संदेशखाली: सीबीआई ने जांच अपने हाथ में ली, बंगाल सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची

कलकत्ता हाईकोर्ट ने बंगाल के संदेशखाली में ईडी के अधिकारियों पर 5 जनवरी को हुए हमले की जांच ट्रांसफर करने के साथ ही मुख्य आरोपी शाहजहां शेख़ की हिरासत भी सीबीआई को सौंपने के लिए कहा. इसके कुछ घंटों बाद ही राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट चली गई.

कलकत्ता हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक/Kolkata Calling)

कलकत्ता हाईकोर्ट ने बंगाल के संदेशखाली में ईडी के अधिकारियों पर 5 जनवरी को हुए हमले की जांच ट्रांसफर करने के साथ ही मुख्य आरोपी शाहजहां शेख़ की हिरासत भी सीबीआई को सौंपने के लिए कहा. इसके कुछ घंटों बाद ही राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट चली गई.

कलकत्ता हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक/Kolkata Calling)

नई दिल्ली: कलकत्ता उच्च न्यायालय ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल पुलिस को ‘पूरी तरह से पक्षपाती’ बताया और संदेशखली में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों पर 5 जनवरी को हुए हमले की जांच स्थानांतरित करने का आदेश दिया. साथ ही मुख्य आरोपी शाहजहां शेख की हिरासत को भी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिया गया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इसके कुछ घंटों बाद राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई.

इसी बीच, सीबीआई ने जांच अपने हाथ में लेते हुए मामले में एफआईआर दर्ज कर ली. अर्धसैनिक बल के जवानों के साथ सीबीआई की एक टीम शेख को हिरासत में लेने के लिए कोलकाता में सीआईडी कार्यालय पहुंची, लेकिन पुलिस ने यह कहते हुए उसे सौंपने से इनकार कर दिया कि मामला अदालत में है.

अपने आदेश में हाईकोर्ट ने निर्देश दिया था कि ईडी टीम पर हमले के सिलसिले में 29 फरवरी को पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए निलंबित तृणमूल कांग्रेस नेता शाहजहां शेख की हिरासत मंगलवार शाम 4.30 बजे तक सीबीआई को सौंप दी जाए.

कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम और जस्टिस हिरण्मय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने पहले के एकल-पीठ के आदेश को रद्द कर दिया, जिसने हमले की जांच के लिए सीबीआई और राज्य पुलिस की एक संयुक्त विशेष जांच टीम के गठन का निर्देश दिया था.

ईडी और राज्य सरकार दोनों ने इस आदेश को चुनौती देते हुए अलग-अलग अपील दायर की थी. जहां ईडी चाहती थी कि जांच केवल सीबीआई को दी जाए, राज्य सरकार ने जांच केवल राज्य पुलिस को देने के लिए कहा.

खंडपीठ ने पहले एकल पीठ के आदेश पर रोक लगा दी थी और राज्य पुलिस को ईडी टीम पर हमले के संबंध में उनके द्वारा दर्ज मामलों में जांच आगे बढ़ाने से रोक दिया था. पीठ ने मंगलवार को कहा कि उसके आदेश के बावजूद एक मामला राज्य सीआईडी को स्थानांतरित कर दिया गया, जिसने ईडी अधिकारियों को नोटिस जारी किया.

हाईकोर्ट ने कहा, ‘इस प्रकार, राज्य पुलिस का यह कृत्य यह मानने के लिए पर्याप्त होगा कि राज्य पुलिस पूरी तरह से पक्षपाती है और 50 दिनों से अधिक समय से फरार आरोपी को बचाने के लिए जांच में देरी करने का हर प्रयास किया जा रहा है.’

