हरियाणा के हिसार ज़िले में किसानों और पुलिस के बीच फिर से टकराव समेत अन्य ख़बरें

द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.

(फोटो: द वायर)

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नई दिल्ली: हरियाणा पुलिस ने शुक्रवार (23 फरवरी) को हिसार जिले के खेड़ी चोपता में आंदोलनकारी किसानों पर आंसू गैस के गोले छोड़े, जबकि सूत्रों ने संकेत दिया कि क्षेत्र में तनाव के बीच किसान नेता सुरेश कोथ सहित उनमें से लगभग एक दर्जन को हिरासत में लिया गया था. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब-हरियाणा सीमा पर विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों के समर्थन में किसान पिछले पांच दिनों से खेड़ी चोपता पर धरने पर बैठे थे. सूत्रों ने कहा कि बड़े आंदोलन के समर्थन में उनकी शुक्रवार को पंजाब की खनौरी सीमा की ओर बढ़ने की योजना थी. हालांकि, पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की, जिसके परिणामस्वरूप टकराव हुआ. पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े और पानी की बौछार की, जबकि आंदोलनकारियों ने उन पर पथराव किया. पथराव में कुछ किसानों को चोटें आई हैं. इससे पहले दिन में पंजाब-हरियाणा सीमा पर झड़प के दौरान मारे गए 22 वर्षीय किसान शुभकरण सिंह के परिवार ने पंजाब सरकार द्वारा दी गई 1 करोड़ रुपये की अनुग्रह राशि को ठुकरा दिया. इस बीच, किसान नेताओं ने कहा कि जब तक दोषियों को सजा नहीं मिल जाती, वे युवक के शव का पोस्टमॉर्टम नहीं होने देंगे. शुभकरण के परिवारवालों ने उनकी मौत के लिए हरियाणा पुलिस को जिम्मेदार ठहराया है. इधर, हरियाणा की अंबाला पुलिस ने बीते गुरुवार को कहा था कि वे ‘दिल्ली चलो’ विरोध मार्च का नेतृत्व कर रहे किसान नेताओं के खिलाफ कड़े राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका/एनएसए) के तहत कार्रवाई करेंगे. हालांकि शुक्रवार को पुलिस ने इस बयान को वापस ले लिया.

असम के राजस्व मंत्री जोगेन मोहन ने शुक्रवार को पेशेवर चराई रिजर्व (पीजीआर) और ग्राम चराई रिजर्व (वीजीआर) के रूप में नामित क्षेत्रों से लगभग 10,000 लोगों को बेदखल करने की आदिवासी परिषद की योजना का बचाव किया. द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (केएएसी) द्वारा ‘अवैध निवासियों’ के 2,086 परिवारों को बेदखल करने के कदम से अशांति फैल गई है, जिससे 11 लोग घायल हो गए और एक सप्ताह पहले 17 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी. इस समस्या की उत्पत्ति जनवरी में हिंदी भाषी नोनिया समुदाय के एक संगठन द्वारा सौंपे गए एक ज्ञापन से मानी जाती है, जिसमें पश्चिम कार्बी आंगलोंग जिले में पीजीआर और वीजीआर भूमि पर बसने वालों को वैध बनाने की मांग की गई थी. केएएसी संविधान की छठी अनुसूची के तहत आदिवासी-बहुल कार्बी आंगलोंग और पश्चिम कार्बी आंगलोंग दोनों जिलों का प्रशासन करता है. 1933 में पीजीआर की कल्पना के समय की मिसालों का हवाला देते हुए राजस्व मंत्री मोहन ने 126-सदस्यीय असम विधानसभा को बताया कि कथित अवैध निपटान के कारण परिषद को ‘कब्जे वाली’ भूमि को मुक्त करने का निर्णय लेना पड़ा. वह कांग्रेस विधायक और विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया द्वारा उठाई गईं चिंताओं का जवाब दे रहे थे. सैकिया ने कहा था, बेदखली नोटिस ने लगभग 10,000 लोगों को प्रभावित किया है, जिनमें से कई के पास 1940 से निवास साबित करने वाले प्रमाण-पत्र हैं और वे अद्यतन राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में शामिल हैं. जिस जमीन को वे दशकों से अपना घर मानते आए हैं, उसे खाली करने के लिए कहे जाने के बाद उन्हें अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ रहा है.’

