बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने एक व्यक्ति को बलात्कार के मामले से बरी करते हुए ये टिप्पणी की, जहां उस पर धोखाधड़ी से एक महिला की सहमति प्राप्त करने का आरोप था. अदालत ने कहा कि वादा तोड़ने और झूठा वादा पूरा न करने के बीच अंतर है. सत्र अदालत द्वारा आवेदन को ख़ारिज करने के बाद आरोपी ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.
नई दिल्ली: बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीते 30 जनवरी को एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि माता-पिता के विरोध के कारण शादी का वादा तोड़ना बलात्कार नहीं है.
हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने एक व्यक्ति को बलात्कार के मामले से बरी करते हुए ये टिप्पणी की, जहां उस पर धोखाधड़ी से एक महिला की सहमति प्राप्त करने का आरोप था. अदालत ने कहा कि वादा तोड़ने और झूठा वादा पूरा न करने के बीच अंतर है.
मामले में महिला शिकायतकर्ता ने कहा कि वह और आरोपी ने शारीरिक संबंध बनाए, जब उसने वादा किया कि वह शादी करेगा, लेकिन आरोपी ने दूसरी महिला से सगाई कर ली, जिसके बाद शिकायतकर्ता ने 2019 में पुलिस से संपर्क किया, हाईकोर्ट के आदेश में उसकी शिकायत और उसके बाद की एफआईआर का हवाला दिया गया.
इसमें यह भी कहा गया कि महिला शिकायतकर्ता ने आरोपी की सगाई के बारे में जानने के बाद उसके माता-पिता से मुलाकात की थी और ‘उसके पिता ने आरोपी की शिकायतकर्ता के साथ शादी के लिए सहमत होने से इनकार कर दिया था’.
अदालत ने सबूतों का हवाला देते हुए फैसला सुनाया कि आरोपी के अपने माता-पिता की असहमति के कारण शादी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से पीछे हटने का मतलब यह नहीं है कि उस पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 (बलात्कार) के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाया जाए.
स्थानीय सत्र अदालत द्वारा मामले से मुक्त करने के उसके आवेदन को खारिज करने के बाद आरोपी ने राहत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
अभियोजक ने तर्क दिया कि एफआईआर के अनुसार, आरोपी ने ‘शादी के झूठे वादे के तहत शिकायतकर्ता की सहमति प्राप्त की और शुरुआत से ही, आवेदक (अभियुक्त) का शिकायतकर्ता से शादी करने का कोई इरादा नहीं था’.
उन्होंने कहा कि चूंकि आरोपी ने झूठे आधार पर शिकायतकर्ता की सहमति प्राप्त की, इसलिए आईपीसी की धारा 375, जो बलात्कार से संबंधित है, लागू होगी.
हालांकि, आरोपी ने तर्क दिया कि उसने शिकायतकर्ता से शादी करने की पेशकश की थी, लेकिन उसे (महिला) इसमें ‘बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं थी’.
लेकिन जस्टिस एमडब्ल्यू चंदवानी की पीठ ने कहा, ‘आवेदक और महिला के बीच वॉट्सऐप चैट से यह भी प्रतीत होता है कि शुरू में आवेदक उससे शादी करने के लिए तैयार था, लेकिन यह महिला थी, जिसने इससे इनकार कर दिया और आवेदक को सूचित किया कि वह दूसरे लड़के से शादी करेगी.’
पीठ ने कहा, ‘जब आवेदक की किसी अन्य लड़की से सगाई हो गई, तभी महिला ने शिकायत दर्ज कराई.’
आरोपी के अपनी प्रतिबद्धता से पीछे हटने का जिक्र करते हुए जस्टिस चंदवानी ने सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि ‘सिर्फ एक वादा तोड़ने और झूठा वादा पूरा न करने के बीच अंतर है’.
हाईकोर्ट ने आरोपी के आरोपमुक्त करने के आवेदन को खारिज करने के सत्र न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और खुद ही उसे आरोपमुक्त करने की कार्रवाई शुरू कर दी.
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