आरक्षित पदों पर अनारक्षित उम्मीदवारों की नियुक्ति संबंधी यूजीसी दिशानिर्देशों का विरोध

‘उच्च शिक्षण संस्थानों में भारत सरकार की आरक्षण नीति के कार्यान्वयन के दिशानिर्देश’ यह निर्धारित करते हैं कि एसटी, एससी और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित रिक्तियों को ‘अनारक्षित’ घोषित किया जा सकता है, अगर इन श्रेणियों के पर्याप्त उम्मीदवार उपलब्ध न हों. यूजीसी अध्यक्ष ने आरक्षण हटाए जाने से इनकार किया है.

यूजीसी के मसौदा दिशानिर्देशों के खिलाफ छात्र संगठनों ने बीते सोमवार को इसके दिल्ली स्थित मुख्यालय पर प्रदर्शन किया. (फोटो: अतुल होवाले/द वायर)

‘उच्च शिक्षण संस्थानों में भारत सरकार की आरक्षण नीति के कार्यान्वयन के दिशानिर्देश’ यह निर्धारित करते हैं कि एसटी, एससी और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित रिक्तियों को ‘अनारक्षित’ घोषित किया जा सकता है, अगर इन श्रेणियों के पर्याप्त उम्मीदवार उपलब्ध न हों. यूजीसी अध्यक्ष ने आरक्षण हटाए जाने से इनकार किया है.

यूजीसी के मसौदा दिशानिर्देशों के खिलाफ छात्र संगठनों ने बीते सोमवार को इसके दिल्ली स्थित मुख्यालय पर प्रदर्शन किया. (फोटो: अतुल होवाले/द वायर)

नई दिल्ली: छात्र संगठनों ने बीते सोमवार (29 जनवरी) को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के उन मसौदा दिशानिर्देशों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें उपयुक्त उम्मीदवार उपलब्ध नहीं होने पर एससी, एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित उच्च शिक्षा संस्थानों में रिक्तियों को ‘अनारक्षित’ करने का सुझाव दिया गया है.

जेएनयू छात्र संघ (जेएनयूएसयू) ने आइसा और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) जैसे अन्य वाम समर्थित छात्र संगठनों के साथ प्रस्ताव को वापस लेने की मांग करते हुए दिल्ली स्थित यूजीसी मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन किया.

द प्रिंट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक बयान में आइसा ने कहा कि मसौदा दिशानिर्देश (गाइडलाइन) लोकतांत्रिक भारत के लोकाचार के लिए हानिकारक हैं और ‘शिक्षा संस्थानों से सारी समावेशिता और न्याय को बर्बाद कर देंगे.’

बयान में कहा गया है, ‘यह नोटिस छात्रों द्वारा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और कोई खोखला वादा नहीं, बल्कि गाइडलाइन से इसे पूरी तरह से हटाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए.’

छात्र संगठन ने मसौदा दिशानिर्देशों को केवल अंग्रेजी में, ऑनलाइन और प्रेस में प्रसारित किए बिना जारी किए जाने पर भी आपत्ति जताई. इसने रविवार (28 जनवरी) को यूजीसी को एक पत्र में मामले पर प्रारंभिक टिप्पणियां सौंपी.

विभिन्न संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले छात्रों के एक प्रतिनिधिमंडल ने यूजीसी कार्यालय में अधिकारियों से मुलाकात की और मसौदा दिशानिर्देशों के लागू होने की स्थिति में अपनी शिकायतों से अवगत कराया.

एसएफआई के अनुसार, यूजीसी अधिकारियों द्वारा छात्रों को आश्वासन दिया गया था कि एससी, एसटी और ओबीसी पदों के आरक्षण को खत्म करने के प्रावधान को हटाने के लिए मसौदा दिशानिर्देशों को संशोधित किया जाएगा.

एसएफआई के बयान में कहा गया है, ‘यूजीसी में विरोध के बाद प्रतिनिधि मंडल ने यूजीसी के अधिकारियों से मुलाकात की और निकाय द्वारा जारी दिशानिर्देशों के संबंध में छात्र समुदाय की शिकायतों को व्यक्त किया. अधिकारियों ने स्वीकार किया कि यह उनकी ओर से हुई एक गंभीर गलती है और संशोधित मसौदे में आरक्षण रद्द करने का प्रावधान नहीं होगा.’

प्रदर्शन में क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस) ने भी हिस्सा लिया और यूजीसी अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार को बर्खास्त करने की मांग की.

अपने बयान में समूह ने आरोप लगाया कि मसौदा दिशानिर्देश उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षित सीटों की संख्या को कम करने का एक प्रयास है, ताकि योग्य उम्मीदवारों को ‘उपयुक्त नहीं पाए गए’ या एनएफएस श्रेणी का बताकर खारिज किया जा सके.

बता दें कि ‘उच्च शिक्षण संस्थानों में भारत सरकार की आरक्षण नीति के कार्यान्वयन के दिशानिर्देश’ यह निर्धारित करते हैं कि एससी, एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित रिक्तियों को ‘अनारक्षित’ घोषित किया जा सकता है अगर इन श्रेणियों के पर्याप्त उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं.

डेक्कन हेराल्ड के मुताबिक, इससे पहले यूजीसी अध्यक्ष जगदीश कुमार ने रविवार को कहा था, ‘यूजीसी केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के प्रभावी कार्यान्वयन पर व्यापक मसौदा दिशानिर्देश लाया है. ये मसौदा दिशानिर्देश हैं और अंतिम नहीं हैं. केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में ‘आरक्षण हटाने’ जैसा कुछ भी नहीं होने जा रहा है. बल्कि आरक्षित श्रेणी में सभी बैकलॉग पदों को भरने के लिए केवल एक ठोस प्रयास किया जाएगा.’

इस बीच, कांग्रेस ने यूजीसी अध्यक्ष से इस्तीफे की मांग की है, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक्स पर एक पोस्ट में इस कदम एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण खत्म करने की साजिश बताया.

उन्होंने लिखा, ‘यूजीसी के नए ड्राफ्ट में उच्च शिक्षा संस्थानों में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग को मिलने वाले आरक्षण को खत्म करने की साजिश हो रही है. आज 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लगभग 7,000 आरक्षित पदों में से 3,000 रिक्त हैं और जिनमें सिर्फ 7.1 प्रतिशत दलित, 1.6 प्रतिशत आदिवासी और 4.5 प्रतिशत पिछड़े वर्ग के प्रोफेसर हैं. आरक्षण की समीक्षा तक की बात कर चुकी भाजपा-आरएसएस अब ऐसे उच्च शिक्षण संस्थानों में से वंचित वर्ग के हिस्से की नौकरियां छीनना चाहती है.’

उन्होंने आगे लिखा, ‘यह सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करने वाले नायकों के सपनों की हत्या और वंचित वर्गों की भागीदारी खत्म करने का प्रयास है. यही ‘सांकेतिक राजनीति’ और ‘वास्तविक न्याय’ के बीच का फर्क है और यही है भाजपा का चरित्र. कांग्रेस ये कभी होने नहीं देगी. हम सामाजिक न्याय के लिए लड़ते रहेंगे और इन रिक्त पदों की पूर्ति आरक्षित वर्गों के योग्य उम्मीदवारों से ही कराएंगे.’