केंद्र शासित प्रदेश के छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल की 4 मार्च को दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद पूर्व भाजपा सांसद थुपस्तान छेवांग ने कहा कि गृह मंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि छठी अनुसूची के तहत न तो राज्य का दर्जा दिया जा सकता है और न ही गारंटी दी जा सकती है.
नई दिल्ली: लद्दाख के लेह एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस और केंद्र के बीच चौथे दौर की बातचीत बेनतीजा रही, जिसमें कहा गया कि सोमवार की बैठक में कोई ‘ठोस’ परिणाम नहीं निकला.
केंद्र शासित प्रदेश के छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल की 4 मार्च को दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद लद्दाख के नागरिक समाज के नेताओं के साथ केंद्र की बातचीत विफल रही. पूर्व भाजपा सांसद थुपस्तान छेवांग, जो लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन (एलबीए) के प्रमुख भी हैं, वार्ता का नेतृत्व कर रहे थे.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष चेरिंग दोरजे लाक्रुक ने बताया, ‘हमने अमित शाह से उनके आवास पर मुलाकात की थी, लेकिन उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि छठी अनुसूची के तहत न तो राज्य का दर्जा दिया जा सकता है और न ही गारंटी दी जा सकती है. इसीलिए वार्ता विफल रही.’
लाक्रुक के अनुसार, वे तीसरे दौर की वार्ता के लिए गृह मंत्रालय के निमंत्रण पर दिल्ली आए थे. उन्होंने कहा, ‘हमने पहले गृह मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात की और फिर अमित शाह से मिलने उनके घर गए.’
उप-समिति के सदस्यों द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, ‘गृह मंत्री के साथ बैठक में कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला. इसलिए लद्दाख एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के नेता अब भविष्य की कार्रवाई पर लोगों से परामर्श करेंगे.’
गृह मंत्रालय ने एक प्रेस बयान में कहा, ‘अमित शाह ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को आवश्यक संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने आश्वासन दिया कि लद्दाख पर उच्चाधिकार प्राप्त समिति ऐसे संवैधानिक सुरक्षा उपाय प्रदान करने के तौर-तरीकों पर चर्चा कर रही है.’
इसमें कहा गया है कि, ‘गृह मंत्री ने कहा कि इस उच्चाधिकार प्राप्त समिति के माध्यम से स्थापित परामर्श तंत्र को क्षेत्र की अनूठी संस्कृति और भाषा की रक्षा उपायों, भूमि और रोजगार की सुरक्षा, समावेशी विकास और रोजगार सृजन, एलएएचडीसी का सशक्तिकरण और सकारात्मक परिणामों के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों जैसे मुद्दों पर काम करना जारी रखना चाहिए.’
पिछले हफ्ते लद्दाख के प्रमुख जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने कहा था कि अगर गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ वार्ता विफल हो जाती है तो वे आमरण अनशन करेंगे. उन्होंने यह भी कहा था कि सरकार ‘औद्योगिक लॉबी के प्रभाव’ के तहत लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा सुनिश्चित नहीं करना चाहती है.
इससे पहले गृह मंत्रालय ने लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और इसे छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की वैधता की जांच करने पर सहमति व्यक्त की थी.
गृह मंत्रालय ने पिछले साल लद्दाख के लोगों की शिकायतों और मांगों को संबोधित करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का भी गठन किया था. गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के नेतृत्व वाली समिति ने 4 दिसंबर 2023 को अपनी पहली बैठक की थी.
लद्दाख एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस ने संयुक्त रूप से लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा और इसे छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग की है – इसे आदिवासी दर्जा, स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण और लेह और करगिल के लिए एक-एक संसदीय सीट दी गई है.
संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची आदिवासी आबादी की रक्षा करती है, जिससे भूमि, सार्वजनिक स्वास्थ्य और कृषि पर कानून बनाने के लिए स्वायत्त विकास परिषदों के निर्माण की अनुमति मिलती है. अब तक, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में 10 स्वायत्त परिषदें मौजूद हैं.
दिलचस्प बात यह है कि भाजपा 2024 के चुनावों के लिए अपना अभियान इस बात पर केंद्रित कर रही है कि धारा 370 को निरस्त करने से जम्मू कश्मीर और लद्दाख दोनों को कैसे फायदा हुआ है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘लेकिन अगर वे चुनाव से ठीक पहले इस मांग को मान लेते हैं, तो यह उनके खिलाफ उल्टा असर होगा.’
उनके मुताबिक, ताजा घटनाक्रम से उन्हें लद्दाख सीट गंवानी पड़ सकती है. उन्होंने कहा, ‘वे एक सीट खोने का जोखिम उठा सकते हैं, लेकिन अगर नैरेटिव विफल रहा तो न केवल उन्हें जम्मू में दोनों सीटें गंवानी पड़ेंगी, बल्कि अन्य सीटों पर उनके वोट शेयर पर भी असर पड़ सकता है.’
गौरतलब है कि साल 2019 में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को समाप्त करने और और तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने के बाद लद्दाख क्षेत्र के लोग भारत के अन्य आदिवासी क्षेत्रों को संविधान की छठी अनुसूची के तहत प्रदान किए गए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं, जिससे उनकी जनसांख्यिकी, नौकरी और भूमि की रक्षा हो.
बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची आदिवासी आबादी की रक्षा करती है. छठी अनुसूची आदिवासी क्षेत्रों में स्वायत्त प्रशासनिक जिला परिषदों के गठन का प्रावधान करती है जिसमें कुछ विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वायत्तता होती है. ये परिषद भूमि, जंगल, जल, कृषि, स्वास्थ्य, स्वच्छता, विरासत, विवाह और तलाक, खनन और अन्य को नियंत्रित करने वाले नियम और कानून बना सकती हैं. अभी तक असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में 10 स्वायत्त परिषदें मौजूद हैं.