सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त होने के लगभग 19 महीने बाद जस्टिस एएम खानविलकर को भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. यह पद करीब दो साल पहले रिक्त हुआ था. सरकार ने लोकपाल में तीन न्यायिक सदस्यों सहित छह सदस्यों की नियुक्ति भी की है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त होने के लगभग 19 महीने बाद जस्टिस एएम खानविलकर को मंगलवार को भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. यह पद करीब दो साल पहले खाली हुआ था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी एक बयान में कहा गया, ‘राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को जस्टिस अजय माणिकराव खानविलकर को लोकपाल का अध्यक्ष नियुक्त करते हुए खुशी हो रही है.’
जस्टिस खानविलकर का सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश के रूप में छह साल का कार्यकाल था. अपने अंतिम वर्ष में उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले लिखे, जिन्होंने विशेष कानूनों में नागरिकों के खिलाफ राज्य की व्यापक शक्तियों को मान्य किया – मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम, गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम और विदेशी योगदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम. वे जुलाई 2022 में सेवानिवृत्त हुए.
सरकार ने लोकपाल में तीन न्यायिक सदस्यों सहित छह सदस्यों की नियुक्ति भी की है. हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश लिंगप्पा नारायण स्वामी, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजय यादव और कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और विधि आयोग के अध्यक्ष रितु राज अवस्थी न्यायिक सदस्य हैं.
गैर-न्यायिक सदस्यों में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा, गुजरात के पूर्व मुख्य सचिव पंकज कुमार और पूर्व ग्रामीण विकास सचिव अजय तिर्की शामिल हैं.
लोकपाल अध्यक्ष और सदस्यों को पांच साल की अवधि के लिए या 70 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, सेवा के लिए नियुक्त किया जाता है. पहले लोकपाल अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश पिनाकी चंद्र घोष थे, जिन्होंने मार्च 2019 में पदभार ग्रहण किया था. मई 2022 में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद से झारखंड हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश प्रदीप कुमार मोहंती कार्यवाहक लोकपाल अध्यक्ष रहे हैं.
जस्टिस खानविलकर की नियुक्ति सेवानिवृत्ति के बाद देश की सर्वोच्च अदालत के न्यायाधीशों के पास जाने वाले शीर्ष पदों की विवादास्पद परंपरा को जारी रखती है.
सुप्रीम कोर्ट से सीजेआई पद से सेवानिवृत्त होने के बमुश्किल चार महीने बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए नामित किया था. जुलाई 2021 में सेवानिवृत्त हुए जस्टिस अशोक भूषण को उस वर्ष के अंत में राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण का प्रमुख बनाया गया था – उन्होंने इस वर्ष की शुरुआत में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लिया था.
साल 2021 में मोदी सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के रूप में सुप्रीम कोर्ट के विवादास्पद पूर्व न्यायाधीश अरुण कुमार मिश्रा का नाम प्रस्तावित किया. 2023 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सेवानिवृत्त होने के चार महीने बाद सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया था.
जस्टिस खानविलकर ने नरेंद्र मोदी सरकार के फैसलों पर व्यापक प्रभाव डालने वाले प्रमुख फैसले लिखे हैं.
अनुच्छेद 377, आधार, सबरीमला
2018 में जस्टिस खानविलकर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा थे और इसमें जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा भी शामिल थे, जिन्होंने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया.
उसी वर्ष यानी 2018 में जस्टिस खानविलकर की एक पीठ ने आधार अधिनियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा. जस्टिस सीकरी द्वारा लिखित बहुमत की राय तत्कालीन सीजेआई मिश्रा और जस्टिस खानविलकर की ओर से थी. याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि यह अभ्यास नागरिकों की निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है, जिससे अदालत सहमत नहीं है. तब से आधार धोखाधड़ी अक्सर ख़बरों में रही है. सरकार ने दिशानिर्देश जारी किए हैं, हालांकि उनका बहुत कम प्रभाव पड़ता दिख रहा है.
जस्टिस खानविलकर सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच का भी हिस्सा थे, जिसने 2018 में केरल के सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देते हुए कहा था कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना लैंगिक भेदभाव है और यह प्रथा हिंदू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है.
गुजरात दंगे
जस्टिस खानविलकर 2022 में उस पीठ का हिस्सा थे जिसने 2002 के गुजरात दंगे मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 64 लोगों को विशेष जांच दल (एसआईटी) की क्लीन चिट को चुनौती देने वाली मारे गए सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की याचिका खारिज कर दी थी.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर गुजरात पुलिस ने अगले दिन दंगों से जुड़े सबूत गढ़ने के आरोप में कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड और पूर्व आईपीएस अधिकारी आरबी श्रीकुमार को गिरफ्तार कर लिया था.
