मणिपुर के चुराचांदपुर ज़िले में राहत शिविरों में रहने वाले हज़ारों लोगों ने एक विरोध प्रदर्शन किया और आरोप लगाया कि 15 फरवरी की हुई ताज़ा हिंसा के बाद केंद्र सरकार द्वारा आपूर्ति किया गया राशन उन तक पहुंचना बंद हो गया है. राज्य सरकार ने कहा है कि हिंसा में प्रदर्शनकारियों ने दो ट्रक जला दिए थे, जिनमें राहत सामग्री थी.
नई दिल्ली: मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में 15 फरवरी को प्रदर्शनकारियों द्वारा जलाए गए 12 ट्रकों और बसों में से दो में आंतरिक रूप से जातीय हिंसा में विस्थापित लोगों के लिए राहत सामग्री थी, राशन की कमी को लेकर शिविरों में लोगों के विरोध प्रदर्शन के बीच राज्य सरकार ने एक बयान में यह जानकारी दी है.
कुकी समुदाय से आने वाले हेड कॉन्स्टेबल के निलंबन को वापस लेने की मांग को लेकर बीते 15 फरवरी देर रात हिंसा भड़क उठी थी. भीड़ ने देर रात पुलिस अधीक्षक (एसपी) और उपायुक्त (डीसी) कार्यालयों पर धावा बोल दिया था. इस दौरान सुरक्षा बलों की गोलीबारी में कम से कम दो लोगों की मौत और 2 दर्जन से अधिक घायल हो गए थे. मृतक कुकी-ज़ो जनजाति से थे.
एक पहाड़ी-आधारित सशस्त्र समूह के सदस्यों एक साथ एक वीडियो में नजर आने के बाद एसपी ने हेड कॉन्स्टेबल को निलंबित कर दिया था.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, चुराचांदपुर में राहत शिविरों में रहने वाले हजारों लोगों ने एक प्रतीकात्मक विरोध प्रदर्शन में मीडिया को खाली कटोरे दिखाते हुए आरोप लगाया है कि 15 फरवरी की घटना के बाद केंद्र द्वारा आपूर्ति किया गया राशन उन तक पहुंचना बंद हो गया है.
मणिपुर के संयुक्त सचिव (गृह) मायेंगबाम वीटो सिंह ने बयान में कहा, ‘चुराचांदपुर में असामाजिक और गैर-जिम्मेदार तत्वों द्वारा फैलाई गई अफवाहों के कारण 15 फरवरी को 800 से 1,000 लोगों की भीड़ ने डीसी और एसपी कार्यालयों में तोड़फोड़ की और आग लगा दी. कार्यालय परिसर में खड़े 12 ट्रकों और बसों में तोड़फोड़ की गई और दो को जला दिया गया, जिनमें चुराचांदपुर जिले में शिविरों के लिए राहत सामग्री रखी थी.’
राज्य सरकार ने बयान में कहा कि उपायुक्त ने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि सभी राहत सामग्री और खाद्य सामग्री जैसे चावल, दाल, सब्जियां और अन्य उपभोग्य वस्तुएं राहत शिविरों तक समय पर पहुंचे.
सरकार ने कहा, ‘12 और 13 फरवरी को 50,000 किलोग्राम चावल, 245 बैग दाल, 55 बैग चीनी और अन्य उपभोग्य वस्तुएं जैसे सब्जियां, खाना पकाने का तेल, अंडे, चाय और मसाले वितरित किए गए थे.’
स्थानीय दैनिक इंफाल फ्री प्रेस ने 23 फरवरी को रिपोर्ट दी है कि चुराचांदपुर में 115 राहत शिविरों में लगभग 18,000 लोग रह रहे हैं और केंद्र उन्हें मिजोरम के रास्ते राशन भेज रहा है.
कुछ राहत शिविरों में प्रदर्शनकारियों ने तख्तियां ले रखी थीं जिन पर लिखा था, ‘भोजन देने से इनकार करना हिंसा का सबसे खराब रूप है.’
सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया कि उसने राहत सामग्री जारी करने में देरी की थी और सहायता आपूर्ति में व्यवधान के लिए कुकी-ज़ो समूह इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) सहित चुराचांदपुर में प्रदर्शनकारियों की भूमिका की ओर इशारा किया.
सरकार ने शनिवार (24 फरवरी) को जारी बयान में कहा, ‘गृह मंत्रालय की सहायता से विस्थापित लोगों के लिए कई कल्याणकारी उपाय शुरू किए गए हैं और सरकार तब तक ऐसा करना जारी रखने का आश्वासन देती है, जब तक कि सभी विस्थापित लोगों का पर्याप्त पुनर्वास नहीं हो जाता.’
इसमें कहा गया है कि आईटीएलएफ द्वारा उपायुक्त और एसपी को चुराचांदपुर छोड़ने की धमकी से न केवल दोनों अधिकारियों, बल्कि राज्य में (हिंसा) विस्थापित लोगों के कल्याण के लिए अथक प्रयास करने वाली टीमों को भी ‘मानसिक पीड़ा’ हुई है.’
मणिपुर में भूमि, संसाधनों, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सकारात्मक कार्रवाई नीतियों पर असहमति को लेकर जातीय हिंसा नौ महीने से जारी है.
मालूम हो कि 3 मई 2023 को मणिपुर में मेईतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद से अब तक लगभग 200 लोग जान गंवा चुके हैं, सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हुए हैं और 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.
3 मई 2023 को बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बीच दोनों समुदायों के बीच यह हिंसा भड़की थी.
मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.