असम में सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन तेज, विपक्ष ने राज्य के लिए ‘काला दिवस’ क़रार दिया

गृह मंत्रालय द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम को अधिसूचित करने की ख़बर फैलते ही असम के ग़ैर-छठी अनुसूची वाले क्षेत्रों में इसके विरोध में दर्जनों छात्र नारे लगाते हुए निकल पड़े. विभिन्न छात्र संगठनों ने राज्य के अलग-अलग हिस्सों में सड़कों पर उतरकर अधिनियम की प्रतियां जलाईं.

11 मार्च की रात शिवसागर के विधायक अखिल गोगोई पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ गोलाघाट में सड़कों पर सीएए के खिलाफ नारे लगाते हुए. (फोटो साभार: X/@AkhilGogoiAG)

गृह मंत्रालय द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम को अधिसूचित करने की ख़बर फैलते ही असम के ग़ैर-छठी अनुसूची वाले क्षेत्रों में इसके विरोध में दर्जनों छात्र नारे लगाते हुए निकल पड़े. विभिन्न छात्र संगठनों ने राज्य के अलग-अलग हिस्सों में सड़कों पर उतरकर अधिनियम की प्रतियां जलाईं.

11 मार्च की रात शिवसागर के विधायक अखिल गोगोई पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ गोलाघाट में सड़कों पर सीएए के खिलाफ नारे लगाते हुए. (फोटो साभार: X/@AkhilGogoiAG)

नई दिल्ली: असम में जैसे ही गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा सोमवार (11 मार्च) को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) को अधिसूचित करने की खबर फैली, गुवाहाटी में कॉटन विश्वविद्यालय और डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय सहित कई विश्वविद्यालय परिसरों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए.

रिपोर्ट के मुताबिक, असम के गैर-छठी अनुसूची वाले क्षेत्रों में सीएए के कार्यान्वयन के विरोध में दर्जनों छात्र नारे लगाते हुए निकल पड़े. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) जैसे छात्र संगठन भी राज्य के विभिन्न हिस्सों में सड़कों पर उतरे और अधिनियम की प्रतियां जलाईं.

आसू, जो 1980 के दशक से ‘विदेशी विरोधी आंदोलन’ (जो असम समझौते के साथ समाप्त हुआ) में सबसे आगे रहा है, ने राज्य में बंद की घोषणा की. आसू के मुख्य सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने संवाददाताओं से कहा, ‘सीएए हमें स्वीकार्य नहीं है. भाजपा सरकार ने आज असमिया लोगों, हमारी अस्मिता, हमारी संस्कृति पर सबसे बड़ा प्रहार किया है. हमारा विरोध जारी रहेगा.’

सीएए असम समझौते के अनुसार मार्च 1971 की नागरिकता की कट-ऑफ तारीख को रद्द कर देता है. अधिनियम के अनुसार, एक बांग्लादेशी हिंदू जिसने 2019 तक राज्य में प्रवेश किया था, वह नागरिकता के लिए पात्र है और पूर्वोत्तर राज्य में स्थायी रूप से बस सकता है.

कानून के खिलाफ आंदोलन से पैदा हुए दो राजनीतिक दलों- रायजोर दल और असम जातीय परिषद (एजेपी) – ने ‘हड़ताल’ की घोषणा की और असमिया लोगों से विरोध दर्ज कराने के लिए अपने घरों से बाहर आने का आग्रह किया.

एजेपी अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई ने 11 मार्च को ‘असम के लिए एक काला दिन’ कहा और राज्य में अधिनियम के कार्यान्वयन में असमिया लोगों के विरोध पर ध्यान नहीं देने के लिए राज्य और केंद्र दोनों की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकारों की निंदा की.

गोगोई ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा, ‘यह अधिनियम समुदाय की पहचान, जमीन और सांस्कृतिक अधिकारों को कुचल देगा.’ उन्होंने भाजपा पर असमिया समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए उससे वोट मांगने और फिर उसे ही सबसे बड़ा झटका देने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘असम के सर्बानंद सोनोवाल और हिमंता बिस्वा शर्मा जैसे भाजपा नेता असम को सीएए से बाहर रखने के लिए अपनी पार्टी की केंद्र सरकार को समझाने में विफल रहे… यह असम के लिए काला दिवस है… मैं लोगों से इस अधिनियम के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार होने का अनुरोध करता हूं.’

सीएए के खिलाफ एक प्रदर्शन में एजेपी अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई. (फोटो साभार: फेसबुक/@lurinjtgogoi)

11 मार्च की रात शिवसागर निर्वाचन क्षेत्र से विधायक अखिल गोगोई कुछ पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ गोलाघाट में सड़कों पर निकले और अधिनियम के खिलाफ नारे लगाए.

12 मार्च की सुबह उन्होंने राज्य भर में समान विचारधारा वाले 16 विपक्षी दलों द्वारा बुलाए गए एक दिवसीय संयुक्त ‘हड़ताल’ के हिस्से के रूप में शिवसागर में अपनी पार्टी के विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया.

अखिल गोगोई ने 12 मार्च की दोपहर एक्स पर कहा, ‘लोग हमारे साथ सहयोग कर रहे हैं. मैं असम के सभी लोगों से इस कठोर काले कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने का आग्रह करता हूं जो असम के मूल लोगों को पूरी तरह से वंचित कर देगा.’

