नई दिल्ली: कश्मीरी पत्रकार आसिफ सुल्तान को श्रीनगर जिला पुलिस द्वारा दायर गैरकानूनी गतिविधियों के एक पुराने मामले के सिलसिले में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया है, जिसमें उन्हें एक आरोपी के रूप में नामजद किया गया था. यह जानकारी उनके परिवार और वकील ने दी है.
रिपोर्ट के अनुसार, पुरस्कार विजेता पत्रकार को उत्तर प्रदेश की अंबेडकर नगर जेल से श्रीनगर के बटमालू इलाके में उनके घर लाए जाने के कुछ घंटों बाद गिरफ्तार कर लिया गया. यूपी की जेल में वे 2022 से सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत निवारक हिरासत में थे.
सूत्रों ने बताया कि सुल्तान को शुरुआत में रैनाबाड़ी पुलिस थाने द्वारा गुरुवार (29 फरवरी) को बुलाया गया था, और बाद में गिरफ्तार कर लिया गया. पारिवारिक सूत्रों ने कहा, ‘इस खबर ने उनके परिवार को झकझोर कर रख दिया है, जो उम्मीद कर रहे थे कि उनका पांच साल से अधिक का संघर्ष आखिरकार खत्म हो गया,’
सुल्तान का अपने परिवार के साथ यह कुछ समय का मिलना ‘प्रक्रियात्मक देरी’ के कारण दो महीने से अधिक समय तक खिंच गया. परिवार में उनकी छह साल की बेटी (जो पिता की गिरफ्तारी के समय नवजात थी), उनके बीमार माता-पिता और पत्नी हैं.
खबरों के मुताबिक, कुछ कश्मीरी बंदियों को – जिन्हें अदालतों द्वारा रिहा कर दिया गया है – कथित तौर पर जेलों से बाहर निकलने से पहले जम्मू कश्मीर प्रशासन से मंजूरी लेनी पड़ती है.
द टेलीग्राफ ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम में संशोधन के बाद यह अनिवार्य हो गया है.
सुल्तान को शुक्रवार (1 मार्च) को श्रीनगर की एक अदालत में पेश किया गया और बाद में पांच दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया. उनके वकील आदिल अब्दुल्ला पंडित ने द वायर को बताया, ‘मामले की सुनवाई 6 मार्च को फिर से होगी.’
पंडित ने कहा कि आसिफ को श्रीनगर पुलिस ने एफआईआर संख्या 19/2019 में गिरफ्तार किया था, जो रैनावाड़ी पुलिस थाने द्वारा आईपीसी की धारा 147 और 148 (दंगा और दंगे के लिए दंड), 149 (गैरकानूनी सभा के किसी भी सदस्य द्वारा किया गया अपराध), 336 (मानव जीवन को खतरे में डालना) और 307 (हत्या का प्रयास) के अलावा गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधि की वकालत करना या उसके लिए उकसाना) के तहत दर्ज की गई थी.
उन्होंने कहा कि मामला 2019 में श्रीनगर की सेंट्रल जेल में दंगे की घटना से संबंधित है जिसमें कैदियों ने जेल कर्मचारियों के साथ कुछ बहस के बाद कथित तौर पर बैरक में तोड़फोड़ की थी जो बाद में हिंसक हो गई थी. कैदियों ने आरोप लगाया था कि कुरान पाक़ के अपमान के कारण मामला भड़का था, हालांकि जेल प्रशासन ने इस आरोप से इनकार किया था.
पंडित ने कहा, ‘उस समय आसिफ़ को उसी जेल में एफआईआर संख्या 73/2018 के तहत बंद कर दिया गया था, जिसमें उसे पहले ही अदालत से जमानत मिल चुकी थी.’
श्रीनगर के बटमालू पुलिस थाने में एफआईआर नंबर 73/2018, जिसमें सुल्तान पर 2018 में अपने आवास पर आतंकवादियों को पनाह देने का आरोप लगाया गया था, से उनके संघर्ष की शुरुआत हुई थी. पुलिस ने उन पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की धाराओं और रणबीर दंड संहिता (अब भारतीय दंड संहिता) की कुछ धाराओं के तहत मामला दर्ज किया और बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
अपनी गिरफ्तारी के समय वह (अब बंद हो चुकी) मासिक अंग्रेजी पत्रिका ‘कश्मीर नैरेटर’ के साथ काम कर रहे थे.
लगभग तीन साल बाद श्रीनगर की एक अदालत ने 5 अप्रैल 2022 को मामले में उन्हें जमानत दी थी और उनकी रिहाई का आदेश देते समय सुल्तान को किसी आतंकवादी समूह से जोड़ने वाले सबूत उपलब्ध कराने में जांचकर्ताओं की विफलता का हवाला दिया.
इससे पहले कि वह जेल से बाहर आ पाते, अधिकारियों ने उन पर ‘ज्ञात उग्रवादियों को मदद पहुंचाने’, ‘आपराधिक साजिश’ और ‘आतंकवादी गतिविधियों में सहायता करने और भाग लेने’ का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ विवादास्पद सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम लागू कर दिया.
उन्हें पीएसए के तहत निवारक हिरासत में लिया गया और बाद में उत्तर प्रदेश ट्रांसफर कर दिया गया.
पीएसए डोजियर में अजीब तरीके से सुल्तान, जिन्हें 2019 में जॉन औबुचोन प्रेस फ्रीडम अवार्ड से सम्मानित किया गया था, पर ‘हिजबुल मुजाहिदीन का ओवरग्राउंड वर्कर’ होने का आरोप लगाया गया था, जो जेल में रहते हुए अल-कायदा से संबद्ध अंसार गजवत-उल-हिंद में शामिल हो गए.
डोजियर में यह भी दावा किया गया कि सुल्तान ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ के एक ओवर-ग्राउंड वर्कर थे, जो एक आतंकवादी समूह है, जो 2018 में सुल्तान की गिरफ्तारी के कुछ महीनों बाद बना था. माना जाता है कि यह पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैयबा आतंकी संगठन की एक शाखा है.
हालांकि, विवादास्पद अधिनियम के तहत सुल्तान की हिरासत को पिछले साल दिसंबर में जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था, जिसने उनके खिलाफ आरोपों को ‘आधारहीन’ बताया था और अधिकारियों से उनकी ‘अवैध’ हिरासत को समाप्त करने का आग्रह किया था.
अदालत ने कहा था कि हिरासत में लेने वाले अधिकारियों ने सुल्तान को एफआईआर की प्रतियां, गवाहों के बयान या मामले की अन्य जांच सामग्री उपलब्ध नहीं कराई, जो पीएसए के तहत उनकी निवारक हिरासत का आधार बनी थीं.