बीते 5 मार्च को बॉम्बे हाईकोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और पांच अन्य को ‘आतंकवाद’ के आरोपों से बरी कर दिया था. महाराष्ट्र सरकार ने अदालत के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिन्हें कथित माओवादी संबंधों के कारण गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम मामले में दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि प्रथमदृष्टया 5 मार्च का हाईकोर्ट का फैसला बहुत तर्कपूर्ण लगता है. पीठ ने कहा, ‘कानून यह है कि निर्दोष होने का अनुमान है. एक बार जब बरी करने का आदेश आ जाता है, तो यह धारणा मजबूत हो जाती है.’
बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने 5 मार्च को उन्हें और पांच अन्य को ‘आतंकवाद’ के आरोपों से बरी कर दिया था, जिन्हें 2017 में ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया था, यह देखते हुए कि अभियोजन पक्ष अपना मामला साबित करने में विफल रहा.
सोमवार को हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, ‘दो अलग-अलग पीठों द्वारा बरी करने के दो आदेश हैं. प्रथमदृष्टया, हम पाते हैं कि निर्णय बहुत तर्कसंगत है. चूंकि पहले भी एक मौके पर इस अदालत ने हस्तक्षेप किया था, इसलिए हमें इसका सम्मान करना होगा. उच्च न्यायालय का निर्णय बहुत ही तर्कसंगत है. आम तौर पर, हमने इस अपील पर विचार नहीं किया होता. बरी करने के आदेश में हस्तक्षेप के मानदंड बहुत सीमित हैं.’
रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस मेहता ने आगे कहा, ‘यह बड़ी मुश्किल से बरी होने का मामला है. उस आदमी ने कितने साल जेल में बिताए हैं?’ इसके बाद जस्टिस गवई ने कहा, ‘कानून यह है कि निर्दोषता का अनुमान है. एक बार जब बरी करने का आदेश आ जाता है, तो यह धारणा मजबूत हो जाती है.’
उल्लेखनीय है कि इससे पहले द वायर ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले में राज्य की जांच और ट्रायल कोर्ट के फैसले दोनों की आलोचना की थी, जिसमें लोगों को दोषी पाया गया था. जस्टिस विनय जी. जोशी और जस्टिस वाल्मीकि एस. मेनेजेस ने 5 मार्च को साईबाबा के साथ-साथ पत्रकार प्रशांत राही, महेश तिर्की, हेम केशवदत्त मिश्रा और विजय नान तिर्की को सभी आरोपों से बरी कर दिया था. मामले में आरोपी और छठे व्यक्ति पांडु नरोटे की इस फैसले के इंतजार में अगस्त 2022 में मृत्यु हो गई.
साईबाबा, जो ह्वीलचेयर पर हैं और 90% से अधिक शारीरिक अक्षमता का शिकार हैं, ने अपनी रिहाई के बाद कहा कि यह ‘केवल संयोगवश’ है कि वह जीवित जेल से बाहर आ रहे हैं.
दो साल में यह दूसरी बार है जब नागपुर पीठ ने साईबाबा और अन्य को बरी कर दिया है. 14 अक्टूबर, 2022 को जस्टिस रोहित बी. देव और अनिल पानसरे की उसी अदालत ने गढ़चिरौली सत्र अदालत के फैसले को पलट दिया था. विजय तिर्की को छोड़कर, जिन्हें दस साल की कठोर सजा सुनाई गई, अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.
2022 में सभी पांच आरोपियों को बरी करते हुए जस्टिस देव ने कहा था कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कथित खतरे’ के नाम पर कानून की उचित प्रक्रिया को ताक पर नहीं रखा जा सकता. यदि याचिकाकर्ता किसी अन्य मामले में आरोपी नहीं हैं तो उन्हें जेल से तत्काल रिहा किया जाए.
साईबाबा और अन्य की ओर से पेश बचाव पक्ष के वकीलों ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के कड़े प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाने के लिए जारी मंजूरी आदेश की वैधता को चुनौती दी थी. उन्होंने यूएपीए की धारा 41 (ए) पर भरोसा किया था जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि, ‘कोई भी अदालत केंद्र सरकार या केंद्र सरकार द्वारा इस ओर से अधिकृत किसी अधिकारी की पूर्व मंजूरी के बिना किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं लेगी.’
2022 में हाईकोर्ट ने वैध मंजूरी आदेश की अनुपस्थिति को ‘कानून की दृष्टि से खराब और अमान्य’ कहा था.
हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद नागपुर केंद्रीय जेल अधिकारियों ने उन्हें तुरंत रिहा करने से इनकार कर दिया था और इस बीच, राज्य सरकार आदेश पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी और उसे अपने पक्ष में आदेश प्राप्त हुआ था.