केंद्रीय परीक्षाओं में धांधली रोकने वाले विधेयक में 10 साल जेल और 1 करोड़ जुर्माने का प्रावधान

सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक संघ लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, रेलवे भर्ती बोर्ड, बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान और राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी द्वारा आयोजित केंद्रीय भर्ती और प्रवेश परीक्षाओं पर लागू होता है. सभी केंद्रीय मंत्रालय और विभाग, साथ ही उनके भर्ती कार्यालय भी नए क़ानून के पारित होने पर उसके दायरे में आएंगे.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/Ministry of Railway)

सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक संघ लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, रेलवे भर्ती बोर्ड, बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान और राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी द्वारा आयोजित केंद्रीय भर्ती और प्रवेश परीक्षाओं पर लागू होता है. सभी केंद्रीय मंत्रालय और विभाग, साथ ही उनके भर्ती कार्यालय भी नए क़ानून के पारित होने पर उसके दायरे में आएंगे.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/Ministry of Railway)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सोमवार को लोकसभा में ‘सार्वजनिक परीक्षाओं में कदाचार’ के लिए 3 से 10 साल की जेल की सजा और 1 करोड़ रुपये से अधिक तक के जुर्माने का प्रावधान करने वाला एक विधेयक पेश किया.

सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक-2024 संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी), कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी), रेलवे भर्ती बोर्ड (आरआरबी), बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान (आईबीपीएस) और राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) द्वारा आयोजित केंद्रीय भर्ती और प्रवेश परीक्षाओं पर लागू होता है.

एनटीए उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए परीक्षा आयोजित करता है, जैसे कि इंजीनियरिंग के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई), मेडिकल के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (एनईईटी), और स्नातक तथा स्नातकोत्तर अध्ययन के लिए सामान्य विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी).

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इन नामित सार्वजनिक परीक्षा प्राधिकरणों के अलावा सभी केंद्रीय मंत्रालय और विभाग, साथ ही उनके भर्ती कार्यालय भी नए कानून के पारित होने पर उसके दायरे में आएंगे.

कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह द्वारा प्रस्तुत किए गए विधेयक में कहा गया है, ‘वर्तमान में केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों द्वारा सार्वजनिक परीक्षाओं के संचालन में शामिल विभिन्न संस्थाओं द्वारा अपनाए गए अनुचित तरीकों या किए गए अपराधों से निपटने के लिए कोई विशिष्ट ठोस कानून नहीं है.’

विधेयक में जहां ‘मौद्रिक या गलत लाभ’ के लिए अनुचित साधनों में लिप्त ‘व्यक्तियों, संगठित समूहों या संस्थानों’ के लिए दंड का प्रावधान है, वहीं परीक्षा में बैठने वाले उम्मीदवारों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है.

विधेयक की धारा 3 ‘अनुचित साधन’ को कुछ इस तरह पारिभाषित करती है- ‘किसी व्यक्ति या व्यक्तियों या संस्थानों के समूह द्वारा किया गया या कराए जाने वाला कोई कार्य या चूक, और जिसमें मौद्रिक या गलत लाभ के लिए निम्नलिखित में से कोई भी कार्य शामिल है, लेकिन कार्य इन्हीं तक सीमित नहीं हैं: प्रश्न-पत्र या उत्तर कुंजी या उसके किसी भाग का लीक होना; प्रश्न-पत्र या उत्तर कुंजी को लीक करने के लिए दूसरों के साथ मिलीभगत में भाग लेना; बिना अधिकार के प्रश्न-पत्र या ऑप्टिकल मार्क रिकग्निशन रिस्पॉन्स शीट तक पहुंच या कब्जा लेना.’

धारा 9 में कहा गया है कि सभी अपराध संज्ञेय, गैर-जमानती और गैर-समझौते वाले होंगे.

विधेयक की धारा 10 में कहा गया है, ‘इस अधिनियम के तहत अनुचित साधनों का सहारा लेने वाले और अपराध करने वाले किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों को कम से कम तीन साल की कैद की सजा दी जाएगी, जिसे पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा. जुर्माने का भुगतान न करने की स्थिति में अतिरिक्त कारावास की सजा दी जाएगी.’

विधेयक में ‘संगठित’ पेपर लीक के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया है, जिसमें अपराध को ‘सार्वजनिक परीक्षा के संबंध में गलत लाभ के लिए साझा हित को आगे बढ़ाने या बढ़ावा देने के लिए मिलीभगत और साजिश के तहत अनुचित साधनों में लिप्त किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा की गई गैरकानूनी गतिविधि’ के रूप में परिभाषित किया गया है.

विधेयक की धारा 11 में कहा गया है, ‘अगर कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह, परीक्षा प्राधिकरण या सेवा प्रदाता या कोई अन्य संस्थान समेत, एक संगठित अपराध करता है तो उसे कम से कम पांच साल की कैद की सजा दी जाएगी, जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है. साथ में जुर्माना लगेगा जो एक करोड़ रुपये से कम नहीं होगा. जुर्माने का भुगतान न करने की स्थिति में अतिरिक्त कारावास की सजा दी जाएगी.’

विधेयक में कहा गया है, ‘विधेयक का उद्देश्य सार्वजनिक परीक्षा प्रणालियों में अधिक पारदर्शिता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता लाना है और युवाओं को आश्वस्त करना है कि उनके ईमानदार और वास्तविक प्रयासों का उचित प्रतिफल मिलेगा और उनका भविष्य सुरक्षित है.’

हालांकि प्रावधान केंद्रीय सार्वजनिक परीक्षा प्राधिकरणों के लिए बाध्यकारी होंगे, फिर भी यह राज्यों के लिए एक आदर्श मसौदे के रूप में काम करेंगे. गुजरात और असम जैसे कुछ राज्यों का इस संबंध में पहले से ही अपना कानून है.

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