यह आह्वान कुकी समुदाय के एक हेड कॉन्स्टेबल को चुराचांदपुर एसपी द्वारा निलंबित किए जाने के मद्देनज़र किया गया है. कॉन्स्टेबल को बहाल करने की मांग को लेकर बीते 15 फरवरी को भड़की हिंसा में दो लोगों की मौत हो गई है. मणिपुर सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के काम बंद को ‘अवैध’ बताते हुए क़ानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है.
नई दिल्ली: कुकी-ज़ो समुदाय के एक प्रभावशाली संगठन इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में राज्य सरकार के सभी कर्मचारियों से सोमवार (19 फरवरी) से अपने कार्यालयों में नहीं जाने का आग्रह किया है.
यह हड़ताल एक आंदोलन का हिस्सा है, जिसमें कुकी समुदाय से आने वाले हेड कॉन्स्टेबल के निलंबन को वापस लेने की मांग की गई है. जिले में बीते 15 फरवरी देर रात इसे लेकर हिंसा भड़क उठी थी. भीड़ ने देर रात पुलिस अधीक्षक (एसपी) और उपायुक्त (डीसी) कार्यालयों पर धावा बोल दिया था. इस दौरान सुरक्षा बलों की गोलीबारी में कम से कम दो लोगों की मौत और 2 दर्जन से अधिक घायल हो गए थे.
हेड कॉन्स्टेबल सियामलालपॉल का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह एक पहाड़ी के ऊपर ‘सशस्त्र लोगों’ और ‘ग्राम रक्षा स्वयंसेवकों’ के बंकर में सेल्फी लेते हुए नजर आ रहे थे.
इसके बाद चुराचांदपुर के एसपी शिवानंद सुर्वे ने उन्हें निलंबित कर दिया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, आईटीएलएफ ने चुराचांदपुर के एसपी और उपायुक्त (डीसी) को बदलने की भी मांग की है.
आईटीएलएफ के आह्वान पर प्रतिक्रिया करते हुए मणिपुर के गृह विभाग ने ‘नो वर्क, नो पे’ आदेश जारी करते हुए कहा कि इसे राज्य सरकार के उन सभी कर्मचारियों के खिलाफ लागू किया जाएगा, जो अधिकृत छुट्टी के बिना अपनी आधिकारिक ड्यूटी पर नहीं आते हैं.
15 फरवरी को हुई हिंसा के अगले दिन 16 फरवरी को आईटीएलएफ ने एसपी और डीसी को ‘24 घंटे के भीतर जिला छोड़ने’ की चेतावनी दी थी.
बीते रविवार (18 फरवरी) को 24 घंटे की अवधि समाप्त होने के बाद आईटीएलएफ ने सभी सरकारी कार्यालयों को सोमवार से ‘अगली सूचना तक’ बंद करने का आह्वान किया और चेतावनी दी कि अगर कोई भी सरकारी कर्मचारी कार्यालय में देखा गया और ‘अगर उनके साथ कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटित होता है तो वे खुद जवाबदेह होंगे’.
आईटीएलएफ ने कहा, ‘हेड कॉन्स्टेबल सियामलालपॉल के निलंबन आदेश को रद्द करने और एसपी शिवानंद सुर्वे और डीसी एस. धरुण कुमार को बदलने की आईटीएलएफ द्वारा दी गई चेतावनी को 24 घंटे बीत चुके हैं. अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.’
संगठन ने यह भी घोषणा की कि 15 फरवरी को मारे गए दो लोगों के शवों को सौहार्द्रपूर्ण समझौता होने तक दफनाया नहीं जाएगा.
मणिपुर सरकार काम बंद करने की धमकी पर कुकी-ज़ो समूह को चेतावनी दी
इस बीच मणिपुर की भाजपा नेतृत्व वाली सरकार ने इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) के चुराचांदपुर जिले में सभी राज्य सरकारी कार्यालयों को बंद करने के एक बयान को ‘अवैध’ बताया है और लोगों को ऐसा करने के लिए मजबूर करने पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने बीते रविवार को एक बयान में कहा कि कई आंतरिक रूप से विस्थापित लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं; उन्हें कपड़े और निजी सामान खरीदने के लिए वित्तीय सहायता जल्द ही वितरित की जाएगी और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की परीक्षाएं शुरू हो गई हैं, इसलिए राज्य बोर्ड की परीक्षाएं भी जल्द ही होंगी.
बयान में कहा गया है कि इस सब के बीच कोई भी सरकारी कर्मचारी जो काम पर नहीं आएगा, उसे ‘नो वर्क, नो पे’ नीति के तहत भुगतान नहीं किया जाएगा.
आईटीएलएफ को चेतावनी देते हुए सरकार ने कहा कि वह ‘इस मामले को अत्यंत संवेदनशीलता के साथ बहुत गंभीरता से लेती है, क्योंकि वह कार्य अवैध है और जारी किया गया नोटिस बिना किसी अधिकार के है.’
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, आईटीएलएफ ने आरोप लगाया है कि पिछले कुछ महीनों में सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें मणिपुर पुलिस के जवान सशस्त्र समूहों के साथ लड़ते और कुकी-ज़ो इलाकों पर हमला करते दिख रहे हैं, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
संगठन ने कहा कि हेड कॉन्स्टेबल को गलत तरीके से निलंबित किया गया है और उसे बहाल किया जाना चाहिए.
कुकी-जो जनजातियों के प्रभुत्व वाला चुराचांदपुर जिला मई 2023 में शुरू हुई जातीय झड़पों से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक रहा है.
मालूम हो कि 3 मई 2023 को मणिपुर में मेईतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद से अब तक लगभग 200 लोग जान गंवा चुके हैं, सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हुए हैं और 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.
3 मई 2023 को बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बीच दोनों समुदायों के बीच यह हिंसा भड़की थी.
मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.