सरकार ने स्थानीय समुदायों को वंचित करने के लिए पतंजलि जैसी कंपनियों के लिए दरवाज़े खोले: कांग्रेस

कांग्रेस ने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने आयुष चिकित्सकों और संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान तक पहुंच रखने वाले लोगों के लिए एफईबीएस प्रावधान को हटा दिया है और स्थानीय समुदायों को उनके संसाधनों से होने वाले व्यावसायिक लाभों से वंचित करने के लिए पतंजलि जैसी कंपनियों के लिए द्वार खोल दिए हैं.

कांग्रेस नेता जयराम रमेश. (फोटो साभार: X/@INCIndia)

कांग्रेस ने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने आयुष चिकित्सकों और संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान तक पहुंच रखने वाले लोगों के लिए एफईबीएस प्रावधान को हटा दिया है और स्थानीय समुदायों को उनके संसाधनों से होने वाले व्यावसायिक लाभों से वंचित करने के लिए पतंजलि जैसी कंपनियों के लिए द्वार खोल दिए हैं.

कांग्रेस नेता जयराम रमेश. (फोटो साभार: X/@INCIndia)

नई दिल्ली: कांग्रेस ने मंगलवार को आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने आयुष चिकित्सकों और संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान तक पहुंच रखने वाले लोगों के लिए एफईबीएस प्रावधान को हटा दिया है. संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान की परिभाषा के अनुसार इसने पतंजलि जैसी कंपनियों के लिए स्थानीय समुदायों को उनके संसाधनों से प्राप्त व्यावसायिक लाभों से वंचित करने के द्वार खोल दिए हैं.

विपक्षी दल की तीखी प्रतिक्रिया तब आई जब सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को योग गुरु रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद को उसके उत्पादों के बारे में अदालत में दी गई शपथ के प्रथमदृष्टया उल्लंघन और उनकी दवाओं के प्रभाव का दावा करने वाले बयानों के लिए कड़ी फटकार लगाई.

जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस ए. अमानुल्लाह की पीठ ने पतंजलि आयुर्वेद और उसके प्रबंध निदेशक को नोटिस जारी कर पूछा कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस महासचिव संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा कि जैविक विविधता अधिनियम, 2002 एक ऐतिहासिक पथ-प्रदर्शक कानून था. संयुक्त राष्ट्र के जैव विविधता सम्मेलन के अनुसार, इसने भारत की लुप्तप्राय जैव विविधता की सुरक्षा सुनिश्चित की और जैविक संसाधनों का उपयोग करके उत्पाद बेचने वाले निगमों और स्थानीय समुदायों के बीच समान रूप से अनिवार्य निष्पक्ष और न्यायसंगत लाभ साझाकरण (एफईबीएस) सुनिश्चित किया, जिन्होंने पृथ्वी की जैव विविधता की रक्षा और रक्षा की है और उन्हें बनाए रखा है.

उन्होंने आरोप लगाया कि जैव विविधता संसाधनों का उपयोग करके उत्पाद बेचने वाली कंपनियों पर लगाया जाने वाला शुल्क आम तौर पर बिक्री का केवल 0.1-0.5% होता है. मोदी सरकार ने एक जाने-माने बिजनेसमैन और योग गुरु- जिन्होनें भाजपा का समर्थन किया है – के कहने पर ‘आयुष चिकित्सकों और संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान तक पहुंच रखने वाले लोगों के लिए एफईएसबी प्रावधान को हटा दिया है.’

रमेश ने दावा किया कि जानबूझकर संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान की परिभाषा को हटाकर भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र ने स्थानीय समुदायों को उनके संसाधनों से प्राप्त व्यावसायिक लाभों से वंचित करने के लिए पतंजलि जैसी कंपनियों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं.

उन्होंने कहा, ‘आज सुप्रीम कोर्ट ने भी मोदी सरकार की बेईमानी पर संज्ञान लिया है. यह देखा गया कि पतंजलि द्वारा किए गए घोर ‘भ्रामक और झूठे’ विज्ञापन के बावजूद मोदी सरकार अपनी आंखें बंद करके बैठी थी. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) कई वर्षों से इनके भ्रम फ़ैलाने वाले विज्ञापन का मुद्दा उठा रहा है. आईएमए ने खासतौर पर इस मुद्दे को उठाया कि यह अक्सर एलोपैथिक चिकित्सा और डॉक्टरों को निशाना बनाते हैं.’

कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया, ‘अपने राजनीतिक और वित्तीय लाभ के लिए मोदी सरकार किसी भी समुदाय को बेच देगी – चाहे वह एलोपैथिक डॉक्टर हों या आदिवासी समुदाय. मोदानी एक जाना-माना बिजनेस नाम है. इसे अब मोदांजलि से कुछ कंपटीशन मिलना शुरू हो गया है!’

रमेश ने पिछले साल 10 सितंबर को माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म एक्स पर की गई अपनी एक पोस्ट को भी दोबारा साझा किया है, जिसमें उन्होंने जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान पर्यावरण पर प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी पर बयान दिया था.

उस पोस्ट में रमेश ने कहा था, ‘जी-20 और वैश्विक स्तर पर अन्य शिखर सम्मेलनों में पीएम के बयान सरासर पाखंड हैं. भारत के जंगलों और जैव विविधता की सुरक्षा को नष्ट करते हुए और आदिवासियों और वनवासी समुदायों के अधिकारों को कमजोर करते हुए वह पर्यावरण, क्लाइमेट एक्शन और समानता की बात करते हैं.’

ज्ञात हो कि शीर्ष अदालत की पीठ ने पतंजलि आयुर्वेद और उसके कर्मचारियों आदि को मीडिया, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक, में किसी भी दवा प्रणाली के प्रतिकूल कोई भी बयान देने को लेकर आगाह किया है.

मंगलवार को जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि पतंजलि भ्रामक दावे करके देश को धोखा दे रही है कि उसकी दवाएं कुछ बीमारियों को ठीक कर देंगी, जबकि इसके लिए कोई अनुभवजन्य साक्ष्य नहीं है.

इसके साथ ही अदालत ने पतंजलि के संस्थापकों रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को उनके उत्पादों की बीमारियों को ठीक करने की क्षमता के बारे में झूठे और भ्रामक दावों का प्रचार जारी रखकर अदालत के पिछले आदेशों का उल्लंघन करने के लिए अवमानना ​​नोटिस भी जारी किया.