महाराष्ट्र सरकार ने कहा, अगर 40% छात्रों ने ख़िलाफ़ वोट किया तो मिड-डे मील में अंडे नहीं मिलेंगे

श्री मुंबई जैन संघ संगठन और भारतीय जनता पार्टी के आध्यात्मिक सेल के सदस्यों ने कथित तौर पर मिड-डे मील में अंडे परोसे जाने का विरोध किया था. जैन संघ के ट्रस्टियों द्वारा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को एक ज्ञापन दिए जाने के बाद राज्य सरकार ने बीते 24 जनवरी को इस संबंध में एक नया प्रस्ताव जारी किया है.

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[फोटो साभार: Flickr/Harvest Plus (CC BY-NC 2.0)]

श्री मुंबई जैन संघ संगठन और भारतीय जनता पार्टी के आध्यात्मिक सेल के सदस्यों ने कथित तौर पर मिड-डे मील में अंडे परोसे जाने का विरोध किया था. जैन संघ के ट्रस्टियों द्वारा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को एक ज्ञापन दिए जाने के बाद राज्य सरकार ने बीते 24 जनवरी को इस संबंध में एक नया प्रस्ताव जारी किया है.

[फोटो साभार: Flickr/Harvest Plus (CC BY-NC 2.0)]
नई दिल्ली: मिड-डे मील (मध्याह्न भोजन) में अंडे को शामिल करने को लेकर विवाद एक बार फिर से उभर आया है. महाराष्ट्र सरकार ने एक सरकारी प्रस्ताव (जीआर) में संशोधन कर दिया है, जिसके तहत राज्य में छात्रों को सप्ताह में एक बार अंडा दिया जाना अनिवार्य था.

मिडडे की रिपोर्ट के अनुसार, यह कदम कथित तौर पर जैन समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन श्री मुंबई जैन संघ संगठन (एसएमजेएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के आध्यात्मिक सेल के सदस्यों जैसे धार्मिक संगठनों के विरोध के मद्देनजर उठाया गया है.

पहले के प्रस्ताव में माता-पिता को यह चुनने की अनुमति थी कि क्या वे अपने बच्चे को अंडे परोसना चाहते हैं या विकल्प के रूप में केले को चुनना चाहते हैं. हालांकि, संशोधित प्रस्ताव ने शाकाहारी और मांसाहारी भोजन विकल्पों के बीच चयन करने के विकल्प को रद्द कर दिया है.

पिछले महीने जारी एक प्रस्ताव में कहा गया है कि अगर किसी स्कूल में 40 प्रतिशत माता-पिता/छात्र अंडे खाने के लिए सहमति नहीं देते हैं तो मध्याह्न भोजन में अंडे शामिल नहीं किए जाएंगे.

प्रस्ताव यह भी निर्दिष्ट करता है कि इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (इस्कॉन) से संबद्ध चैरिटी अक्षय पात्र और अन्नामृत फाउंडेशन से भोजन प्राप्त करने वाले स्कूलों को अंडे परोसने से छूट दी जाएगी.

मिड-डे मील योजना सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले लगभग 2 करोड़ छात्रों को पौष्टिक भोजन प्रदान करती है. छात्रों के आहार में सुधार करने के लिए यह निर्णय लिया गया था कि उन्हें केवल खिचड़ी के बजाय अंडा पुलाव, बिरयानी, मिठाई, सब्जियां और फल परोसे जाएंगे. रिपोर्ट में कहा गया है कि 20 साल में यह पहली बार था जब स्कूल शिक्षा विभाग ने मिड-डे मील के मेनू में अंडे को फिर से शामिल करने का फैसला किया था.

हालांकि, बीते 5 जनवरी को जैन संघ के ट्रस्टियों और सदस्यों द्वारा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और स्कूल शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर को एक ज्ञापन दिए जाने के बाद सरकार ने 24 जनवरी को एक नया प्रस्ताव जारी किया.

जैन संघ के विराग शाह ने कहा, ‘हमने इस बात पर प्रकाश डाला कि नई मिड-डे मील योजना के तहत अंडे के उत्पादन के लिए प्रति माह लगभग चार करोड़ चूजों और प्रति वर्ष कम से कम 36 करोड़ चूजों (छुट्टियों की अवधि को छोड़कर) की बलि दी जाएगी. अब प्रस्ताव में बदलाव के परिणामस्वरूप प्रति माह और वर्ष में क्रमश: लगभग 2.25 करोड़ और 20 करोड़ चूजों को बचाया जाएगा.’