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर शहर में स्थित इस्लामिक शिक्षा केंद्र दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट पर एक फतवा जारी करने को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने कानूनी कार्रवाई की मांग की है और राज्य सरकार को इसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश जारी किया है. द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, सहारनपुर जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) को संबोधित एक पत्र में एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने देवबंद की वेबसाइट पर प्रकाशित एक फतवे के संबंध में अपनी चिंताओं पर प्रकाश डाला है. यह फतवा ‘ग़ज़वा-ए-हिंद’ की अवधारणा पर चर्चा करता है और कथित तौर पर ‘भारत पर आक्रमण के संदर्भ में शहादत’ का महिमामंडन करता है. कानूनगो ने पत्र में किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 75 के कथित उल्लंघन पर जोर देते हुए कहा, ‘यह फतवा बच्चों में अपने ही देश के प्रति नफरत पैदा कर रहा है और अंतत: उन्हें अनावश्यक मानसिक या शारीरिक पीड़ा पहुंचा रहा है.’ इंडिया टुडे के अनुसार, एनसीपीसीआर के निर्देश के बाद सहारनपुर के जिला मजिस्ट्रेट ने एसएसपी को पत्र लिखा और देवबंद के उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) और मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) को तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिया है. इंडिया टुडे से बातचीत में दारुल उलूम देवबंद ने कानूनी कार्रवाई की निंदा की और एनसीपीसीआर की कार्रवाई के समय पर सवाल उठाया.

यह कहते हुए कि समीक्षा एक खाली औपचारिकता नहीं हो सकती, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर प्रशासन को इस केंद्रशासित प्रदेश में इंटरनेट सेवाओं की बहाली पर केंद्रीय गृह सचिव के अधीन विशेष समिति के समीक्षा आदेशों को प्रकाशित करने का निर्देश दिया. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबि​क, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने हालांकि कहा कि समिति के विचार-विमर्श को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा. जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हालांकि समीक्षा आदेश एक आंतरिक तंत्र है, लेकिन इसे प्रकाशित करने में कोई बाधा नहीं है. अदालत ने मई 2020 में केंद्र से जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट पर प्रतिबंध की आवश्यकता का आकलन करने के लिए एक विशेष समिति गठित करने को कहा था. याचिकाकर्ता फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स की ओर से पेश वकील शादान फरासत ने कहा कि जिन राज्यों में कभी न कभी इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाए गए थे, उन्होंने समीक्षा आदेश प्रकाशित किए हैं, लेकिन यह समझ से परे है कि केवल जम्मू और कश्मीर ऐसा क्यों नहीं कर रहा है. फरासत ने कहा कि ये आदेश कानून द्वारा अनिवार्य हैं और ऐसा करने में विफलता अनुराधा भसीन मामले में शीर्ष अदालत के आदेश के साथ-साथ दूरसंचार निलंबन नियमों की भावना के खिलाफ है.

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने हिंसा प्रभावित पश्चिम बंगाल के संदेशखाली गांव में जमीन कब्जा करने के आरोप में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेता शाहजहां शेख के खिलाफ एक नया मामला दर्ज किया है. केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) की कई टीमों ने उनसे जुड़े स्थानों पर तलाशी ली है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इससे एक दिन पहले संदेशखाली में फिर से तनाव फैल गया था, जब लोगों के एक समूह ने ताजा विरोध प्रदर्शन किया था और कथित तौर पर एक मत्स्य पालन के ‘अलाघर’ (गार्ड रूम) में आग लगा दी थी, जिसके बारे में उनका दावा था कि यह स्थानीय टीएमसी नेताओं द्वारा हड़पी गई जमीन पर बनाया गया था. घटना के बाद प्रशासन ने संदेशखाली की पांच ग्राम पंचायतों के तहत 9 क्षेत्रों में सीआरपीसी धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी. बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के सुंदरबन डेल्टा में एक छोटा सा द्वीप संदेशखाली बीते 5 जनवरी से भाजपा-टीएमसी राजनीति के केंद्र में है. यहां ईडी अधिकारियों पर तब हमला किया गया था, जब वे स्थानीय कद्दावर नेता शेख के घर की तलाशी लेने आए थे. ईडी की टीम राज्य की सार्वजनिक वितरण प्रणाली में कथित अनियमितताओं की जांच के सिलसिले में वहां गई थी.