मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने राज्य के नर्सिंग कॉलेजों की जांच की थी. 26 अप्रैल 2023 को इस संबंध में जांच का आदेश देते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि कुछ कॉलेजों को ‘अवैध तरीके’ से मान्यता दी गई है और यह ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य और अस्पतालों में असंख्य रोगियों के जीवन को ख़तरे में डाल रहा है.
नई दिल्ली: सीबीआई ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को बताया है कि राज्य के नर्सिंग कॉलेजों में न तो छात्र हैं, न ही शिक्षक. कक्षाएं खस्ताहाल हैं और कुछ मामलों में शौचालय तक नहीं हैं.
ऐसे ही और भी मुद्दे हैं, जिन्हें सीबीआई ने हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में उठाया है. हाईकोर्ट ने बीते वर्ष राज्य में नर्सिंग कॉलेजों के संचालन में कथित अनियमितताओं की जांच का आदेश दिया था.
26 अप्रैल 2023 को जांच का आदेश देते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि कुछ कॉलेजों को ‘अवैध तरीके’ से मान्यता दी गई है और यह ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य और अस्पतालों में असंख्य रोगियों के जीवन को खतरे में डाल रहा है, ऐसे कॉलेजों के तथाकथित छात्रों के हाथों, जिनके पास योग्य नर्स का प्रमाण पत्र है.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इसके बाद सीबीआई ने राज्य संचालित मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी से संबद्ध 364 कॉलेजों की एक सूची तैयार की और पिछले साल 28 अप्रैल को 25 कॉलेजों पर एक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत की.
रिपोर्ट पर गौर करने के बाद अदालत ने कहा कि यह ‘गंभीर स्थिति है कि ऐसे कॉलेजों को भी संबद्धता दे दी गई है, जो आवश्यक नियमों के अनुरूप नहीं हैं.’
रिपोर्ट में 25 कॉलेजों से संबंधित जांच विवरण शामिल थे, जिनमें भोपाल के 15, ग्वालियर के आठ और भिंड और विदिशा जिले के एक-एक कॉलेज शामिल थे.
भारतीय नर्सिंग काउंसिल के मानकों के अनुसार, नर्सिंग कॉलेजों का क्षेत्रफल कम से कम 23,000 वर्ग फुट होना चाहिए और मध्य प्रदेश नर्स पंजीकरण परिषद (एमपीएनआरसी) की शर्तों के अनुसार यह कम से कम 17,000 वर्ग फुट होना चाहिए.
भोपाल में सीबीआई द्वारा निरीक्षण किए गए कॉलेजों में से केवल एक ही दोनों शर्तों पर खरा उतरा, आठ कॉलेज बंद पाए गए और तीन ऐसे पाए गए, जिनका लाइसेंस रद्द कर दिया गया था.
रिपोर्ट में बंद कॉलेजों की सूची में एक 3,020 वर्ग फुट के किराये के परिसर में स्थित कृष्णा देवी कॉलेज ऑफ नर्सिंग का उल्लेख किया गया है, जिसे बंद कर दिया गया था, क्योंकि इसे ‘शैक्षणिक सत्र 2021-22’ में संचालित करने की अनुमति नहीं थी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि ‘कॉलेज में 29 छात्रों को प्रवेश दिया गया था, जो अभी भी कॉलेज में दूसरे वर्ष में पढ़ रहे हैं’ और एक प्रिंसिपल और दो फैकल्टी सदस्य मौके पर पाए गए, जबकि ‘सुविधाएं कोई उपलब्ध नहीं थीं.’
15,000 वर्ग फुट क्षेत्र में बने जय हिंद कॉलेज में पांच प्रयोगशालाएं और एक पुस्तकालय था, जो 2,300 वर्ग फुट के निर्धारित क्षेत्र के मुकाबले केवल 1,375 वर्ग फुट क्षेत्र में था. इसमें नियमित कर्मचारी या छात्र, शौचालय सुविधाएं, अग्नि सुरक्षा उपाय या यहां तक कि मूल अस्पताल भी नहीं था.
सीबीआई द्वारा जांच में कई कॉलेज बंद पाए गए और उनके स्थान पर स्कूल या बैंक जैसे अन्य संस्थान खुले पाए गए. रिपोर्ट में कहा गया है कि जो कॉलेज चलते पाए गए, उनमें बुनायदी ढांचे की कमी थी.
रिपोर्ट के अनुसार, 2,050 वर्ग फुट क्षेत्र में स्थित आईसीओएन कॉलेज ऑफ नर्सिंग में ‘छात्रों के लिए कोई परिवहन सुविधा नहीं’ थीं, 100-300 वर्ग फुट की पांच खस्ताहाल प्रयोगशालाएं थीं, जिनमें उपकरण तक पर्याप्त नहीं थे और ‘कोई क्लासरूम नहीं’ था.
रिपोर्ट कहती है, ‘तीन खराब कंप्यूटर पाए गए. शौचालय की सुविधा अपर्याप्त थी और कोई खेल का मैदान नहीं मिला. एक छोटा सा कमरा है, जिसमें प्रिंसिपल और वाइस-प्रिंसिपल दोनों बैठते हैं. छात्रों के चिकित्सीय अनुभव का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला.’
लेक सिटी कॉलेज ऑफ नर्सिंग की तो कोई इमारत ही नहीं मिली. ग्वालियर का जय मां भगवती नर्सिंग कॉलेज एक पुरानी इमारत में स्थित पाया गया, जिसमें कोई छात्र, शिक्षण स्टाफ, परिवहन सुविधा, कक्षाएं, प्रयोगशालाएं, स्टाफ रूम या शौचालय की सुविधा नहीं थी.
मध्य प्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों की जांच इन संस्थानों की स्थिति के संबंध में ग्वालियर में दो और जबलपुर में एक रिट याचिका दायर किए जाने के बाद हुई. तीनों याचिकाओं पर फिलहाल जबलपुर में सुनवाई चल रही है.
लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट विशाल बघेल ने जनवरी 2022 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर खंडपीठ के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में वर्ष 2020-2021 में शुरू किए गए 55 नर्सिंग कॉलेज आवश्यक बुनियादी ढांचे के बिना धोखाधड़ी से चलाए जा रहे हैं. इसके बाद अदालत ने राज्य के सभी नर्सिंग कॉलेजों में कथित अनियमितताओं की जांच के आदेश दिए थे.