पूर्वी उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद, आम्बेडकर नगर, बस्ती, गोंडा, बलरामपुर, बहराइच और सुल्तानपुर ज़िले के ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों की 33 नगर पालिका सीटों में से भाजपा को महज़ छह सीटों पर सफलता मिली.
फैज़ाबाद: उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में अब तक तो ईवीएम से हुई छेड़छाड़ को लेकर विपक्ष द्वारा कोई आरोप नहीं लगाये गये हैं, लेकिन विपक्ष को इसकी विश्वसनीयता पर शक करने की एक वजह मिल गयी है.
अयोध्या नगर निगम, जहां ईवीएम से मतदान हुआ था, वहां भाजपा ने जीत दर्ज की है लेकिन आस-पास के ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में बैलेट पेपर से हुए मतदान में इसे खासे नुकसान का सामना करना पड़ा है.
द वायर ने अयोध्या से लगे सात जिलों के शुक्रवार को घोषित हुए निकाय चुनाव परिणामों का विश्लेषण किया, जहां अधिकतर भाजपा प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा.
पूर्वी उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद, आम्बेडकर नगर, बस्ती, गोंडा, बलरामपुर, बहराइच और सुल्तानपुर जिले के ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों की 33 नगर पालिका सीटों में से भाजपा को महज 6 सीटों पर सफलता मिली.
समाजवादी पार्टी को 12, बसपा को 5 और कांग्रेस को 3 सीटें मिली, वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में भी 7 सीटें गयीं.
यहां दिलचस्प बात यह है कि आम्बेडकर नगर की सभी 5 नगर पालिका अध्यक्ष सीटों पर महिला उम्मीदवार- नसीम रेहाना, शौकत जहां, शबाना खातून, फरजाना खातून और सरिता गुप्ता ने जीत दर्ज की.
फैज़ाबाद, बहराइच और बलरामपुर जिलों में भाजपा का खाता भी नहीं खुल सका. हालांकि बस्ती और आम्बेडकर नगर में भाजपा को एक-एक, सुल्तानपुर और गोंडा में दो-दो सीटें मिलीं.
राज्य में भाजपा सरकार की प्रसिद्धि के चलते अयोध्या में भाजपा प्रत्याशी मेयर के पद तो पहुंच गये लेकिन फैज़ाबाद में भाजपा विधायकों के होने से, ग्रामीण और अर्ध शहरी इलाकों में पार्टी के उम्मीदवारों को कोई मदद नहीं हुई.
फैज़ाबाद की रुदौली नगर पालिका से जब्बार अली, बीकापुर नगर पालिका से जुग्गी लाल यादव, भदरसा नगर पालिका से रेहाना बेगम और गोसाईगंज नगर पालिका से रमेश चंद्र जीते हैं, गौर करने वाली बात है कि ये सभी समाजवादी पार्टी से हैं.
बलरामपुर और बहराइच जिलों की 8 सीटों पर विजयी उम्मीदवार मुस्लिम हैं, जिनमें 5 महिलाएं हैं.
इन सात जिलों की 33 सीटों पर 16 महिला प्रत्याशी जीत दर्ज करके नगर पालिका अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंची हैं.
इस बात में कोई शक नहीं है कि ये परिणाम स्थानीय राजनीतिक समीकरणों को दिखाते हैं, लेकिन भाजपा के ख़िलाफ़ पेपर बैलेट वोटिंग के मुद्दे से ईवीएम पर हुई बहस फिर से शुरू हो सकती है.
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और फैज़ाबाद में रहते हैं.
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