महाराष्ट्र: वर्धा हिंदी विश्वविद्यालय में छात्रों को महात्मा गांधी की श्रद्धांजलि सभा करने से रोका गया

30 जनवरी की शाम वर्धा के महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में छात्रों द्वारा आयोजित गांधी की श्रद्धांजलि सभा को विश्वविद्यालय प्रशासन ने इजाज़त न लिए जाने का हवाला देकर रोक दिया. छात्रों का कहना है कि वे विद्यार्थियों के लिए निर्दिष्ट जगह पर सभा कर रहे थे, जिसके लिए प्रशासनिक अनुमति अनिवार्य नहीं है.

(फोटो साभार: फेसबुक)

30 जनवरी की शाम वर्धा के महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में छात्रों द्वारा आयोजित गांधी की श्रद्धांजलि सभा को विश्वविद्यालय प्रशासन ने इजाज़त न लिए जाने का हवाला देकर रोक दिया. छात्रों का कहना है कि वे विद्यार्थियों के लिए निर्दिष्ट जगह पर सभा कर रहे थे, जिसके लिए प्रशासनिक अनुमति अनिवार्य नहीं है.

फोटो साभार: फेसबुक

नई दिल्ली: महाराष्ट्र के वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय (एमजीएएचवी) में 30 जनवरी (मंगलवार) को तब विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई जब विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों को बापू के शहादत दिवस पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन करने से रोक दिया.

द वायर से बातचीत में छात्रों का पक्ष रखते हुए विश्वविद्यालय के शोधार्थी चंदन सरोज ने कहा, ‘प्रशासन ने आयोजन रोकने के पीछे यह कारण दिया कि छात्रों ने इसके लिए अनुमति नहीं ली थी, जबकि वे प्रशासन को एक दिन पहले ही इस संबंध में सूचित कर चुके थे.’

हालांकि, छात्रों का यह भी कहना है कि श्रद्धांजलि सभा का आयोजन विश्वविद्यालय परिसर के गांधी हिल्स स्थित ‘स्टूडेंट कॉर्नर’ पर किया जा रहा था, जो कि विश्वविद्यालय द्वारा छात्रों को प्रदान किया गया वह स्थान है जहां वे प्रशासन को सूचित करके पहले भी विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करते रहे हैं.

श्रद्धांजलि सभा में सम्मलित छात्र विश्वविद्यालय प्रशासन के इस प्रयास को ‘घोर निंदनीय’ करार देते हुए कहते हैं, ‘हमने कार्यक्रम करने की सूचना प्रशासन को पहले ही दे दी थी और यह कार्यक्रम हम स्टूडेंट कॉर्नर पर कर रहे थे, इसलिए अनुमति लेने का सवाल ही पैदा नहीं होता था. यह स्थान विश्वविद्यालय द्वारा ही छात्रों को प्रदान किया गया है, जिसमें वह आए दिन प्रशासन को सूचित करके विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं. इससे पहले भी वहां इसी तरह प्रशासन को सूचित करके विभिन्न कार्यक्रम हो चुके हैं, लेकिन इस बार गांधीजी की श्रद्धांजलि सभा को रोकना विश्वविद्यालय प्रशासन की संकुचित मानसिकता को दर्शाता है.’

कार्यक्रम के संबंध में विश्वविद्यालय को सूचित करने वाला पत्र इसके आयोजन से एक दिन पहले 29 जनवरी को लिखा गया था. द वायर के पास उपलब्ध इस पत्र में विश्वविद्यालय के कुलसचिव को संबोधित किया गया है.

पत्र में उल्लिखित है;

‘दिनांक 30 जनवरी 2024 को विश्वविद्यालय प्रांगण में ‘गांधी हिल्स’ पर हम सभी छात्र गांधी शहादत दिवस के मौके पर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित कर उनके विचारों पर चर्चा-परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन करना चाहते हैं/करने के इच्छुक हैं. इसी क्रम में हम यह सूचना देना चाहते हैं कि कार्यक्रम 30 जनवरी 2024 को शाम 6 बजे से गांधी हिल्स पर आयोजित किया जाएगा.’

