नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने कहा है कि भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने के निर्णय पर गहन चर्चा और लोगों से परामर्श की ज़रूरत है. जरूरत पड़ने पर हमें एक फॉर्मूला बनाना होगा कि जनता की समस्या कैसे सुलझाई जाए और घुसपैठ कैसे रोकी जाए. मिज़ोरम के मुख्यमंत्री लालदुहोमा भी बाड़ लगाने के फैसले को ‘अस्वीकार्य’ बता चुके हैं.
नई दिल्ली: नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने केंद्र सरकार से कहा है कि भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने का उसका निर्णय एकतरफा नहीं लिया जा सकता है, बल्कि संबंधित हितधारकों से परामर्श के बाद केवल ‘चर्चा के माध्यम से’ ही इस पर निर्णय लिया जा सकता है.
पत्रकारों द्वारा इस मुद्दे पर राज्य के रुख के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि सरकार को लोगों से परामर्श करना होगा, क्योंकि नगालैंड की सीमा म्यांमार से लगती है और दोनों तरफ नगा लोग हैं.’
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, संवाददाताओं से बातचीत के दौरान रियो ने कहा, ‘उस (सीमा पर बाड़ लगाने) पर गहन चर्चा की जरूरत है और हमें लोगों से परामर्श करना होगा. जरूरत पड़ने पर हमें एक फॉर्मूला बनाना होगा कि जनता की समस्या कैसे सुलझाई जाए और घुसपैठ कैसे रोकी जाए.’
रियो ने रेखांकित किया कि इस मामले में कुछ जटिलताएं हैं. उन्होंने कहा, ‘नगालैंड की सीमा म्यांमार से लगती है. दोनों तरफ नगा लोग हैं. मेरा गांव (सीमा के) एक तरफ है और मेरी खेती की जमीन दूसरी तरफ है. इसलिए एक व्यावहारिक फॉर्मूला होना चाहिए.’
मुख्यमंत्री रियो की यह टिप्पणी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की उस घोषणा के ठीक बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत-म्यांमार के साथ अपनी सीमा पर बाड़ लगाने जा रहा है और मुक्त आवाजाही समझौते को बंद कर देगा. शाह ने कहा था कि इस सीमा को ‘बांग्लादेश सीमा की तरह संरक्षित’ किया जाएगा.
मुक्त आवाजाही व्यवस्था भारत-म्यांमार सीमा के दोनों ओर रहने वाले लोगों को बिना वीजा के एक-दूसरे के क्षेत्र में 16 किमी तक जाने और दो सप्ताह तक रहने की अनुमति देती है, क्योंकि उनमें से कई सीमा पार पारिवारिक और जातीय संबंध साझा करते हैं.
नगालैंड के अलावा मणिपुर, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश राज्यों की सीमाएं म्यांमार से लगती हैं.
मणिपुर में 10 किमी की दूरी को छोड़कर, सीमा पर ज्यादा सुरक्षा (Porous Border) में नहीं है, जिससे घुसपैठ और विद्रोहियों की मुक्त आवाजाही तथा सीमा पार तस्करी होती है.
3 मई 2023 को मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से झरझरा सीमा सुर्खियों में है, आरोप है कि सीमा पार से घुसपैठियों और आतंकवादी समूहों ने मणिपुर में परेशानी पैदा करने में प्रमुख भूमिका निभाई है. यहां तक कि मणिपुर सरकार और मेईतेई संगठन भी बाड़ लगाने और मुक्त आवाजाही व्यवस्था खत्म करने की मांग कर रहे हैं.
हालांकि, मणिपुर के कुकी-जो और मिजोरम का मिजो समुदाय, जो म्यांमार के चिन समुदाय के साथ जातीय संबंध साझा करते हैं, इस कदम का विरोध कर रहे हैं. इसके बजाय वे राज्य में हिंसा के लिए एन. बीरेन सिंह सरकार और मेईतेई कट्टरपंथी संगठनों को जिम्मेदार ठहराते हैं.
भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने की केंद्रीय गृह मंत्री शाह की घोषणा का मिजोरम और नगालैंड में कई हलकों से विरोध हुआ है.
मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदुहोमा भी इस कदम का पुरजोर विरोध करते हुए इसे ‘अस्वीकार्य’ बता चुके हैं.
बीते 3 जनवरी को लालदुहोमा ने नई दिल्ली में एक बैठक के दौरान केंद्रीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर से कहा था कि भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाना ‘अस्वीकार्य’ होगा.
उन्होंने कहा था, ‘अंग्रेजों ने बर्मा (म्यांमार) को भारत से अलग करके मिजो लोगों को अलग कर दिया था. उन्होंने मिजो जातीय लोगों की प्राचीन भूमि को दो भागों में विभाजित कर दिया था. इसलिए हम सीमा (बॉर्डर) को स्वीकार नहीं कर सकते, इसके बजाय हम हमेशा एक प्रशासन के तहत एक राष्ट्र बनने का सपना देखते हैं.’
उन्होंने कहा था, ‘इस तरह बाड़ लगाने से मिजो समुदाय के लोग विभाजित हो जाएंगे और ब्रिटिश-निर्मित सीमा को मंजूरी मिल जाएगी. यह हमें अस्वीकार्य होगा.’
लालदुहोमा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात में भी यही विचार व्यक्त किए थे.
भारत और म्यांमार 1,643 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं और भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के हिस्से के रूप में साल 2018 से दोनों देशों के बीच मुक्त आवाजाही व्यवस्था है. इससे सीमा पर रहने वाले दोनों देशों के निवासियों को बिना वीजा के एक-दूसरे के क्षेत्र में 16 किमी तक यात्रा करने की अनुमति मिलती है. समझौता खत्म होने से मुक्त आवाजाही की व्यवस्था पर रोक लग जाएगी.
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