हाईकोर्ट ने कहा, ‘तत्कालीन फरार आरोपी (शेख) को इलाके में एक ताकतवर व्यक्ति माना जाता है और सत्ताधारी पार्टी में उसके बहुत शक्तिशाली संबंध हैं. इसके अलावा उसे उत्तर 24 परगना जिला परिषद के कर्माध्यक्ष के रूप में चुना गया है, जिसे सत्तारूढ़ दल ने उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा गया है. राज्य पुलिस ने आरोपी, जो निस्संदेह राजनीतिक रूप से बेहद प्रभावशाली व्यक्ति है, को बचाने के लिए पूरी संभावना के साथ लुकाछिपी की रणनीति अपनाई थी. इससे स्पष्ट रूप से दिखता है कि यदि उसे राज्य पुलिस के साथ रहने की अनुमति दी गई, तो वह जांच को प्रभावित करने की स्थिति में है और रहेगा.’

अदालत ने कहा, ‘आईपीसी  की धारा 307 केवल 17.01.2024 को जोड़ी गई थी. जैसा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने बताया है, नागरिकों के नागरिक अधिकारों के संरक्षक होने के नाते उच्च न्यायालय के पास न केवल शक्ति और क्षेत्राधिकार है, बल्कि मौलिक अधिकारों की रक्षा करने का दायित्व भी है.’

इसके आदेश में आगे कहा गया है, ‘जिस आरोपी को 50 दिनों से अधिक समय तक भागने के बाद 29 फरवरी, 2024 को पकड़ा गया है, वह कोई सामान्य नागरिक नहीं है. वह जनता के एक निर्वाचित प्रतिनिधि हैं, जिला परिषद में सर्वोच्च पद पर हैं, उन्हें सत्तारूढ़ दल द्वारा उक्त पद के लिए हुए चुनाव में उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया गया था. इस प्रकार, पूर्ण न्याय करने और सामान्य रूप से जनता और इलाके की जनता के मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए यह अनिवार्य हो गया है कि मामलों को जांच के लिए और आगे बढ़ने के लिए सीबीआई को दिया जाए.’

अदालत ने कहा, ‘आरोपी (शेख) की हिरासत भी तुरंत सीबीआई को सौंप दी जाएगी.’

हालांकि, हाईकोर्ट के आदेश के कुछ घंटों बाद राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एएम सिंघवी ने जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख किया. पीठ ने उनसे कागजात भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के समक्ष रखने को कहा, जो इसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर फैसला लेंगे.

पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले का संदेशखाली 5 जनवरी से भाजपा-टीएमसी राजनीति के केंद्र में है, जब स्थानीय ताकतवर और टीएमसी नेता शेख के घर पर तलाशी के दौरान ईडी अधिकारियों पर हमला किया गया था. ईडी की टीम राज्य की सार्वजनिक वितरण प्रणाली में कथित अनियमितताओं की जांच के सिलसिले में वहां गई थी.

घटना के बाद जैसे ही शेख भाग गया, इलाके की महिलाओं ने टीएमसी नेताओं पर वर्षों तक यौन शोषण के आरोप लगाए. महिलाओं ने कहा कि उन्हें स्वयं सहायता समूह की सभा की आड़ में देर रात की बैठकों के लिए बुलाया जाता था और टीएमसी के लोगों द्वारा परेशान किया जाता था.

उन्होंने कहा कि वे अब बोल पा रही हैं क्योंकि शेख भाग रहा है. इसके साथ ही, आरोप लगाए गए कि आदिवासी समुदायों के कई परिवारों ने टीएमसी के लोगों के कारण अपनी कृषि भूमि खो दी, जिन्होंने इसे जबरन मछली पालन की जगह में बदल दिया.

शेख को राज्य पुलिस ने 29 फरवरी को गिरफ्तार किया था. गिरफ्तारी के तुरंत बाद टीएमसी ने उन्हें छह साल के लिए निलंबित करने की घोषणा की थी.

मंगलवार को हाईकोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए राज्य भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा, ‘यह फिर से साबित हो गया है कि राज्य प्रशासन ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है.’

विपक्ष पर पलटवार करते हुए टीएमसी नेता अरूप चक्रवर्ती ने कहा, ‘राज्य पुलिस पहले ही सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है. तो, कोई कैसे कह सकता है कि राज्य पुलिस अपना कर्तव्य नहीं निभा रही है.’