भाजपा सांसद ने पूजा स्थल अधिनियम को रद्द करने की मांग की, इसे ‘अतार्किक और असंवैधानिक’ बताया

राज्यसभा में भाजपा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 संविधान के तहत हिंदुओं, सिखों, बौद्धों और जैनियों के धार्मिक अधिकारों को छीन लेता है. इससे देश में सांप्रदायिक सौहार्द्र को भी नुकसान पहुंच रहा है. इसलिए मैं सरकार से राष्ट्रहित में इस क़ानून को तुरंत रद्द करने का आग्रह करता हूं.

हरनाथ सिंह यादव. (फोटो साभार: फेसबुक)

राज्यसभा में भाजपा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 संविधान के तहत हिंदुओं, सिखों, बौद्धों और जैनियों के धार्मिक अधिकारों को छीन लेता है. इससे देश में सांप्रदायिक सौहार्द्र को भी नुकसान पहुंच रहा है. इसलिए मैं सरकार से राष्ट्रहित में इस क़ानून को तुरंत रद्द करने का आग्रह करता हूं.

हरनाथ सिंह यादव. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई​ दिल्ली: शून्यकाल के दौरान राज्यसभा को संबोधित करते हुए भाजपा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने बीते सोमवार (5 फरवरी) को पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को निरस्त करने की मांग की, जो हर पूजा स्थल के चरित्र को वर्ष 1947 की तरह बनाए रखने का आदेश देता है, जिसमें अयोध्या एकमात्र अपवाद है.

उन्होंने कहा, ‘पूजा स्थल अधिनियम पूरी तरह से अतार्किक और असंवैधानिक है. यह संविधान के तहत हिंदुओं, सिखों, बौद्धों और जैनियों के धार्मिक अधिकारों को छीन लेता है. इससे देश में सांप्रदायिक सौहार्द्र को भी नुकसान पहुंच रहा है. इसलिए मैं सरकार से राष्ट्रहित में इस कानून को तुरंत रद्द करने का आग्रह करता हूं.’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने दावा किया कि यह कानून, जिसे वह एक मनमानी कट-ऑफ तारीख के रूप में देखते हैं, संविधान में गारंटी के अनुसार समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है.

यह बयान ऐसे समय में आया है, जब वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के एक तहखाने में हिंदू पूजा शुरू हो गई है और मस्जिद के साथ-साथ मथुरा में शाही ईदगाह को भी हिंदुओं को सौंपने के लिए याचिकाएं दायर की गई हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां अब ज्ञानवापी है, वहां एक हिंदू मंदिर मौजूद था.

आरएसएस और भाजपा इस मुद्दे पर काफी हद तक चुप हैं, दोनों के सूत्रों का कहना है कि अदालतें इस मामले को सुलझा लेंगी और दोनों में से किसी ने भी इस मुद्दे पर किसी आंदोलन की कोई योजना नहीं बनाई है.

बाद में इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उत्तर प्रदेश से भाजपा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने कहा कि उन्होंने इस मामले के बारे में पार्टी से कोई बात नहीं की है और न ही लिखा है.

उन्होंने कहा, ‘जब यह कानून 1991 में लाया गया था, तब भाजपा ने इसका कड़ा विरोध किया था. अरुण जेटली और सुषमा स्वराज ने इसका विरोध किया. ऐसे में साफ है कि पार्टी इसके खिलाफ है.’

उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने कल एक कार्यक्रम में कहा था कि जो लोग लंबे समय तक सत्ता में रहे, वे धार्मिक स्थलों के महत्व को नहीं समझ सके और उन्होंने ऐसा माहौल बनाया जहां लोगों को संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्यों के लिए अपनी ही संस्कृति पर शर्म आती है. उन्होंने यह भी कहा था कि कोई भी राष्ट्र अपने अतीत को भूलकर और अपनी जड़ों से कटकर प्रगति नहीं कर सकता. तो, इस गुलाम मानसिकता के खिलाफ और हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दरार पैदा करने की लगातार कोशिशों के खिलाफ मैंने इसे शून्यकाल में उठाया, क्योंकि अब समय अमृत काल में है, जब मोदीजी सत्ता में हैं, बदलाव की इस दिशा में आगे बढ़ने का समय आ गया है.’

भाजपा सांसद यादव ने कहा, ‘मैं मुस्लिम भाइयों से भी अपील करता हूं कि राम और कृष्ण उनके भी पूर्वज थे, उन्हें उनका सम्मान और आदर करना चाहिए. इसलिए, राष्ट्रीय एकता के हित में, जिसे कांग्रेस ने बाधित करने की कोशिश की, उन्हें अब स्वेच्छा से इन स्थलों को हिंदुओं को सौंप देना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘जब से कांग्रेस सत्ता में आई है, उसने वोट पाने के लिए और हिंदुओं को अपमानित करने के लिए कई कानून बनाए हैं जो हिंदू और मुसलमानों के बीच दरार पैदा करते हैं. इस अधिनियम के माध्यम से उन्होंने आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किए गए मंदिरों पर आधिकारिक मंजूरी की मुहर लगा दी.’

यह पूछे जाने पर कि क्या अब इस आधार पर एक मस्जिद को ध्वस्त करना कि उस स्थान पर एक मंदिर था, उन मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं होगा जो उस मस्जिद में नमाज पढ़ते हैं, यादव ने कहा, ‘मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा 140 करोड़ भारतीयों के बारे में सोचती है और बिना किसी भेदभाव के उनके उत्थान के लिए काम कर रही है. मुस्लिम नेता मुसलमानों की बेरोजगारी या गरीबी के बारे में कभी नहीं सोचते. वे सिर्फ भावनाएं भड़काना चाहते हैं. इसलिए मैं आम मुसलमानों से अपील करता हूं कि वे इन स्थलों को हिंदुओं को सौंप दें.’

पिछले साल भी हरनाथ सिंह यादव ने इस मामले पर राज्यसभा में एक निजी विधेयक पेश करने के लिए नोटिस दिया था, लेकिन जब उनका नाम पुकारा गया तो वह अनुपस्थित थे.