जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर ख़ालिद सितंबर 2020 को गिरफ़्तार होने के बाद से जेल में हैं. उन पर 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के पीछे बड़ी साजिश से जुड़े एक मामले में यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए हैं. ट्रायल कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में ज़मानत याचिका ख़ारिज होने के बाद मई 2023 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते बुधवार (24 जनवरी) को लगातार सातवीं बार जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद की जमानत याचिका स्थगित कर दी, जो 2020 दिल्ली दंगे के मामले में गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार होने के बाद लगभग तीन साल तक जेल में हैं.
मामले की सुनवाई अब 31 जनवरी को होगी. जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने बुधवार दोपहर करीब 1 बजे सुनवाई के लिए मामले को इस आधार पर स्थगित कर दिया क्योंकि उनकी पीठ दोपहर के भोजन के बाद एक अन्य पीठ का हिस्सा होगी.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, उमर खालिद मामले के अन्य आरोपियों – नताशा नरवाल, देवांगना कलीता और आसिफ इकबाल तन्हा – के साथ समानता के आधार पर जमानत की मांग कर रहे है, जिन्हें रिहा कर दिया गया है.
इसके अतिरिक्त, खालिद ने यूएपीए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए एक अलग याचिका दायर की है.
खालिद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने बुधवार को पीठ से कहा, ‘हम तैयार हैं, दुर्भाग्य से यह पीठ दोपहर के भोजन के बाद उठ रही है. यह एक जमानत याचिका है.’
जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि पीठ दोपहर के भोजन के बाद एक अलग पीठ का हिस्सा होगी. हालांकि अदालत ने प्राथमिकता के आधार पर इस मामले की सुनवाई का आदेश पारित किया. अदालत ने एक संक्षिप्त आदेश में कहा, ‘31 जनवरी को यह मामला सूची के बोर्ड पर ऊपर रहेगा.’
10 जनवरी को पिछली सुनवाई में खालिद की जमानत याचिका 24 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी गई थी, जो लगातार छठा स्थगन था. 10 जनवरी को जस्टिस त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने कहा था कि आगे कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा.
रिपोर्ट के अनुसार, 10 जनवरी को पीठ ने बार-बार स्थगन करने को लेकर कुछ नहीं कहा था. अदालत ने कहा था कि सुनवाई में देरी संबंधित पक्षों द्वारा मामले पर बहस करने में विफलता के कारण हुई थी, लेकिन यह धारणा बन रही है कि अदालत इस पर सुनवाई नहीं कर रही है.
उमर खालिद की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने एक सप्ताह के लिए स्थगन की मांग की थी, क्योंकि वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की अल्पसंख्यक स्थिति से निपटने के लिए सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ के मामले में व्यस्त थे. बुधवार को सिब्बल इसी मामले में व्यस्त थे.
पीठ का नेतृत्व कर रहीं जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने पिछली सुनवाई में सिब्बल से कहा था, ‘आप कृपया मामले पर बहस करें, हम मामले को स्थगित नहीं करने जा रहे हैं. हम आपको कोई छूट नहीं दे सकते.’
खालिद की जमानत याचिका के अलावा अदालत बुधवार को यूएपीए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली थी, जिसके बारे में आलोचकों की शिकायत है कि सत्तारूढ़ पार्टियों द्वारा राजनीतिक विरोधियों और पत्रकारों के खिलाफ इसका इस्तेमाल तेजी से किया जा रहा है.
खालिद की जमानत याचिका 29 नवंबर, 2023 को भी सुनवाई के दौरान स्थगित कर दी गई थी. जस्टिस त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्रा की पीठ ने खालिद का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल और दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल एसवी राजू की ओर से पेश वकीलों के संयुक्त अनुरोध पर ऐसा किया था.
उस समय राजू अस्वस्थ बताए गए थे, जब मामला सुनवाई के लिए आया तो सिब्बल अन्य अदालतों में व्यस्त थे.
जस्टिस त्रिवेदी 6 दिसंबर, 2023 को मामले की फिर से सुनवाई करना चाहती थीं, लेकिन चूंकि सिब्बल उस तारीख पर उपलब्ध नहीं थे, इसलिए इसे 10 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दिया गया था. इस तरह बार-बार स्थगन असामान्य नहीं है.
मार्च 2022 में उमर खालिद की जमानत याचिका को दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया था. इसके बाद उन्होंने अक्टूबर 2022 में दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया, जिसने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा. फिर मई 2023 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
गौरतलब है कि 14 सितंबर 2020 को गिरफ्तार होने के बाद से उमर खालिद जेल में हैं. उन पर 2020 के दंगों के पीछे बड़ी साजिश से जुड़े एक मामले में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप लगाए गए हैं.
हालांकि दंगों में दिल्ली पुलिस की जांच की विश्व स्तर पर पक्षपातपूर्ण और नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का विरोध करने वालों को निशाना बनाने के रूप में आलोचना की गई है.
दिसंबर 2022 की शुरुआत में में दिल्ली की एक अदालत ने उमर खालिद तथा कार्यकर्ता खालिद सैफी को 2020 के दंगों से जुड़े एक मामले में बरी कर दिया था.
इससे पहले 18 अक्टूबर 2022 को दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की पीठ ने जमानत अर्जी खारिज करते हुए कहा था कि उमर खालिद मामले के अन्य सह-आरोपियों के साथ लगातार संपर्क में थे और उनके खिलाफ आरोप प्रथमदृष्टया सही हैं.
मालूम हो कि खालिद की लंबे समय तक कैद की व्यापक तौर पर वैश्विक निकायों, अधिकार संगठनों और दुनिया भर के विचारकों द्वारा आलोचना की गई है.
दिल्ली दंगों को लेकर खालिद के साथ ही छात्र नेता शरजील इमाम और कई अन्य के खिलाफ यूएपीए तथा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है. इन सभी पर फरवरी 2020 के दंगों का कथित ‘षड्यंत्रकारी’ होने का आरोप है.
दंगे नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के समर्थन एवं विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान हुए थे. इनमें 53 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 700 से ज्यादा लोग घायल हुए थे.
दंगों को लेकर खालिद के अलावा, कार्यकर्ता खालिद सैफी, जेएनयू की छात्रा नताशा नरवाल और देवांगना कलीता, जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी की सदस्य सफूरा जरगर, आम आदमी पार्टी (आप) के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन और कई अन्य लोगों के खिलाफ कड़े कानूनों के तहत मामला दर्ज किया गया है.