मध्य प्रदेश विधानसभा में पेश की गई कैग रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में 1,500 से अधिक अपात्र लाभार्थियों को योजना के तहत धनराशि जारी कर दी गई और एसटी/एससी और अधिक वंचित लाभार्थियों को प्राथमिकता देने के बजाय अन्य लोगों को तरजीह दी गई थी. वाहन वाले परिवारों के लिए यह सुविधा नहीं है, लेकिन ऐसे लोगों को लाभ दिए गए, जिनके पास वाहन थे.
नई दिल्ली: भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री आवास योजना – ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) के कार्यान्वयन में अनियमितताओं को चिह्नित किया है.
राज्य सरकार पर 1,500 से अधिक अपात्र लाभार्थियों को 15 करोड़ रुपये की सहायता देने से लेकर 8,000 से अधिक लाभार्थियों को एससी और एसटी समुदायों के अधिक वंचित लाभार्थियों पर प्राथमिकता देने के आरोप हैं.
इस जन आवास कार्यक्रम को केंद्र सरकार द्वारा साल 2016 में गरीबी उन्मूलन के एक साधन के रूप में पेश किया गया था. इसका घोषित उद्देश्य 2022 तक ग्रामीण क्षेत्रों में कच्चे और जीर्ण-शीर्ण घरों में रहने वाले लोगों को बुनियादी सुविधाओं के साथ पक्के घर उपलब्ध कराना था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 8 फरवरी को मध्य प्रदेश विधानसभा में पेश की गई कैग रिपोर्ट 2016-21 के बीच योजना के कार्यान्वयन पर गौर करती है, जब 26,28,525 घरों को मंजूरी दी गई थी और लाभार्थियों को 24,723 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वीकृत घरों में से 82.35 प्रतिशत पूरे हो चुके हैं.
हालांकि इस योजना में यह अनिवार्य है कि वाहन या मछली पकड़ने वाली नाव वाले परिवारों को बाहर रखा जाए, लेकिन कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘10 ऑडिट किए गए जिलों में घर की मंजूरी से पहले 2,037 लाभार्थियों के पास दो/तीन/चार पहिया वाहन थे.’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हमने आगे देखा कि सीईओ, जनपद परिषद ने 2,037 अयोग्य लाभार्थियों में से 1,555 को 15.66 करोड़ रुपये की पीएमएवाई-जी सहायता जारी की.’
रिपोर्ट में कहा गया है कि 64 मामलों में एक ही लाभार्थी को दो बार मकान स्वीकृत किए गए. 98 मामलों में एक घर वास्तविक लाभार्थी को और दूसरा उसके परिवार के सदस्यों को स्वीकृत किया गया था, जिनकी योजना के लिए पहचान नहीं की गई थी.
इसके अनुसार, ‘लाभार्थियों के दोहराव की पहचान करने के लिए पोर्टल में अलर्ट करने की कोई व्यवस्था नहीं है. दो बार सहायता प्रदान करने या परिवार के अन्य सदस्यों को सहायता देने के बजाय डुप्लीकेट लाभार्थियों को हटा दिया जाना चाहिए था.’
दिशानिर्देशों के अनुसार, अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अल्पसंख्यक समुदायों को लाभार्थी सूची में प्राथमिकता दी जानी है, लेकिन 60 ग्राम पंचायतों का ऑडिट करने वाले कैग ने पाया कि ‘कुल 18,935 स्वीकृत मामलों में से 8,226 लाभार्थियों को अधिक वंचित लाभार्थियों की जगह प्राथमिकता सूची में तरजीह दी गई और उनसे पहले उन्हें आवास स्वीकृत किया गया.’
कैग की रिपोर्ट में लाभार्थियों को किश्तें देने में देरी की बात कही गई, जिसके कारण घर बनाने में देरी हुई. निर्माण के चरण के आधार पर राशि आमतौर पर लाभार्थी को चार किस्तों में भेजी जाती है.
इसमें कहा गया है, ‘53 फीसदी (13,18,233) लाभार्थियों को सहायता राशि की पहली किस्त एक दिन से लेकर चार साल की देरी से जारी की गई.’
इसमें कहा गया है कि 14 प्रतिशत (3,48,319) लाभार्थियों को धनराशि जारी ही नहीं की गई, जबकि केवल 33 प्रतिशत (8,38,324) लाभार्थियों को समय पर धनराशि प्रदान की गई.
कैग ने यह भी बताया कि ‘90 मामलों में नाबालिगों को पीएमएवाई-जी घर स्वीकृत किए गए थे और उनके रिश्तेदारों को लाभ प्रदान किया गया था, जिनके नाम सूची में नहीं थे.’
योजना का कार्यान्वयन और निगरानी आवास सॉफ्ट नामक वेब-आधारित ट्रांजेक्शनल इलेक्ट्रॉनिक सेवा वितरण प्लेटफॉर्म के माध्यम से की जाती है. कैग ने आवास सॉफ्ट डेटा की जांच की और कहा कि ‘1,246 मामलों में लाभार्थियों के नाम का उल्लेख नहीं किया गया था और 950 मामलों में लाभ जारी कर दिया गया था.’
रिपोर्ट के अनुसार, ‘यह संबंधित जनपद परिषद और जिला परिषद के सीईओ द्वारा निगरानी की कमी की ओर से इशारा करता है, जिन्होंने लाभार्थी का नाम उपलब्ध न होने के बावजूद लाभ को मंजूरी दे दी.’
इसके अलावा योजना की रूपरेखा यह निर्धारित करती है कि विधवा/अविवाहित/अलग हुए व्यक्ति के मामले को छोड़कर घर का आवंटन पति और पत्नी के नाम पर संयुक्त रूप से किया जाएगा.
कैग ने कहा, ‘संबंधित जिला परिषदों के सीईओ ने इस नियम का उल्लंघन किया और 25,24,951 घरों में से 12,66,815 (50.17 प्रतिशत) पुरुष लाभार्थियों को आवंटित कर दिए.’