पिछले कुछ दिनों से यूनाइटेड अपोजिशन फोरम ऑफ असम (यूओएफए) के बैनर तले संयुक्त विपक्ष राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर असम को सीएए के दायरे से बाहर करने का आग्रह करता रहा है.

उन्होंने कहा, ‘जाति, पंथ और राजनीतिक संबद्धता से परे असम के लोगों के बीच एक मजबूत धारणा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 असमिया लोगों की संस्कृति, इतिहास, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, सामाजिक ताने-बाने और पहचान को खतरे में डाल देगा.’

यूओएफए में 16 पार्टियां- कांग्रेस, रायजोर दल, असम जातीय परिषद, आम आदमी पार्टी, असम तृणमूल कांग्रेस, सीपीआई (एम), सीपीआई, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक, सीपीआई (एम-एल), एनसीपी- शरद पवार (असम), समाजवादी पार्टी (असम), पूर्वांचल लोक परिषद, जातीय दल, एपीएचएलसी (असम), शिव सेना (असम) और राष्ट्रीय जनता दल (असम) शामिल हैं.

फोरम ने यह भी कहा कि अगर इसे असम में लागू किया गया तो वे हड़ताल का सहारा लेंगे. प्रधानमंत्री को लिखे यूओएफए के पत्र में चेतावनी दी गई है कि ‘आने वाले दिनों में असम में अस्थिर स्थिति पैदा होने की संभावना है.’

प्रदर्शन के तुरंत बाद गोगोई को राज्य पुलिस द्वारा एक कानूनी नोटिस दिया गया, जिसमें उनकी पार्टी और अन्य समान विचारधारा वाले विपक्षी दलों से विरोध प्रदर्शन के आह्वान को तुरंत वापस लेने के लिए कहा गया. नोटिस में ‘सर्वोच्च न्यायालय, केरल उच्च न्यायालय के साथ-साथ गौहाटी उच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों’ का हवाला देते हुए हड़ताल को ‘अवैध और असंवैधानिक’ बताया गया.

कानूनी नोटिस में यह भी धमकी दी गई है कि ‘अगर ‘सर्वात्मक हड़ताल’ के कारण रेलवे और राष्ट्रीय राजमार्ग संपत्तियों सहित सार्वजनिक/निजी संपत्ति को कोई नुकसान होता है या किसी नागरिक को चोट लगती है, तो कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी.’

पुलिस का नोटिस राज्य के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा की कुछ दिनों पहले असम के विपक्षी दलों को दी गई धमकी के अनुरूप है.

उन्होंने गौहाटी हाईकोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए संवाददाताओं से कहा था कि अगर राजनीतिक दल असम में सीएए के कार्यान्वयन के विरोध में बंद का आह्वान करते हैं, तो वह भारत के चुनाव आयोग को उनका पंजीकरण रद्द करने के लिए लिखेंगे. शर्मा राज्य के गृह मंत्री भी हैं.

राज्य पुलिस द्वारा दिए गए कानूनी नोटिस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अखिल गोगोई ने कहा, ‘सरकार के ऐसे अलोकतांत्रिक और तानाशाही कदम भारत में लोकतांत्रिक संस्कृति को कायम रखने के खिलाफ एक बुरी मिसाल कायम करते हैं.’

इस बीच, आम चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले गृह मंत्रालय द्वारा सीएए को अधिसूचित करने की कड़ी में शर्मा सरकार ने पिछले कुछ दिनों से गुवाहाटी और राज्य के कई अन्य शहरों और कस्बों की सड़कों पर पुलिस की तैनाती बढ़ा दी थी. 12 मार्च की सुबह लोगों ने राज्य पुलिस के जवानों को शहर की सड़कों पर मार्च करते देखा.

एक्स पर राज्य के पुलिस महानिदेशक जीपी सिंह ने कहा, ‘असम पुलिस ने यह सुनिश्चित करने के लिए व्यवस्था की है कि कोई भी कानून न तोड़े. हम असम के निवासियों के जीवन और संपत्ति को किसी भी प्रकार की बर्बरता से बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. इसके अलावा, सभी कानूनों और न्यायिक घोषणाओं को निर्धारित प्रक्रियाओं के अनुसार पूरी तरह से लागू किया जाएगा’

दिसंबर 2019 में जब सीएए संसद में पारित हुआ था तो राज्य में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसमें गुवाहाटी में हुई हिंसा भी शामिल थी. राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति संभालने के लिए सिंह को तुरंत गृह मंत्रालय द्वारा असम भेजा गया था. उनके पद संभालने के कुछ ही घंटों बाद गुवाहाटी में एक 17 वर्षीय किशोर सहित पांच निहत्थे प्रदर्शनकारियों की कथित तौर पर गोली मारकर हत्या कर दी गई.

जुलाई 2022 में किशोर के पिता द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए गुवाहाटी की एक स्थानीय अदालत ने उसकी मौत पर राज्य पुलिस की रिपोर्ट को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और सिंह, जो उस समय अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून और व्यवस्था) थे, को प्रतिवादी बना दिया था.

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