लेखक-गीतकार गुलज़ार और संस्कृत विद्वान जगद्गुरु रामभद्राचार्य को मिला ज्ञानपीठ पुरस्कार

यह 1965 से भारतीय साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रतिवर्ष दिए जाने वाले ज्ञानपीठ पुरस्कार का 58वां संस्करण है. यह भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रदान किया जाता है, जिसकी स्थापना 1944 में हुई थी. यह पुरस्कार दूसरी बार संस्कृत के लिए और पांचवीं बार उर्दू के लिए दिया जा रहा है.

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गीतकार गुलज़ार और संस्कृत विद्वान जगद्गुरु रामभद्राचार्य. (फोटो साभार: फेसबुक)

यह 1965 से भारतीय साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रतिवर्ष दिए जाने वाले ज्ञानपीठ पुरस्कार का 58वां संस्करण है. यह भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रदान किया जाता है, जिसकी स्थापना 1944 में हुई थी. यह पुरस्कार दूसरी बार संस्कृत के लिए और पांचवीं बार उर्दू के लिए दिया जा रहा है.

गीतकार गुलज़ार और संस्कृत विद्वान जगद्गुरु रामभद्राचार्य. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: प्रसिद्ध लेखक, कवि, गीतकार और फिल्म निर्देशक गुलज़ार तथा संस्कृत विद्वान जगद्गुरु रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुना गया है.

गुलज़ार या संपूर्ण सिंह कालरा को अपनी पीढ़ी के बेहतरीन उर्दू कवियों में से एक माना जाता है और वह हिंदी सिनेमा के शीर्ष निर्देशक और लेखक हैं.

रामभद्राचार्य, एक प्रसिद्ध हिंदू आध्यात्मिक नेता, शिक्षक और चार महाकाव्यों सहित 240 से अधिक पुस्तकों और ग्रंथों के लेखक हैं. वह मध्य प्रदेश के चित्रकूट में तुलसी पीठ के संस्थापक और प्रमुख भी हैं.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, ज्ञानपीठ चयन समिति ने एक बयान में कहा, ‘यह पुरस्कार (2023 के लिए) दो भाषाओं के प्रतिष्ठित लेखकों संस्कृत साहित्यकार जगद्गुरु रामभद्राचार्य और प्रसिद्ध उर्दू साहित्यकार गुलज़ार को देने का निर्णय लिया गया है.’

यह 1965 से भारतीय साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रतिवर्ष दिए जाने वाले ज्ञानपीठ पुरस्कार का 58वां संस्करण है. यह भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रदान किया जाता है, जिसकी स्थापना 1944 में हुई थी.

ज्ञानपीठ को सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान माना जाता है.

पुरस्कार में 11 लाख रुपये का नकद पुरस्कार, वाग्देवी की एक प्रतिमा और एक प्रशस्ति-पत्र दिया जाता है. यह पुरस्कार दूसरी बार संस्कृत के लिए और पांचवीं बार उर्दू के लिए दिया जा रहा है.

1934 में जन्मे गुलज़ार को उनके काम के लिए 2002 में उर्दू के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, 2013 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार, 2004 में पद्मभूषण और कम से कम पांच राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुके हैं.

फिल्म ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ के लिए उनके गीत ‘जय हो’ को 2009 में ऑस्कर और 2010 में ग्रैमी पुरस्कार मिला. इसके अलावा उन्हें समीक्षकों द्वारा प्रशंसित फिल्मों जैसे माचिस (1996), ओमकारा (2006), दिल से (1998) और गुरु (2007) के गीतों के लिए जाना जाता है.

उन्होंने ‘कोशिश’, ‘परिचय’, ‘मौसम’, ‘इजाज़त’, ‘आंधी’ जैसी क्लासिक फिल्मों के साथ-साथ टेलीविजन धारावाहिक मिर्ज़ा ग़ालिब का भी निर्देशन किया है.

भारतीय ज्ञानपीठ के एक बयान में कहा गया है, ‘अपनी लंबी फिल्म यात्रा के साथ-साथ गुलज़ार साहित्य के क्षेत्र में नए मील के पत्थर स्थापित कर रहे हैं. कविता में उन्होंने एक नई शैली ‘त्रिवेणी’ का आविष्कार किया, जो तीन पंक्तियों की एक गैर-मुकफ़ा कविता है. गुलजार ने अपनी शायरी के जरिये हमेशा कुछ नया रचा है. पिछले कुछ समय से वह बच्चों की कविता पर भी गंभीरता से ध्यान दे रहे हैं.’

22 भाषाएं बोलने वाले बहुभाषाविद् रामभद्राचार्य, रामानंद संप्रदाय के वर्तमान चार जगद्गुरु रामानंदाचार्यों में से एक हैं और 1982 से इस पद पर हैं.

संस्कृत, हिंदी, अवधी और मैथिली सहित कई भारतीय भाषाओं के कवि और लेखक, उन्हें 2015 में पद्म विभूषण मिला. उनका जन्म 1950 में उत्तर प्रदेश के जौनपुर में हुआ था.

उनका नाम गिरिधर मिश्र रखा गया था. दो महीने की उम्र में ट्रेकोमा के कारण उनकी आंखों की रोशनी चली गई और शुरुआती वर्षों में उनके दादा ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया. उनकी वेबसाइट के अनुसार, पांच साल की उम्र में उन्होंने पूरी भगवत गीता और आठ साल की उम्र में पूरी रामचरितमानस याद कर ली थी.

पुरस्कार विजेताओं का चयन उड़िया लेखक प्रतिभा राय की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा किया गया था. समिति के अन्य सदस्यों में माधव कौशिक, दामोदर मौजो, सुरंजन दास, पुरुषोत्तम बिलमले, प्रफुल्ल शिलेदार, हरीश त्रिवेदी, प्रभा वर्मा, जानकी प्रसाद शर्मा, ए. कृष्णा राव और ज्ञानपीठ के निदेशक मधुसूदन आनंद शामिल थे.

2022 में यह प्रतिष्ठित पुरस्कार गोवा के लेखक दामोदर मौजो को मिला था.