एफसीआरए, पीएमएलए, यूएपीए
साल 2022 में तीन न्यायाधीशों की पीठ का नेतृत्व करते हुए जस्टिस खानविलकर ने विदेशी योगदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2020 को बरकरार रखा. यह अधिनियम गैर सरकारी संगठनों की विदेशी दानदाताओं तक पहुंच को विनियमित करने के लिए पेश किया गया था. मोदी सरकार पर अक्सर इसके आलोचक संगठनों से एफसीआरए लाइसेंस छीनने के आरोप लगते रहे हैं.
उसी वर्ष अपनी सेवानिवृत्ति से दो दिन पहले जस्टिस खानविलकर ने एक फैसला सुनाया, जो मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) – जिसे अक्सर विपक्ष नेता और कार्यकर्ताओं को कथित रूप से डराने-धमकाने के मामले में नरेंद्र मोदी सरकार की पसंदीदा केंद्रीय एजेंसी माना जाता है, को भारी शक्तियां देता है.
अदालत ने कहा कि गिरफ्तारी की शक्ति से संबंधित धारा 19 ‘मनमानेपन’ से ग्रस्त नहीं है और मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल लोगों की संपत्ति की कुर्की से संबंधित अधिनियम की धारा 5 संवैधानिक रूप से वैध है. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि प्रत्येक मामले में संबंधित व्यक्ति को प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) देना अनिवार्य नहीं है. ईसीआईआर ईडी की पुलिस एफआईआर के समकक्ष होती है.
अंत में कानूनी जानकार गौतम भाटिया ने के मुताबिक, जस्टिस खानविलकर की विरासत की कोई भी चर्चा राष्ट्रीय जांच एजेंसी बनाम जहूर अहमद शाह वटाली केस में 2019 के फैसले के बिना नहीं हो सकती है.
मामले में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम की धारा 43 (डी) (5) की व्याख्या शामिल है, जो ऐसी स्थिति में जमानत देने पर रोक लगाती है यदि ऐसा लगता है कि आरोपी के खिलाफ पुलिस का वर्ज़न (केस डायरी या आरोप पत्र के माध्यम से) सही है. वटाली मामले में जस्टिस खानविलकर ने सभी अदालतों को सबूतों की ‘जांच’ करने से रोक दिया, जिससे उन्होंने प्रभावी रूप से यूएपीए मामलों में जमानत देना असंभव बना दिया.
लोकपाल में तीन न्यायिक और तीन गैर-न्यायिक सदस्य
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस रितु राज अवस्थी को नवंबर 2022 में 22वें विधि आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. पैनल का कार्यकाल अगस्त 2024 में समाप्त होगा. उनके कार्यकाल के दौरान पैनल ने राजद्रोह को एक आपराधिक अपराध के रूप में बनाए रखने के समर्थन में एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट प्रस्तुत की थी.
जस्टिस अवस्थी के नेतृत्व वाले पैनल ने एक-राष्ट्र, एक-चुनाव के विचार के पक्ष में एक रिपोर्ट को भी अंतिम रूप दिया है.
1980 बैच के सेवानिवृत्त आईआरएस (आयकर) अधिकारी सुशील चंद्रा ने फरवरी 2019 में चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से पहले केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के अध्यक्ष और बाद में अप्रैल 2021 से मई 2022 तक सीईसी के रूप में कार्य किया.
चंद्रा तत्कालीन सीईसी सुनील अरोड़ा के साथ उस पैनल का हिस्सा थे, जिसने तत्कालीन ईसी अशोक लवासा की आपत्तियों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2019 के लोकसभा चुनावों में आदर्श आचार संहिता उल्लंघन मामलों में क्लीन चिट दी थी.
जस्टिस स्वामी मूल रूप से कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे. पांच महीने की संक्षिप्त अवधि के लिए उन्होंने 2019 में कर्नाटक हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश का पद संभाला.
जस्टिस यादव, जिनका मूल हाईकोर्ट मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय है, का जून 2021 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सिर्फ 13 दिनों का कार्यकाल था. सीजे के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश को कानून के रूप में पारित किया गया था, तो जस्टिस यादव ने याचिकाकर्ताओं को अपनी याचिका में संशोधन करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था.
1987 बैच के मध्य प्रदेश कैडर के आईएएस (सेवानिवृत्त) अधिकारी तिर्की 31 दिसंबर, 2023 को ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विभाग के सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुए. उन्होंने महिला एवं बाल विकास और रक्षा सहित विभिन्न मंत्रालयों में काम किया है.
1986 बैच के आईएएस अधिकारी पंकज कुमार अगस्त 2021 से जनवरी 2023 तक गुजरात के मुख्य सचिव थे. आईआईटी-कानपुर के एक सिविल इंजीनियर, कुमार कोविड-19 महामारी के दौरान शीर्ष पर थे और उन्हें मई 2022 में विस्तार दिया गया था. जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे तब कुमार ने 2004-2008 तक मुख्यमंत्री कार्यालय में अतिरिक्त प्रधान सचिव के रूप में कार्य किया था.