शैक्षणिक संस्थानों में एससी, एसटी पद ‘पक्षपातपूर्ण मूल्यांकन’ के चलते ख़ाली रहते हैं: संसदीय समिति

अनुसूचित जाति और जनजाति पर गठित संसदीय समिति को सौंपे गए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का डेटा बतात है कि 2018 में दिल्ली एम्स में 16 सीनियर फैकल्टी पद ख़ाली रहे क्योंकि चयन समिति ने एससी/एसटी और ओबीसी के 'उम्मीदवारों को उपयुक्त नहीं' पाया. 2022 में ऐसे 12 पद और खाली रहे थे.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

अनुसूचित जाति और जनजाति पर गठित संसदीय समिति को सौंपे गए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का डेटा बतात है कि 2018 में दिल्ली एम्स में 16 सीनियर फैकल्टी पद ख़ाली रहे क्योंकि चयन समिति ने एससी/एसटी और ओबीसी के ‘उम्मीदवारों को उपयुक्त नहीं’ पाया. 2022 में ऐसे 12 पद और खाली रहे थे.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कल्याण पर संसदीय समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली एम्स में चयन समिति के ‘पक्षपाती मूल्यांकन’ के कारण एससी/एसटी वर्ग के कई उम्मीदवारों को ‘जानबूझकर अयोग्य घोषित’ किया गया है.

रिपोर्ट को मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया था

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, समिति को सौंपे गए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के डेटा के अनुसार 2018 में दिल्ली एम्स में 16 सीनियर फैकल्टी के पद खाली रह गए क्योंकि चयन समिति ने एससी/एसटी और ओबीसी श्रेणी में ‘उम्मीदवारों को उपयुक्त नहीं’ पाया. 2022 में ऐसे 12 पद और खाली रह गए.

लोकसभा सांसद किरीट प्रेमजीभाई सोलंकी की अध्यक्षता वाली समिति ने फैकल्टी नियुक्त करने में सरकार की असमर्थता को ‘घिसी-पिटी प्रतिक्रिया’ बताकर खारिज कर दिया.

सरकार के कदमों को एससी और एसटी उम्मीदवारों का पक्षपाती मूल्यांकन बताते हुए समिति ने कहा कि ऐसी पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों को ‘जानबूझकर अनुपयुक्त’ घोषित किया जाता है ताकि ‘अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को फैकल्टी में शामिल होने के उनके वैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा सके.’

समिति ने दोहराया कि एससी/एसटी के लिए आरक्षित पदों को ‘किसी भी परिस्थिति में’ छह महीने से अधिक समय तक खाली नहीं रखा जा सकता है.

संसदीय समिति ने कहा कि अपर्याप्त प्रतिनिधित्व एससी और एसटी वर्ग के लोगों को निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा बनने से वंचित करता है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘समिति का विचार है कि प्रतिनिधित्व प्रदान करने और एम्स में एससी/एसटी कर्मचारियों की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए बनाई जा रही नीतियों में भाग लेने के लिए चयन समिति में एससी/एसटी समुदाय के सदस्यों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए.’

समिति ने चयन बोर्ड में एससी और एसटी समुदाय के सदस्यों को शामिल करने के लिए एम्स अधिनियम में संशोधन की सिफारिश की है.

समिति ने यह भी कहा कि सुपर स्पेशियलिटी पाठ्यक्रमों में आरक्षण भी वंचित समुदाय तक नहीं बढ़ाया जा रहा है.