इस धार्मिक संघ ने आरोप लगाया कि मिड-डे मील योजना में अंडे को शामिल करने का उद्देश्य पोल्ट्री उद्योग को लाभ पहुंचाना है.

इसने कहा, ‘किसी भी हितधारक की ओर से अंडे की कोई मांग नहीं है. पोल्ट्री किसानों को समर्थन देने की राज्य की मंशा निरर्थक साबित होगी. यह योजना राज्य पर भारी आर्थिक बोझ डालेगी.’

हालांकि संगठन ने यह नहीं बताया कि यह आर्थिक बोझ क्यों या कैसे साबित होगा.

जैन संघ ने दावा किया, ‘पीएम पोषण योजना अपनी पूरी योजना में अंडे की सिफारिश नहीं करती है. यह सांस्कृतिक रूप से स्वीकृत भोजन की वकालत करता है. महाराष्ट्र में, जहां शाकाहारी आबादी 40 प्रतिशत है, अंडे को सांस्कृतिक रूप से स्वीकृत भोजन नहीं कहा जा सकता है.’

दक्षिण मुंबई के एक बीएमसी स्कूल के प्रिंसिपल ने कहा कि सरकारी प्रस्ताव ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी को भी अंडे खाने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘ये आपत्तियां और प्रस्ताव में किए गए संशोधन अतार्किक हैं. मेरे घरेलू नौकर की बेटी बीएमसी स्कूल में पढ़ती है. वे अंडे पसंद करते हैं. सिर्फ इसलिए कि 40 प्रतिशत छात्र/अभिभावक अंडे के खिलाफ हैं, उसे अपने भोजन के साथ अंडे नहीं मिलेंगे। यह कैसे उचित है?’

प्रतिबंध की आलोचना करते हुए माता-पिता जागरूकता समूह ‘मराठी शाला आपन टिकवल्या पजीहेट’ के संयोजक प्रसाद गोखले ने कहा, ‘हम दूसरों को अपनी प्राथमिकताओं का पालन करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते हैं. कई आहार विशेषज्ञ और पोषण विशेषज्ञ स्वास्थ्य लाभों का हवाला देते हुए अंडे की सलाह देते हैं. राज्य सरकार को इन बदलावों के लिए धार्मिक समूहों पर निर्भर रहने के बजाय विशेषज्ञों पर भरोसा करना चाहिए था. यह नए तरह का भेदभाव अब एक चलन बन गया है. मैं इन संशोधनों से असहमत हूं.’

डॉक्टरों और पोषण विशेषज्ञों ने बार-बार बताया है कि भारतीय आहार में अंडे प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं, जिनमें अन्यथा कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है.

डॉ. हेमा यादव ने कहा, ‘अंडे महत्वपूर्ण पोषण मूल्य प्रदान करते हैं, क्योंकि वे उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन प्रदान करते हैं. हालांकि इन्हें पौधे-आधारित प्रोटीन से बदलना संभव है, लेकिन ऐसे विकल्प महंगे और अव्यावहारिक हो सकते हैं. एक अंडा बच्चे की दैनिक प्रोटीन आवश्यकताओं को आसानी से पूरा कर सकता है.’

भोजन का अधिकार अभियान से जुड़े लोगों सहित अधिकार कार्यकर्ताओं ने यह भी बताया है कि मध्याह्न भोजन योजना के तहत बच्चों को अंडे परोसना क्यों महत्वपूर्ण है.

संगठन ने कहा था कि हाशिये पर रहने वाले समुदायों के बच्चों में पोषण की कमी, बौनापन, कम वजन और अन्य प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं अधिक हैं. इन परिदृश्यों में अंडे एक बच्चे की पोषण स्थिति को ठीक सकते हैं और कुपोषण और खराब स्वास्थ्य स्थितियों से लड़ने में आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त करने में मदद करेंगे.

इसके अनुसार, ‘अंडे अच्छी गुणवत्ता वाले प्रोटीन, खनिज, विटामिन और वसा सहित कई पोषण संबंधी जरूरतें प्रदान करते हैं. इन्हें पकाना आसान है, अन्य खाद्य पदार्थों की तरह मिलावट और चोरी की संभावना नहीं है और स्कूल में उपस्थिति बढ़ाने में योगदान करते हैं.’

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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