बिहार शिक्षा विभाग ने 28 फरवरी को एक समीक्षा बैठक बुलाई थी, जिसमें केवल दो विश्वविद्यालयों ने अपने प्रतिनिधि भेजे और 13 राज्य विश्वविद्यालयों के किसी भी कुलपति ने भाग नहीं लिया. इसके बाद विभाग ने विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के वेतन रोकने के आदेश जारी कर दिए.
नई दिल्ली: राजभवन और बिहार शिक्षा विभाग के बीच संबंधों में तनाव गुरुवार को उस समय चरम पर पहुंच गया जब विभाग द्वारा बुधवार (28 फरवरी) को बुलाई गई समीक्षा बैठक में 13 राज्य विश्वविद्यालयों के किसी भी वीसी के उपस्थित नहीं होने के बाद विभाग ने विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के वेतन रोकने के आदेश जारी कर दिए.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, विलंबित शैक्षणिक सत्र पर बैठक में भाग लेने के लिए केवल दो विश्वविद्यालयों ने अपने प्रतिनिधि भेजे थे.
बिहार के शिक्षा सचिव वैद्यनाथ यादव ने कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय को छोड़कर सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, रजिस्ट्रारों और परीक्षा नियंत्रकों को संबोधित एक पत्र में उनसे यह बताने के लिए कहा कि उन्होंने विलंबित सत्र पर समीक्षा बैठक में क्यों भाग नहीं लिया. इसके बाद उन्होंने लिखा कि अगले आदेश तक उनका वेतन रोका जाएगा.
शिक्षा सचिव ने लिखा, ‘यदि आप (शैक्षणिक सत्रों को नियमित करने की) ऐसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को पूरा करने में असमर्थ हैं, तो विश्वविद्यालयों का बजट क्यों नहीं रोका जाना चाहिए. इसके अलावा बिहार परीक्षा संचालन अधिनियम, 1981 के प्रावधानों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कोई भी अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकता है और उसे अधिनियम के तहत दंडित किया जा सकता है. समय पर परीक्षा आयोजित करने से इनकार करना भी आईपीसी की धारा 166 और 166ए के प्रावधानों के तहत दंडनीय है.’
शिक्षा सचिव ने कुलपतियों और अन्य अधिकारियों से यह भी जानना चाहा कि 28 फरवरी को समीक्षा बैठक में शामिल न होने, रिपोर्ट जमा नहीं करने और शिक्षा विभाग को जानकारी नहीं देने के लिए आईपीसी के अन्य प्रावधानों के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए.