गुजरात के जूनागढ़ का मामला. दलित व्यक्ति के परिवार के सदस्यों ने आरोप लगाया है कि जूनागढ़ के एक थाने में तैना सब-इंस्पेक्टर ने हिरासत में हर्षिल जादव के साथ बेरहमी से मारपीट की थी. आरोप है कि पिटाई नहीं करने के बदले में सब-इंस्पेक्टर ने 5 लाख रुपये की रिश्वत की मांग की थी.
अहमदाबाद: गुजरात के जूनागढ़ में पुलिस हिरासत में कथित तौर पर पीटे जाने के बाद 43 वर्षीय एक दलित व्यक्ति की बीते बुधवार (24 जनवरी) को अहमदाबाद के एक अस्पताल में मौत हो गई.
परिवार के सदस्यों ने आरोप लगाया कि सब-इंस्पेक्टर मुकेश मकवाना ने हिरासत में हर्षिल जादव के साथ बेरहमी से मारपीट की थी. आरोप है कि पिटाई नहीं करने के बदले में सब-इंस्पेक्टर ने 5 लाख रुपये की रिश्वत की मांग की थी.
डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, एक दिन पहले ही पुलिस ने मकवाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी, जो एक टूर पैकेज से जुड़े धोखाधड़ी के मामले में अहमदाबाद के रहने वाले हर्षिल की जांच कर रहे थे.
हर्षिल के भाई बृजेश ने संवाददाताओं को बताया कि उनके भाई हर्षिल बीते 9 जनवरी को एक शिकायत दर्ज कराने के लिए अहमदाबाद के बोदकदेव पुलिस स्टेशन गए थे, जब उन्हें बताया गया कि वह जूनागढ़ में दर्ज एक एफआईआर में वांछित थे.
उनके मुताबिक, उसी रात हर्षिल को जूनागढ़ पुलिस ने उठा लिया. फिर जूनागढ़ की एक अदालत ने उन्हें 12 जनवरी तक पुलिस हिरासत में भेज दिया. इस दौरान आरोपी सब-इंस्पेक्टर ने उनके परिवार को फोन करके उन्हें नहीं पीटने के बदले में 5 लाख रुपये की मांग की थी. बातचीत के बाद तीन लाख रुपये की रकम तय हुई.
बृजेश ने बताया कि उन्होंने भुगतान करने से इनकार कर दिया, क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे. उन्होंने दावा किया कि जब उन्होंने अपने भाई से बात की तो उन्होंने यह कहते हुए पैसे की गुहार लगाई कि उन्हें बुरी तरह पीटा जा रहा है और मार दिया जाएगा.
बीते 12 जनवरी को हिरासत खत्म होने के बाद जब हर्षिल को अदालत में पेश किया गया तो उन्होंने सब-इंस्पेक्टर द्वारा मारपीट की शिकायत की. हर्षिल के सिर और पैर पर पट्टियां बंधी थीं. उन्हें जूनागढ़ सिविल अस्पताल भेजा गया और छुट्टी दे दी गई. 15 जनवरी को उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया.
अहमदाबाद वापस आने के बाद उन्हें अहमदाबाद सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनके दोनों पैरों में लिगामेंट फटने का पता चला. बृजेश ने बताया कि हर्षिल के सिर पर भी कई चोटें थीं.
इस घटना ने एक बार फिर गुजरात पुलिस को सुर्खियों में ला दिया है, जिसने देश में सबसे ज्यादा हिरासत में मौतों की सूचना दी है.
पिछले साल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, गुजरात में पिछले पांच वर्षों में हिरासत में 80 मौतें हुईं. 2017-18 में ऐसी मौतों की संख्या 14, 2018-19 में 13, 2019-20 में 12 थीं, जबकि 2021-22 में यह संख्या बढ़कर 24 हो गई थीं.