छात्र बताते हैं कि तय कार्यक्रम के अनुसार, उस शाम 6 बजे वे बड़ी संख्या में गांधी जी को श्रद्धांजलि देने के लिए गांधी हिल्स पर एकत्रित हुए. उसी समय विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से कुछ गार्ड आए और उन्हें रोकने लगे.

उनका कहना है, ‘हमने जब रोकने का कारण पूछा तो गार्ड बोले कि आपके पास अनुमति नहीं है. फिर उसी समय कुछ छात्र जब कारण जानने के लिए प्रशासनिक भवन पहुंचे तो प्रशासन के लोगों ने कोई जवाब देने से मना कर दिया.’

विश्वविद्यालय के सुरक्षाकर्मियों द्वारा छात्रों को श्रद्धांजलि सभा करने से रोके जाने के दौरान की एक वीडियो से लिया गया स्क्रीनशॉट.

एक छात्र जतिन चौधरी बताते हैं, ‘जब शाम 6 बजे के करीब गांधी हिल्स पहुंचे तो सुरक्षाकर्मियों ने कार्यक्रम न करने और कुलसचिव से मिलने को कहा. जब हम उनके पास गए तो हमसे कहा गया कि विश्वविद्यालय में सुबह कार्यक्रम था, आप क्यों नहीं आए. इस पर मैंने कहा कि सर मैं आया था, लेकिन मैं गांधी को अलग तरह से मानता हूं, जबकि विश्वविद्यालय में कुछ और ही चल रहा था. ‘

बता दें कि 30 जनवरी की ही सुबह विश्वविद्यालय ने भी गांधी को श्रद्धांजलि देने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया था, हालांकि चंदन सरोज का दावा है कि उस कार्यक्रम की सूचना छात्रों को नहीं दी गई थी.

अपने दावे के समर्थन में चंदन विश्वविद्यालय द्वारा साझा की गईं इसके आधिकारिक आयोजन से जुड़ीं तस्वीरें दिखाते हुए कहते हैं, ‘इन तस्वीरों में आपको एक छात्र नजर नहीं आएगा, क्योंकि इसकी सूचना हमको नहीं मिली थी. इनके कार्यक्रम में बस चार-पांच प्रशासन के लोग बैठकर खानापूर्ति कर लेते हैं.’

वह आगे कहते हैं, ‘ऐसे कार्यक्रमों के लिए कभी अनुमति की जरूरत नहीं होती थी, अनुमति तब ली जाती थी जब हमें कभी विश्वविद्यालय का कोई हॉल आदि लेना है,  मतलब कि जहां कार्यक्रम की व्यवस्थाएं प्रशासन को देखनी हों, वहां अनुमति ली जाती है. यह स्टूडेंट कॉर्नर है, सारा इंतजाम छात्र कर रहे हैं. इसलिए जब उनसे (प्रशासन) रोके जाने का वैध कारण मांगा तो उनके पास कोई जवाब नहीं था. अगर यह स्टूडेंट कॉर्नर नहीं होता तो हम जरूर अनुमति लेते. वहां कैमरा वगैरह सब लगा है, अगर कुछ भी अनैतिक करते तो प्रशासन कार्रवाई कर सकता था, लेकिन उन्होंने तो कार्यक्रम ही नहीं करने दिया. ‘

वह कहते हैं कि इससे पहले हमने इसी जगह शहीद भगत सिंह को लेकर कार्यक्रम किया था, और भी कई कार्यक्रम होते रहे हैं, लेकिन कभी अनुमति नहीं ली, बस हम प्रशासन को सूचित करके कार्यक्रम करते रहते हैं क्योंकि हर विश्वविद्यालय में स्टूडेंट कॉर्नर छात्रों का होता है जहां वह अपने विचार व्यक्त करते हैं.

‘पढ़ाई में व्यवधान’

छात्र विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा गांधी जी को श्रद्धांजलि देने से रोके जाने के कारणों पर बात करते हुए कहते हैं, ‘प्रशासन का तर्क है कि परीक्षाएं नजदीक हैं, इसलिए ऐसे आयोजन से बच्चों की कक्षाओं और पढ़ाई में व्यवधान आता है. लेकिन, प्रशासन ने भी तो स्वयं सुबह आयोजन किया था, जिसमें भजन-संगीत भी हुआ. क्या इससे छात्रों की पढ़ाई बाधित नहीं हुई?’

चंदन कहते हैं, ‘हमारा कार्यक्रम शाम 6 बजे के बाद था, जबकि कक्षाएं 6 बजे के पहले तक चलती हैं. जिन बच्चों की परीक्षाओं की बात की जा रही है, तो कार्यक्रम में करीब 100 बच्चे थे, मतलब कि शहादत दिवस मनाने वाले वही बच्चे थे जिनकी परीक्षाएं थीं. गौर करने वाली बात है कि गांधी सोशल वर्क और समाज शास्त्र के सिलेबस में भी हैं, यहां के तमाम पाठ्यक्रम में गांधी शामिल हैं, बच्चे जब गांधी को पढ़ रहे हैं तो यह आयोजन भी तो एक तरह की कक्षा ही हुई. इसलिए परीक्षा वाला तर्क निराधार है.’

चंदन आरोप लगाते हैं, ‘इसी विश्वविद्यालय में अन्य संगठन, जैसे एबीवीपी, के लोग तमाम कार्यक्रम करते रहते हैं,  उन्हें कभी नहीं रोका जाता. हमारे मामले में प्रशासन का यह भी तर्क है कि ये कार्यक्रम वामपंथी छात्र कर रहे हैं. हां, वामपंथी छात्र शामिल थे, लेकिन कार्यक्रम उनका नहीं था. और वामपंथी छात्र कर भी रहे हैं तो क्या आपत्ति है, कार्यक्रम तो गांधी पर ही है न?

लगातार छात्रों का दमन के आरोप

चंदन का कहना है कि विश्वविद्यालय में तमाम चीजें इसके विधान के खिलाफ हो रही हैं, जैसे कि कभी भी किसी भी छात्र का निलंबन या निष्कासन कर देना.

गणतंत्र दिवस पर हुई ऐसी ही एक घटना का विवरण देते हुए वे कहते हैं, ‘हमारे कुलपति अदालत में इस पद के लिए अयोग्य माने गए हैं, लेकिन वे फिर भी पद पर जमे हुए हैं. गणतंत्र दिवस के दिन  कुछ छात्रों ने एक काले कपड़े पर ‘अवैध कुलपति वापस जाओ’ लिखकर उन्हें दिखाया तो इस घटना के संबंध में पांच छात्रों को निलंबित और निष्कासित कर दिया गया. इसके लिए न कोई समिति गठित की, न नोटिस जारी किए, बस तानाशाह तरीके से फैसला सुना दिया.’

ऐसे ही एक छात्र विवेक मिश्रा से द वायर ने बात की. उन्हें 27 जनवरी को जारी एक कार्यालयीन आदेश के माध्यम से निलंबित करते हुए उनका छात्रावास आवंटन रद्द कर दिया गया था. इसके पीछे कारण उनके सोशल मीडिया पोस्ट को बताया गया था.

आदेश में लिखा गया है कि उन्होंने विश्वविद्यालय के संबंध में सोशल मीडिया पर मानहानिकारक, भ्रामक, अमर्यादित खबर प्रसारित की थी, जिसके परिणामस्वरूप उनका छात्रावास आवंटन रद्द करके तत्काल छात्रावास कक्ष खाली करने का निर्देश दिया जाता है और विश्वविद्यालय परिसर में उनका प्रवेश निषिद्ध किया जाता है.

द वायर से बातचीत में विवेक कहते हैं कि उन्हें अब तक यह नहीं बताया गया है कि आखिर वो कौन-सा सोशल मीडिया पोस्ट था, जिसे विश्वविद्यालय ने आपत्तिजनक माना है.

हालांकि, वह आशंका व्यक्त करते हैं कि उन्होंने गणतंत्र दिवस पर कुलपति द्वारा झंडारोहण का विरोध करने वाले छात्रों के समर्थन में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखा था और एक लाइव भी किया था, संभव है कि इसके चलते ही उन्हें कार्रवाई झेलनी पड़ी है.

