महाराष्ट्र स्कूल शिक्षा विभाग ने एक गजट अधिसूचना में कहा है कि ऐसे निजी स्कूल जो सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूल के एक किलोमीटर के दायरे में आते हैं, वे वंचित समूह और कमज़ोर वर्ग के छात्रों को शिक्षा के अधिकार (आरटीई) कोटे के तहत एडमिशन देने के लिए बाध्य नहीं होंगे. कुछ लोगों ने नियमों में इस बदलाव के लिए राज्य सरकार पर सवाल उठाए हैं.
नई दिल्ली: महाराष्ट्र में सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूल के एक किलोमीटर के आसपास के निजी स्कूल समाज के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के छात्रों के लिए शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कोटा के तहत प्रवेश (Admission) प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं होंगे.
राज्य में आरटीई के कार्यान्वयन के लिए संशोधित नियमों के अनुसार यह तय किया गया है.
अब तक सभी गैर-सहायता प्राप्त और निजी स्कूलों के लिए आरटीई के तहत सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के बच्चों के लिए अपने एडमिशन स्तर (नर्सरी से कक्षा 1) की 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करना अनिवार्य था, जो 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा का नि:शुल्क और अनिवार्य अधिकार सुनिश्चित करता है. सरकार फीस की प्रतिपूर्ति प्रदान करती है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के स्कूल शिक्षा विभाग ने बीते 9 फरवरी को एक गजट अधिसूचना जारी की जिसमें कहा गया, ‘महाराष्ट्र नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार नियम, 2013 के तहत वंचित समूह और कमजोर वर्ग के 25 प्रतिशत एडमिशन के प्रयोजनों के लिए स्थानीय प्राधिकारी निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल की पहचान नहीं करेगा, जहां सरकारी स्कूल और सहायता प्राप्त स्कूल उस स्कूल के एक किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं.’
अधिसूचना में यह भी स्पष्ट किया गया है कि क्षेत्र में कोई सहायता प्राप्त स्कूल नहीं होने की स्थिति में आरटीई एडमिशन देने के लिए निजी स्कूलों की पहचान की जाएगी और वे फीस की प्रतिपूर्ति के लिए पात्र होंगे. अधिसूचना में कहा गया है कि नए नियम को ध्यान में रखते हुए आरटीई एडमिशन के लिए बाध्य स्कूलों की एक नई सूची अब तैयार की जाएगी.
स्कूल शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आरटीई एडमिशन के कारण फीस प्रतिपूर्ति का अतिरिक्त खर्च होता है. अधिकारी ने कहा, ‘नए नियम के साथ निजी स्कूलों में भेजने से पहले राज्य के अपने स्कूलों को आरटीई एडमिशन के लिए प्राथमिकता दी जाएगी.’
निजी स्कूल प्रबंधन ने आरटीई एडमिशन के लिए सरकार द्वारा भुगतान की जाने वाली लंबित प्रतिपूर्ति (Pending Reimbursements) की ओर इशारा करते हुए इस कदम का स्वागत किया है. वे पिछले कुछ समय से आरटीई एडमिशन का विरोध कर रहे हैं, खासकर लंबित प्रतिपूर्ति के कारण, जिसके बारे में उनका दावा है कि यह 2,000 करोड़ रुपये से अधिक है.
मुंबई में अनऐडेड स्कूल्स फोरम के सचिव एससी केडिया ने कहा, ‘अब यह हमारी मांग के बजाय उनकी अपनी मजबूरी है.’
केंद्रीय कानून में संशोधन करने की राज्य की शक्ति पर सवाल उठाते हुए अहमदनगर के एक शिक्षाविद् किशोर दरक ने कहा, ‘अधिसूचना अपने मौजूदा स्वरूप में आरटीई के विपरीत है और इसलिए कानूनी अधिकारियों द्वारा इसे रद्द किया जा सकता है. राज्य को ऐसे आदेश जारी करने से बचना चाहिए, जो आरटीई की भावना के विपरीत हों.’
विभिन्न चिंताओं को उठाते हुए इंडिया वाइड पेरेंट्स एसोसिएशन की अनुभा सहाय ने कहा, ‘सरकार सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता और बुनियादी ढांचे में सुधार की दिशा में काम किए बिना इन बच्चों को इनमें भेज रही है.’
राज्य की शक्ति को उचित ठहराते हुए स्कूल शिक्षा विभाग के उप-सचिव तुषार महाजन ने कहा, ‘आरटीई अधिनियम की धारा 38 राज्यों को अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए नियम तैयार करने की शक्ति प्रदान करती है. मूल कानून में कोई बदलाव नहीं किया गया है, लेकिन केवल महाराष्ट्र में आरटीई के कार्यान्वयन के लिए 2011 और 2013 में तैयार किए गए नियमों में बदलाव किया गया है.’
2018 में कर्नाटक सरकार ने भी ऐसा ही गजट अधिसूचना जारी की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
यह कहते हुए कि यह आरटीई अधिनियम का उल्लंघन नहीं है, शिक्षा क्षेत्र में विशेषज्ञता वाले ‘एजुलीगल’ के प्रबंध भागीदार रवि भारद्वाज ने कहा, ‘यह सीधे तौर पर आरटीई कानून का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि धारा 6 वैसे भी सिफारिश करती है कि सरकार को स्कूल स्थापित करना चाहिए, जिन क्षेत्रों में ये नहीं हैं. इसे ध्यान में रखते हुए धारा 12.1(सी) एक अस्थायी प्रावधान था, जब तक कि सरकार ने सभी जगहों पर स्कूल स्थापित नहीं कर दिए.’