मणिपुर: स्थानों का नाम बदलने पर प्रतिबंध, तीन साल तक की जेल की सज़ा का प्रावधान

राज्य में मेईतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच चल रहे जातीय संघर्ष की पृष्ठभूमि में मणिपुर स्थानों का नाम विधेयक, 2024 को विधानसभा द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया, जिसके तहत स्थानों का नाम बदलने पर तीन साल तक की जेल की सज़ा और तीन लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह. (फोटो साभार: फेसबुक)

राज्य में मेईतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच चल रहे जातीय संघर्ष की पृष्ठभूमि में मणिपुर स्थानों का नाम विधेयक, 2024 को विधानसभा द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया, जिसके तहत स्थानों का नाम बदलने पर तीन साल तक की जेल की सज़ा और तीन लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: मणिपुर विधानसभा ने सोमवार को एक कानून पारित किया, जिसके तहत स्थानों का नाम बदलने पर तीन साल तक की जेल की सजा और तीन लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, मेईतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच चल रहे जातीय संघर्ष- जिसमें हिंसा के दौरान एक समुदाय के सदस्यों द्वारा दूसरे समुदाय के अधिक आबादी वाले स्थानों के आधिकारिक नाम बदलने की कोशिश की गई थी, की पृष्ठभूमि में मणिपुर स्थानों का नाम विधेयक, 2024 को सोमवार को विधानसभा द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया.

मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने एक्स पर पोस्ट किया, ‘मणिपुर राज्य सरकार हमारे इतिहास, सांस्कृतिक विरासत और पूर्वजों द्वारा दी गई विरासत की रक्षा के लिए गंभीर है.’

उन्होंने कहा, ‘हम सहमति के बिना स्थानों के नाम बदलने को बर्दाश्त नहीं करेंगे और अपराध के दोषियों को सख्त कानूनी सजा दी जाएगी.’

विधेयक के अनुसार, सरकार की मंजूरी के बिना गांवों/स्थानों का नाम बदलने के दोषी पाए जाने पर अधिकतम तीन साल की जेल की सजा और 3 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है.

विधेयक में कहा गया है कि कुछ व्यक्तियों, लोगों के समूहों या संगठनों द्वारा संभावित दुर्भावनापूर्ण इरादे से स्थानों के लिए अनधिकृत नामों के उपयोग के मामले सामने आए हैं, जिससे प्रशासन में भ्रम पैदा होने और सामाजिक सद्भाव खराब होने की संभावना है.

विधेयक में कहा गया है कि नामों के ये परिवर्तन ‘सरकारी अधिकारियों के लिए अपने कर्तव्यों के निर्वहन के समय कुछ प्रशासनिक चुनौतियां पैदा करते हैं.’

विधेयक के अनुसार, राज्य सरकार द्वारा सात सदस्यीय समिति नियुक्त की जाएगी और वही सरकार को स्थानों के नाम बदलने या बदलने का सुझाव देने के लिए अधिकृत होगी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, एन. बीरेन सिंह ने कहा कि एक समिति गठित की जाएगी, जिसे पूर्वोत्तर राज्य में स्थानों के नामों में किसी भी बदलाव को मंजूरी देने का काम सौंपा जाएगा. यह समिति पहाड़ियों, झीलों, नदियों, ऐतिहासिक संरचनाओं और चिकित्सा संस्थानों के नामों में किसी भी बदलाव पर भी गौर करेगी.

मुख्यमंत्री ने सोमवार को विधानसभा में कहा, ‘ऐसे उदाहरण हैं जहां चूड़ाचांदपुर को लमका और कांगपोकपी को कांगुई के रूप में संबोधित किया गया है… इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है.’

सिंह ने कहा कि राज्य सरकार ने स्थानों/गांवों को दिए गए सभी नए नाम पहले ही रद्द कर दिए हैं और अब ऐसे कृत्यों की अनुमति नहीं दी जाएगी.

मालूम हो कि बीते 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 200 से अधिक लोगों की जान चली गई है. यह हिंसा तब भड़की थी, जब बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था.

संघर्ष के शुरुआती दिनों में इंफाल में रहने वाले कुकी-ज़ो लोग पहाड़ियों की ओर भाग गए, जबकि कुकी-प्रभुत्व वाले जिलों में रहने वाले मेईतेई लोग इंफाल घाटी में भाग गए. दोनों पक्षों की ओर से एक दूसरे पर उनके खाली पड़े मकानों और संपत्तियों पर कब्जा करने का आरोप लगाया गया है.

मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.

संघर्ष के दौरान राजय में कुछ जगहों के नाम बदलने के भी मामले सामने आए थे. सबसे प्रमुख चूड़ाचांदपुर है, जो एक कुकी-बहुल जिला है, जिसका मुख्यालय का नाम भी वही है, जिसका नाम कई कुकी समूहों द्वारा लमका रखा गया है, जो मेईतेई राजा चूड़ाचांद सिंह के नाम पर वर्तमान नाम के बजाय जगह का एक पारंपरिक नाम है.

एक अन्य उदाहरण में ज़ो समुदाय की पाइते उप-जनजाति के नाम पर इंफाल के एक इलाके पाइते वेंग को स्थानीय निवासियों द्वारा क्वाकीथेल निंगथेमकोल के रूप में रखा गया.