विवेक का आरोप है कि छात्रावास कक्ष खाली कराने की कवायद में 27 जनवरी को विश्वविद्यालय के कुलसचिव की मौजूदगी में अन्य अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों ने उन पर शारीरिक हमला किया और जबरन बाहर धकेल दिया गया. इसकी शिकायत उन्होंने स्थानीय पुलिस में भी की है.

विवेक फिलहाल विश्वविद्यालय के गेट पर अपने निलंबन के खिलाफ अनशन पर बैठे हुए हैं. वे द वायर से कहते हैं, ‘मेरे आवेदन पर पुलिस ने अब तक एफआईआर दर्ज नहीं की है. मैंने इसकी शिकायत वर्धा के एसपी से भी की है.’

सूर्यास्त के बाद श्रद्धांजलि अर्पित करने का कोई औचित्य नहीं: विश्वविद्यालय

महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर छात्रों को श्रद्धांजलि सभा आयोजित करने से रोकने के संदर्भ में विश्वविद्यालय प्रशासन ने द वायर को भेजे अपने जवाब में कहा है कि छात्रों के कार्यक्रम का मकसद विश्‍वविद्यालय की छवि को धूमिल करने का था.

विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी बीएस मिरगे द्वारा भेजे गए लिखित जवाब में कहा गया है, ‘गांधीजी की पुण्‍यतिथि के दिन 30 जनवरी को विश्‍वविद्यालय द्वारा पूर्वाह्न 11:00 बजे गांधी हिल्‍स पर पुष्‍पांजलि, प्रार्थना और मौनधारण का आयोजन कर शहीद दिवस पर गांधीजी को अभिवादन किया गया था. इस कार्यक्रम में शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों को भी कुलसचिव कार्यालय द्वारा जारी सूचना के माध्‍यम से आमंत्रित किया गया था. इस दौरान शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्‍या में उपस्थित रहे. उक्‍त कार्यक्रम में उपस्थित न रहकर कुछ छात्रों ने कुलसचिव को 29 जनवरी को एक पत्र देकर शाम 6 बजे चर्चा-परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन करने की सूचना दी थी. विश्‍वविद्यालय प्रशासन की ओर से सुबह 11 बजे ही शहीद दिवस पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया जा चुका था और सूर्यास्त के बाद शाम 6 बजे श्रद्धांजलि अर्पित करने का कोई औचित्‍य नहीं बनता था.’

जवाब में आगे कहा गया, ‘विद्यार्थियों के पत्र पर कुलसचिव महोदय ने ‘विश्‍वविद्यालय के कार्यक्रम में शामिल हो’ लिखकर उन्‍हें आमंत्रित किया था. परंतु कार्यक्रम की गंभीरता को नजरअंदाज कर अनुमति न होते हुए भी कुछ विद्यार्थी गांधी हिल्‍स पर एकत्रित हुए.’

विश्‍वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि विद्यार्थी गांधी हिल्‍स पर महात्‍मा गांधीजी की प्रतिमा के पास चर्चा-परिचर्चा कार्यक्रम न करते हुए अलग से गांधीजी का छोटा-सा फोटो लेकर जमा हुए. यह कृत्‍य विश्‍वविद्यालय की छवि को धूमिल करने वाला प्रतीत होता है और यह उन विद्यार्थियों की मंशा पर भी प्रश्‍न चिह्न खड़ा करता है.

आगे जवाब में छात्रों के उद्देश्य पर सवाल उठाते हुए कहा गया है , ‘यदि विद्यार्थी 11 बजे के कार्यक्रम में शामिल होते तो उन्‍हें 6 बजे के कार्यक्रम के लिए अलग से अनुमति की जरूरत ही नहीं होती. विश्‍वविद्यालय में गांधीजी को श्रद्धांजलि देने से कोई रोक नहीं थी. अमूमन श्रद्धांजलि के कार्यक्रम दिन में ही आयोजित करने की व्‍यवस्‍था रही है, जिसे तोड़कर शाम 6 बजे सभा की जा रही थी. शाम को सभा आयोजित करने के पीछे आखिर क्‍या उद्देश्य था?’

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