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने के उद्देश्य से चर्चा करने के लिए सोमवार (22 जनवरी) को इंफाल पहुंचा.

इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारी प्रत्येक पक्ष द्वारा रखी गई मांगों की एक व्यापक सूची तैयार करने के लिए राज्य सरकार, समुदाय के नेताओं और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श करेंगे.

विवाद का एक प्रमुख मुद्दा प्रशासन को घाटी से अलग करने और मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को हटाने की पहाड़ी जनजाति की मांग है. हालांकि, केंद्र सरकार ने इन मांगों पर विचार करने से इनकार कर दिया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले हफ्ते राज्य में महिलाओं के प्रभावशाली संगठन ‘मीरा पाइबीज़’ सहित विभिन्न संगठनों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया और मांग की कि केंद्र एकीकृत कमान का प्रभार मुख्यमंत्री को सौंप दे और सुरक्षा सलाहकार और कमान के अध्यक्ष कुलदीप सिंह को हटा दे.

हालांकि, मुख्यमंत्री का नाम उन नामों की सूची से गायब था जो यूनिफाइड कमांड का हिस्सा हैं, जिससे अटकलें लगने लग गईं कि राज्य में संविधान का अनुच्छेद 355 प्रभावी है.

मणिपुर में अनुच्छेद 355

सोमवार को मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने सर्वदलीय बैठक में अफवाहों पर विराम लगाते हुए खुलासा किया कि मई में हिंसा शुरू होने के बाद से राज्य में अनुच्छेद 355 प्रभावी है.

सर्वदलीय बैठक में विपक्ष के नेताओं ने जनता के सामने इस बारे में जल्द खुलासा नहीं करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की आलोचना की.

मणिपुर कांग्रेस प्रमुख मेघचंद्र सिंह ने कहा, ‘यह केंद्र और राज्य सरकार दोनों की धोखेबाज़ी को दर्शाता है.’

उन्होंने इंफाल में संवाददाताओं से कहा, ‘मुख्यमंत्री ने हमें बताया कि मणिपुर में धारा 355 लागू कर दी गई है. इस पर पहले कोई स्पष्टता नहीं थी. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुख्यमंत्री ने हमें यह बताने में इतना समय लगा दिया. केंद्र और राज्य सरकार दोनों ईमानदार नहीं हैं, हम अब जानते हैं, इसकी पुष्टि हो गई है.’

अनुच्छेद 355 केंद्र सरकार को राज्यों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाने का आदेश देता है. यह प्रावधान केंद्र को राज्य सरकार को बर्खास्त किए बिना राज्य के कानून और व्यवस्था के नियंत्रण का अधिकार देता है. इसे राष्ट्रपति शासन से एक कदम नीचे के रूप में देखा जाता है.

मालूम हो कि कुकी-ज़ो जनजातियां मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की मांग कर रही हैं. उनका कहना है कि राष्ट्रपति शासन से सुरक्षा बलों और सरकारी नीतियों की तटस्थता सुनिश्चित होगी. हालांकि, गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले साल संसद को बताया था कि राज्य सरकार सहयोग कर रही है और राष्ट्रपति शासन की कोई आवश्यकता नहीं है.

अनुच्छेद 355 पर पिछले साल से रहस्य

पिछले साल मई में राज्य के दो सार्वजनिक अधिकारियों- एक निर्वाचित विधायक और राज्य पुलिस के प्रमुख – ने संकेत दिया था कि मणिपुर में धारा 355 लागू कर दी गई है. हालांकि, संवैधानिक प्रावधान लागू करने या लागू करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा कोई औपचारिक आदेश जारी नहीं किया गया था.

इसके अलावा पिछले साल अगस्त में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि उसे जनवरी 2023 और 13 जून, 2023 के बीच संविधान के अनुच्छेद 355 के तहत संघ द्वारा जारी किसी भी अधिसूचना के बारे में कोई जानकारी नहीं है. मंत्रालय एक सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदन का जवाब दे रहा था, जिसे कर्नाटक उच्च न्यायालय के वकील अजय कुमार द्वारा दायर किया गया था.

इसे लागू करने से जुड़ी गोपनीयता चिंता पैदा करती है क्योंकि कानूनी, प्रकाशित घोषणा के बिना लिया गया ऐसा निर्णय गैरकानूनी माना जा सकता है.

अनुच्छेद 355 भारतीय संविधान के भाग XVIII में पाया जाता है जिसमें आपातकालीन प्रावधान शामिल हैं जिनका उपयोग अत्यंत दुर्लभ परिस्थितियों में किया जाना है. संविधान का यह खंड केंद्र सरकार को आपातकाल की स्थिति (अनुच्छेद 352 के माध्यम से) या, अन्य मामलों में संघ के किसी विशेष राज्य में राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356 के माध्यम से) घोषित करने का अधिकार देता है.

अनुच्छेद 355, जैसा कि वर्तमान में मौजूद है, 1948 के संविधान के मसौदे में नहीं था और सितंबर 1949 में जोड़ा गया था (अनुच्छेद 277ए के मसौदे के रूप में). इसे संविधान के अनुच्छेद 356 को लागू करने के लिए वैध आधार प्रदान करने के उद्देश्य से शामिल किया गया था, जो केंद्र सरकार को किसी विशिष्ट राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा जारी करने की अनुमति देता है. चूंकि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना एक अंतिम उपाय माना जाता है, संविधान के रचनाकारों को लगा कि इसे जोड़ा जरूरी है.

गौरतलब है कि भारतीय राजनीतिक इतिहास में कभी भी अनुच्छेद 356 के बिना किसी राज्य पर अनुच्छेद 355 नहीं लगाया गया है.

मालूम हो कि 3 मई 2023 को मणिपुर में मेईतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद से अब तक लगभग 200 लोग जान गंवा चुके हैं, सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हुए हैं और 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.

3 मई 2023 को बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बीच दोनों समुदायों के बीच यह हिंसा भड़की थी.

मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.