गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में रेप, छेड़छाड़ का मामला सामने आया, हाईकोर्ट ने कहा- भयावह है

गुजरात हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पोस्ट के बाद उन मीडिया रिपोर्ट्स पर स्वत: संज्ञान लिया था जिनमें परिसर में एक छात्रा से बलात्कार और एक समलैंगिक छात्र के यौन उत्पीड़न के बारे में बताया गया था. हाईकोर्ट ने घटनाओं के लिए संस्थान को दोषी ठहराते हुए कहा कि यूनिवर्सिटी प्रशासन छात्रों की आवाज़ दबाने में शामिल था.

गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी. (फोटो साभार: फेसबुक)

गुजरात हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पोस्ट के बाद उन मीडिया रिपोर्ट्स पर स्वत: संज्ञान लिया था जिनमें परिसर में एक छात्रा से बलात्कार और एक समलैंगिक छात्र के यौन उत्पीड़न के बारे में बताया गया था. हाईकोर्ट ने घटनाओं के लिए संस्थान को दोषी ठहराते हुए कहा कि यूनिवर्सिटी प्रशासन छात्रों की आवाज़ दबाने में शामिल था.

गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: एक फैक्ट-फाइडिंग कमेटी द्वारा अपनी रिपोर्ट में गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (जीएनएलयू) के परिसर में छेड़छाड़, बलात्कार, होमोफोबिया और भेदभाव की घटनाएं रिपोर्ट की गई हैं. कमेटी में पिछले सप्ताह गुजरात हाईकोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, बुधवार को इस रिपोर्ट को ‘डरावना’ बताते हुए मुख्य न्यायाधीश (सीजे) सुनीता अग्रवाल और जस्टिस अनिरुद्ध माई की पीठ ने घटनाओं के लिए जीएनएलयू को दोषी ठहराया और कहा कि यूनिवर्सिटी प्रशासन छात्रों की आवाज दबाने में शामिल था.

हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पोस्ट के बाद मीडिया रिपोर्ट्स पर स्वत: संज्ञान लिया था कि जीएनएलयू में एक लड़की के साथ बलात्कार किया गया था और एक समलैंगिक छात्र का यौन उत्पीड़न किया गया था. उसके बाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश हर्षा देवानी की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था.

इससे पहले यूनिवर्सिटी की आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) और रजिस्ट्रार ने आरोपों को खारिज कर दिया था.

सीजे ने कहा, ‘यह यूनिवर्सिटी एक राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय कैसे है? और रजिस्ट्रार हलफनामा दाखिल कर कह रहे हैं कि ‘कुछ नहीं हुआ, कार्यवाही बंद करो’. जब मामले ने तूल पकड़ा तो उन्होंने अदालत में यह कहने का दुस्साहस किया. ये लोग बच्चों की सुरक्षा कैसे करेंगे?’

पीठ ने कहा कि रिपोर्ट से पता चलता है कि यौन उत्पीड़न या बलात्कार की केवल दो घटनाएं नहीं थीं, जैसा कि सोशल मीडिया पोस्ट में बताया गया था, बल्कि छेड़छाड़, बलात्कार, भेदभाव, समलैंगिकता, पक्षपात, आवाज़ का दमन, आईसीसी के अस्तित्व की कमी, आईसीसी के बारे में छात्रों को जानकारी की कमी की घटनाएं हैं.

रिपोर्ट के आलोक में यह देखते हुए कि रजिस्ट्रार, निदेशक के साथ-साथ फैकल्टी के पुरुष सदस्यों के खिलाफ भी आरोप हैं, हाईकोर्ट ने एक सक्षम प्राधिकारी द्वारा जीएनएलयू के मामलों की उच्च-स्तरीय जांच कराने का निर्णय लिया, जो दोषी प्रशासकों और फैकल्टी के खिलाफ भी कार्रवाई कर सकता है.

रिपोर्ट से पता चला कि फैकल्टी सदस्यों और जीएनएलयू प्रशासन ने छात्रों की शिकायतों पर जांच में बाधा डाली थी.

न्यायाधीशों ने सोशल मीडिया पर व्यक्त छात्रों की शिकायतों को अपराध मानने के लिए जीएनएलयू की आलोचना भी की.

हाईकोर्ट ने कहा, ‘उन्होंने एक प्रतिकूल दृष्टिकोण अपनाया. यह इस रिपोर्ट का सबसे डरावना हिस्सा था. माता-पिता के बाद छात्रावास या आवासीय कॉलेजों में शिक्षक माता-पिता की भूमिका निभाते हैं… वे बच्चे हैं. मुझे कानून के छात्रों की सबसे अधिक चिंता है. वे कानून के रक्षक हैं. ये सारे व्याख्यान, वार्ताएं, सेमिनार सब बकवास हो जाते हैं. इसका कोई मतलब नहीं है. अगर लॉ कॉलेज में यह स्थिति है, तो हम किसी को अपना चेहरा नहीं दिखा सकते. इस व्यवस्था की स्थिति के लिए हम सभी जिम्मेदार हैं.’

यूनिवर्सिटी की आलोचना करते हुए अदालत ने आगे कहा, ‘हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि छात्र कुछ गलत बोलेंगे और वे ऐसा क्यों करेंगे? वे एक संस्थान में पढ़ रहे हैं और किसी भी फैकल्टी सदस्य के प्रति उनकी कोई व्यक्तिगत शिकायत नहीं है… उनके लिए बोलना बहुत कठिन था. और फिर ये तो क़ानून के छात्र हैं. अगर कानून के छात्रों की आवाज दबा दी जाएगी तो देश में कौन बोलेगा? उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे दूसरों की रक्षा करें और उनकी मदद करें जिनकी आवाज समाज में सुनी जाए… वे कानून के भविष्य के संरक्षक हैं.’

छात्रों की आवाज दबाने की शिकायत पर हाईकोर्ट ने कहा, ‘स्पष्ट बयान यह है कि एक पीड़ित ने कहा कि एक राजनीतिक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति पुलिस के सामने मामले को दबाने में शामिल है. तीसरे (सोशल मीडिया) पोस्ट को यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार और गर्ल्स हॉस्टल के वार्डन के हस्तक्षेप के कारण जबरदस्ती हटा दिया गया था.’

अदालत ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि पहले की शिकायत समितियों के सदस्यों ने ऐसा व्यवहार किया जिससे छात्रों को मामलों की रिपोर्ट करने के लिए आगे आने से रोका गया.

न्यायाधीशों ने आगे कहा कि रिपोर्ट में छात्रों की आवाज़ को दबाने के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों का नाम दिया गया है और फैकल्टी के कुछ पुरुष सदस्यों के खिलाफ आरोप लगाए गए हैं.

रिपोर्ट, जिसे हाईकोर्ट ने कम से कम अगले आदेश तक सीलबंद कवर में रखा है, में यह भी उल्लेख किया गया है कि कैसे आईसीसी सदस्यों ने प्रशासन को जवाबदेह बनाने के बारे में दावा किया था, लेकिन उन्होंने ‘रत्ती भर भी समर्थन नहीं दिया’.

इस मामले की जांच किस अधिकारी को करनी चाहिए, यह तय करने के लिए हाईकोर्ट ने 12 मार्च को आगे की सुनवाई तय की है.